लेबल

शिवनाथ झा: पत्रकारिता की निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा के अप्रतिम प्रहरी

 


पत्रकारिता केवल समाचारों का संकलन या लेखन भर नहीं होती, यह समाज के प्रति एक गहरी जिम्मेदारी और सत्य की खोज की साधना होती है। यह वह मार्ग है, जो न केवल सूचनाओं को जन-जन तक पहुँचाता है, बल्कि समाज की दशा और दिशा भी निर्धारित करता है। इस मार्ग पर चलने वाले कुछ लोग अपनी निष्ठा, साहस और सत्यनिष्ठा से स्वयं को पत्रकारिता के इतिहास में अमर कर देते हैं। शिवनाथ झा जी उन्हीं में से एक हैं, जिनका जीवन पत्रकारिता के मूल्यों की रक्षा और सामाजिक दायित्वों के निर्वहन का प्रेरणास्रोत रहा है।


यह कोई साधारण सफर नहीं था। पत्रकारिता के इस मार्ग पर उन्होंने न जाने कितने संघर्ष सहे, कितनी बाधाओं का सामना किया, लेकिन कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। एक किशोर के हाथ में फाउंटेन पेन थमाते हुए रणधीर प्रसाद वर्मा जी ने कहा था कि शिक्षा सबसे बड़ा ब्रह्मास्त्र है। यह केवल एक वाक्य नहीं था, बल्कि एक संकल्प था, जिसने पत्रकारिता की उस दिशा को जन्म दिया, जो किसी भी तरह की सौदेबाजी से कोसों दूर थी। जब दीनानाथ झा जी जैसे दिग्गज संपादकों का सान्निध्य मिला, तो यह समझ आया कि पत्रकारिता केवल शब्दों की बाजीगरी नहीं, बल्कि समाज के प्रति ईमानदारी और सत्यनिष्ठा का दायित्व है। उन्होंने जो चेतावनी दी थी कि आने वाले समय में पत्रकारिता की स्थिति कुछ रेड लाइट इलाकों जैसी हो जाएगी, वह समय के साथ सच साबित हुई। लेकिन शिवनाथ झा जी जैसे लोग इस गिरावट के सामने दीवार बनकर खड़े रहे।


समय बीतता गया, लेकिन उनका संकल्प अडिग रहा। जब The Telegraph के संवाददाता बनने का अवसर मिला, तब रणधीर वर्मा जी ने एक टाइपराइटर भेंट किया और कहा कि इसे भी उसी श्रद्धा से संभालना, जैसे फाउंटेन पेन को संभाला था। यह केवल एक उपहार नहीं, बल्कि पत्रकारिता के प्रति उनके निष्ठावान सफर का दूसरा अध्याय था। उनकी लेखनी का असर ऐसा था कि जब उस्ताद बिस्मिल्लाह खां जी का निधन हुआ, तो उनके मृत्युलेख में 117 करोड़ की आबादी के बीच नाम दर्ज कराने का सौभाग्य मिला। यह केवल एक समाचार नहीं, बल्कि उनकी पत्रकारिता की साख का प्रमाण था।


लेकिन यह सफर केवल लेखन तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने अपने प्रयासों से उन शहीदों के वंशजों को खोजा, जिनकी पहचान समय के साथ धुंधली हो गई थी। शहीद उधम सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, तात्या टोपे और न जाने कितने ऐसे बलिदानी, जिनके वंशज गुमनाम जीवन जीने को मजबूर थे, उन्हें खोजकर दुनिया के सामने लाने का कार्य किया। यह केवल खोजी पत्रकारिता नहीं थी, बल्कि इतिहास के उन भूले-बिसरे पन्नों को फिर से जीवंत करने की एक कोशिश थी।


पत्रकारिता का यह सफर संघर्षों से भरा रहा। जब उन्होंने एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया, जिसमें कुछ प्रभावशाली लोग शामिल थे, तब उन पर दबाव बनाने की तमाम कोशिशें हुईं। धमकियाँ दी गईं, झूठे मुकदमे लगाए गए, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। सच को सामने लाने की उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें कभी डगमगाने नहीं दिया। उन्होंने यह साबित किया कि पत्रकारिता केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि समाज के प्रति एक नैतिक दायित्व है।


शिवनाथ झा जी की लेखनी हमेशा सत्ता से सवाल करने और समाज की असल समस्याओं को उजागर करने के लिए जानी गई। उन्होंने उन मुद्दों को उठाया, जिन्हें मुख्यधारा की मीडिया अक्सर नज़रअंदाज़ कर देती थी। चाहे वह किसानों की दुर्दशा हो, भ्रष्टाचार से ग्रस्त प्रशासन हो, या फिर हाशिए पर खड़े लोगों की पीड़ा—उन्होंने हर विषय पर बेबाकी से लिखा। उनकी लेखनी में केवल सूचनाएँ नहीं होतीं, बल्कि समाज को झकझोरने की ताकत होती है।


आज जब पत्रकारिता का स्वरूप बदल चुका है, जब न्यूज़ चैनल्स पर बहसें TRP के लिए होती हैं, जब समाचार पत्रों में सच से अधिक विज्ञापन जगह घेरते हैं, तब शिवनाथ झा जी जैसे लोग इस बात का प्रमाण हैं कि अगर लेखनी सच्चाई का साथ न छोड़े, तो वह इतिहास का हिस्सा बन जाती है। उन्होंने पत्रकारिता को एक व्यवसाय के रूप में नहीं, बल्कि एक साधना के रूप में जिया और इसे हर प्रकार की बिकाऊ प्रवृत्ति से दूर रखा।


नए पत्रकारों के लिए उनका जीवन एक प्रेरणा है। जब पत्रकारिता को लेकर समझौते करने के लिए कहा जाता है, जब दबाव डाला जाता है, जब सच्चाई को छिपाने की कोशिश की जाती है, तब शिवनाथ झा जी की जीवन यात्रा यह सिखाती है कि एक सच्चा पत्रकार वही है, जो हर स्थिति में अपने मूल्यों के साथ अडिग रहे। सत्य की राह आसान नहीं होती, लेकिन जो इस पर चलता है, वही पत्रकारिता की असली आत्मा को जीवित रखता है।


आज जब मीडिया को प्रश्नों के कटघरे में खड़ा किया जाता है, तब शिवनाथ झा जी जैसे लोगों का सफर उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो इस पेशे को केवल आजीविका नहीं, बल्कि समाज के प्रति दायित्व मानते हैं। उनके योगदान को शब्दों में समेटना आसान नहीं, क्योंकि यह केवल खबरों की नहीं, बल्कि मूल्यों की यात्रा है। नमन है उनके संघर्ष को, उनके सिद्धांतों को और उनकी अटूट निष्ठा को, जिसने पत्रकारिता को उसकी असली आत्मा से जोड़े रखा।