शर्मिंदगी के साये में शिवपुरी
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शहर की पहचान वहां के नागरिकों से बनती है, उनके संस्कारों, उनके चरित्र और उनके कर्मों से। लेकिन जब कोई व्यक्ति, जिसका नाम तक शहर की गलियों में अनसुना हो, किसी शर्मनाक कृत्य में लिप्त पाया जाता है, तो कलंक समूचे नगर पर आ गिरता है। शिवपुरी आज ऐसे ही एक बोझ तले दबा महसूस कर रहा है। एक ऐसा दाग, जो यहां के मूल निवासियों का नहीं, फिर भी उनकी आत्मा तक को छलनी कर रहा है।
सुबह से उठी यह ख़बर, जिसने पूरे जिले को अविश्वास और संकोच से भर दिया, किसी और की करतूत का बोझ हमारे माथे पर रख रही है। एक सरकारी हथियार फैक्ट्री का कर्मचारी, जो शायद बरसों से इस नगर से दूर अपनी ज़िंदगी जी रहा था, किसी घृणित गतिविधि में लिप्त पाया गया। देशद्रोह का आरोप कोई सामान्य बात नहीं होती। यह आरोप किसी व्यक्ति विशेष पर ही नहीं, बल्कि उसकी जड़ों से जुड़ी उस धरती पर भी छाया डाल देता है, जहां से उसका नाम कभी जुड़ा था। और दुर्भाग्य से, इस बार वह छाया शिवपुरी पर पड़ी है।
मगर क्या मात्र जन्मभूमि या कभी अस्थायी निवास बना लेना किसी को शहर की अस्मिता का प्रतिनिधि बना सकता है? यह प्रश्न अब और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है, जब बार-बार शिवपुरी को ऐसी असंगत व अनुचित छवि के साथ जोड़ा जाता है, जिसकी सत्यता संदिग्ध हो, और जिसकी प्रासंगिकता वर्तमान में समाप्त हो चुकी हो।
यह पहली बार नहीं है जब शिवपुरी को एक बदनाम पहचान देने का प्रयास किया गया हो। कभी किसी बीते युग की सामाजिक कुरीतियों को आधार बनाकर तो कभी अपराध जगत की कोई घटना घसीटकर, इस नगर की गरिमा को ठेस पहुंचाने की कोशिश की जाती रही है। इंटरनेट और सोशल मीडिया की तेज़ी में हर अनचाही और अवांछित खबर उड़ान भर लेती है, और बिना परख, बिना तर्क-वितर्क के, शहर का नाम एक बदनुमा साए में डाल दिया जाता है।
क्या कोई शहर मात्र एक व्यक्ति के कर्मों से पहचाना जाना चाहिए? क्या एक व्यक्ति की अराजकता उस माटी पर भारी पड़ सकती है, जिसने अनगिनत चरित्रवान, कर्मठ और सुसंस्कृत व्यक्तित्वों को जन्म दिया है? नहीं! शिवपुरी का अतीत स्वर्णिम है, उसकी सांस्कृतिक धरोहर समृद्ध है, और उसके नागरिकों का स्वाभिमान अटूट है।
हमारे नगर का सम्मान सर्वोपरि है। यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि नकारात्मकता के इस अंधकार में विवेक की मशाल जलाए रखें। किसी भी खबर को न सिर्फ सतही तौर पर देखने का समय है, बल्कि यह सोचने का भी कि उसे किस संदर्भ में प्रस्तुत किया जाए, जिससे सत्य तो उजागर हो, पर शहर की गरिमा धूमिल न हो।
यह आवश्यक है कि हम इस तरह की अफवाहों और नकारात्मक प्रचार के प्रति सजग रहें। अपनी नई पीढ़ी को एक ऐसा शहर दें जिस पर वे गर्व कर सकें, न कि एक ऐसा नाम जो बार-बार अनर्गल आरोपों के कारण झुकी हुई आंखों में उतर आए।
शिवपुरी सिर झुकाने के लिए नहीं, सिर उठाकर आगे बढ़ने के लिए बनी है।
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