चिकटे जी काव्य रूपांतर
विवेक अंकुश
कभी भूत की स्मृतियाँ कभी भविष्य के मनोरथ इनमें खो जाता है वर्तमान वर्तमान जो है विद्यमान …
कभी भूत की स्मृतियाँ कभी भविष्य के मनोरथ इनमें खो जाता है वर्तमान वर्तमान जो है विद्यमान …
सम्मुख गाजर लटकी दिखती, कोल्हू बैल घूमता है ! आशा पाश, वासना बंधन मन अनजान डूबता है !! हाथ सुमिरनी घू…
मिट जाता जब अहम् ह्रदय से, कुंठा जाती भाग ह्रदय कमल बैकुंठ सरसता, विष्णू जाते जाग | वैकुण्ठ जहां कुंठ…
(१) कबीर की साधना निश्छल, निर्मल ओ सफल सब जग भया राम मय, मन में रहा न मल मन चाहे तो दे बना मुझे पतन …
चूर चूर अभिमान अरे ओ खंड खंड पाखण्ड यहाँ ! इन दोनों को गर अपनाया तो हमसा उद्दंड कहाँ !! अड़चन…