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समावेशी समाज - एक कालातीत परंपरा और एक आधुनिक वास्तविकता - डॉ. अमरीक सिंह ठाकुर

 



भारतीय परंपराओं और रीति-रिवाजों ने हमेशा समावेशिता के महत्व पर जोर दिया है। संयुक्त परिवार प्रणाली, एक समावेशी समाज का एक सूक्ष्म जगत है, जहां लिंग की परवाह किए बिना प्रत्येक सदस्य की भूमिका होती है। नवरात्रि जैसे त्यौहार दिव्य स्त्री का जश्न मनाते हैं, जबकि करवा चौथ और तीज जैसे अनुष्ठान पुरुषों और महिलाओं के बीच आपसी सम्मान और साझेदारी को उजागर करते हैं। ग्रामीण भारत में, महिलाएं पारंपरिक रूप से कृषि से लेकर हस्तशिल्प तक ज्ञान की संरक्षक रही हैं। स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) आंदोलन, जो एक जमीनी स्तर की पहल के रूप में शुरू हुआ, ने लाखों महिलाओं को उद्यमी और निर्णय लेने वाले बनने के लिए सशक्त बनाया है। इस पारंपरिक समावेशिता को आधुनिक प्रथाओं में समेकित रूप से एकीकृत किया गया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि महिलाएं सामाजिक प्रगति के केंद्र में बनी रहें। भारत में प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक, महिलाएं बौद्धिक, राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में सबसे आगे रही हैं। लीलावती: एक प्रसिद्ध गणितज्ञ, बीजगणित और अंकगणित में लीलावती का योगदान भास्कराचार्य के काम, लीलावती गणतम में अमर है। उनकी विरासत प्राचीन भारत की बौद्धिक समावेशिता का एक उदाहरण है। अहिल्याबाई होल्कर: मालवा की रानी, अहिल्याबाई, एक दूरदर्शी शासक थीं, जिन्होंने सामाजिक कल्याण, बुनियादी ढांचे के विकास और धार्मिक सहिष्णुता का समर्थन किया। उनका शासनकाल समावेशी शासन का एक चमकदार उदाहरण है। रानी लक्ष्मीबाई: झांसी की निडर रानी, रानी लक्ष्मीबाई, साहस का प्रतीक हैं। ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 के विद्रोह के दौरान उनका नेतृत्व भारत की नियति को आकार देने में महिलाओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका की याद दिलाता है। ये ऐतिहासिक आंकड़े भारतीय समाज के समावेशी लोकाचार का उदाहरण हैं, जहां महिलाएं नेता, विद्वान और चेंजमेकर रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक समावेशी समाज का जश्न - लिंग विभाजन के मिथकों को तोड़ना अनिवार्य है I जैसा कि दुनिया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाती है, एक समावेशी समाज के सार पर प्रतिबिंबित करना अनिवार्य है, जहां पुरुष और महिलाएं सह-अस्तित्व, सहयोग और एक साथ पनपते हैं। उदारवादी पारिस्थितिकी तंत्र अक्सर लिंग विभाजन की एक कथा का झूठे प्रचार करता है,अधिप्रचार (Propaganda) उन समस्त सूचनाओं को कहते हैं जो कोई व्यक्ति या संस्था किसी बड़े जन समुदाय की राय और व्यवहार को प्रभावित करने के लिये संचारित करती है। समाजों को स्वाभाविक रूप से पितृसत्तात्मक और दमनकारी के रूप में चित्रित करता है। हालांकि, इतिहास, प्राचीन शास्त्रों और समकालीन प्रथाओं पर करीब से नज़र डालने से एक अलग सच्चाई सामने आती है: समावेशिता सभ्यताओं की आधारशिला रही है, खासकर भारत में।   
भारतीय शास्त्रों ने हमेशा दिव्य स्त्री का जश्न मनाया है, मर्दाना और स्त्री ऊर्जा के बीच संतुलन पर जोर दिया है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम, देवी दुर्गा को समर्पित एक भजन, इस समावेशिता का उदाहरण है। कविता "अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते" (अयी गिरिनंदिनी नंदितामेदिनी विश्वविनोदिनी नंदीनुते) देवी की स्तुति करती है जो दुनिया में खुशी लाती है और लिंग के बावजूद सभी प्राणियों का उत्थान करती है। यह भजन लौकिक संतुलन और सामाजिक सद्भाव बनाए रखने में स्त्री शक्ति के महत्व को रेखांकित करता है। इसी तरह, वेद और उपनिषद महिला विद्वानों और द्रष्टाओं के संदर्भों से भरे हुए हैं। गार्गी, मैत्रेयी और लोपामुद्रा जैसी महिलाओं को न केवल उनकी बुद्धिमत्ता के लिए सम्मानित किया गया, बल्कि दार्शनिक और आध्यात्मिक प्रवचन को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऋग्वेद में विश्ववर, अपाला और रोमाशा जैसी महिलाओं का उल्लेख है, जिन्होंने भजनों की रचना की और समाज की आध्यात्मिक और बौद्धिक संपदा में योगदान दिया। अर्धनारीश्वर की अवधारणा, जहां शिव और शक्ति को एक के रूप में चित्रित किया गया है, मर्दाना और स्त्री ऊर्जा की अविभाज्य प्रकृति का प्रतीक है। यह प्राचीन दर्शन इस विचार को पुष्ट करता है कि समावेशिता एक आधुनिक आदर्श नहीं है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना में सन्निहित एक कालातीत सत्य है।
प्राचीन ग्रंथों में महिलाओं की श्रद्धा से लेकर आधुनिक भारत के सशक्तिकरण की पहल तक, समावेशिता की कथा हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने में गहराई से निहित है। इस लेख का उद्देश्य प्राचीन शास्त्रों, ऐतिहासिक रोल मॉडल और समकालीन पहलों द्वारा समर्थित भारतीय समाज के समावेशी लोकाचार को उजागर करके लिंग विभाजन के नकली प्रचार को खत्म करना है। यह वैश्विक समाजों से समानताएं भी खींचता है ताकि इस बात पर जोर दिया जा सके कि समावेशिता एक आधुनिक निर्माण नहीं बल्कि एक कालातीत परंपरा है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 का विषय है- ‘सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए अधिकार, समानता सशक्तिकरण।’ इस वर्ष का यह विषय सभी के लिए समान अधिकार, शक्ति और अवसर प्रदान करने तथा एक समावेशी भविष्य के लिए कार्य करने का आह्वान करता है जहां कोई भी पीछे न छूटे। इस दृष्टिकोण का मुख्य लक्ष्य अगली पीढ़ी यानि युवाओं, विशेष रूप से युवा महिलाओं और किशोरियों को स्थायी परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में सशक्त बनाना है। वर्ष 2025 एक महत्वपूर्ण क्षण है क्योंकि यह बीजिंग घोषणापत्र और कार्रवाई मंच की 30वीं वर्षगांठ है। खासकर भारत में सरकार विभिन्न नीतियों, योजनाओं और विधायी उपायों के माध्यम से समावेशी समाज और समावेशी लोकाचार की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रही है। देश महिला विकास से महिलाओं के नेतृत्व में विकास की ओर परिवर्तन का गवाह बन रहा है, जो राष्ट्रीय प्रगति में समान भागीदारी सुनिश्चित करता है। महिलाएं भारत के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को आकार देने, शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटल समावेशन और नेतृत्व की भूमिकाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं ।
प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने 3 मार्च, 2025 को, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से पहले नमो ऐप ओपन फ़ोरम पर देश की महिलाओं को अपनी प्रेरक जीवन यात्रा साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने पहले से प्रस्तुत उल्लेखनीय कहानियों की प्रशंसा की जिसमें विभिन्न क्षेत्रों की महिलाओं की दृढ़ता और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला गया। एक विशेष पहल के रूप में उन्होंने घोषणा की कि चयनित महिलाएं अपनी आवाज़ और अनुभवों के विस्तार के लिए 8 मार्च, को उनके सोशल मीडिया अकाउंट संभालेंगी। इस पहल का उद्देश्य महिलाओं के योगदान को स्वीकृति देना और उनके सशक्तिकरण, दृढ़ता और सफलता की यात्रा को प्रदर्शित करके दूसरों को प्रेरित करना है। भारतीय संविधान अपनी प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में प्रावधानों के माध्यम से लैंगिक समानता की गारंटी देता है। अनुच्छेद 14, कानून की नजर में समानता सुनिश्चित करता है जबकि अनुच्छेद 15 लैंगिक आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। अनुच्छेद 51(ए)(ई) नागरिकों को महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं को त्यागने के लिए प्रोत्साहित करता है। निर्देशक सिद्धांत, विशेष रूप से अनुच्छेद 39 और 42, समान आजीविका के अवसर, समान वेतन और मातृत्व राहत पर जोर देते हैं।
भारत निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षरकर्ता है, मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948), नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा (आईसीसीपीआर, 1966), महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (सीईडीएडब्ल्यू, 1979), बीजिंग घोषणापत्र और कार्रवाई मंच (1995), भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (2003), सतत विकास के लिए एजेंडा 2030. खासकर भारत में महिला उत्थान के लिए सरकारी योजनाएँ, सरकार विभिन्न नीतियों, के माध्यम से समावेशी समाज और समावेशी लोकाचार की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रही है।
शिक्षा महिला सशक्तिकरण और आर्थिक स्वतंत्रता की कुंजी है। भारत ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई पहल की हैं कि लड़कियों को प्राथमिक विद्यालय से लेकर उच्च शिक्षा तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच मिले। शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक समानता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है क्‍योंकि हाल के वर्षों में महिला नामांकन पुरुषों के नामांकन से अधिक हो गया है। निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 यह सुनिश्चित करता है कि स्कूल सभी बच्चों की पहुंच में हों। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बाल लिंग अनुपात में सुधार और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करता है। समग्र शिक्षा अभियान: स्कूल के बुनियादी ढांचे और बालिकाओं के अनुकूल सुविधाओं को समर्थन देता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 शिक्षा में लैंगिक समानता और समावेशन को प्राथमिकता देती है। एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय: आदिवासी लड़कियों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देना I 2017-18 से महिला सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) पुरुष जीईआर से आगे निकल गया है। उच्च शिक्षा में महिला नामांकन: 2.07 करोड़ (2021-22), जो कुल संख्या 4.33 करोड़ का लगभग 50 प्रतिशत है। महिला और 100 पुरुष संकाय का अनुपात भी 2014-15 में 63 से बढ़कर 2021-22 में 77 हो गया है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) में महिलाएं: कुल एसटीईएम नामांकन का 42.57 प्रतिशत (41.9 लाख)। एसटीईएम पहल: विज्ञान ज्योति (2020) कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों में लड़कियों के लिए एसटीईएम शिक्षा को बढ़ावा देती है। ओवरसीज फेलोशिप योजना वैश्विक अनुसंधान अवसरों में महिला वैज्ञानिकों को सहायता प्रदान करती है। राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी, स्वयं और स्वयंप्रभा ऑनलाइन शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करते हैं। एसटीईएम क्षेत्रों के लिए विभिन्न छात्रवृत्तियों के अंतर्गत 10 लाख से अधिक छात्राएं लाभान्वित हुईं। कौशल विकास पहल: कौशल भारत मिशन, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई), महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान महिलाओं को व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। महिला प्रौद्योगिकी पार्क (डब्ल्यूटीपी) प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के केन्द्र के रूप में कार्य करते हैं।
स्वास्थ्य और पोषण, महिलाओं के कल्‍याण में सुधार लाने और लिंग आधारित स्वास्थ्य असमानताओं को कम करने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच महत्वपूर्ण है। सरकार ने समाज के सभी वर्गों की महिलाओं के लिए मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, पोषण और चिकित्सा सहायता सुनिश्चित करने के लिए कई नीतियां शुरू की हैं। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को नकद प्रोत्साहन प्रदान करती है। जनवरी 2025 तक 3.81 करोड़ महिलाओं को 17,362 करोड़ रुपए वितरित किए गए। बेहतर मातृ स्वास्थ्य, मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) 130 (2014-16) से घटकर 97 (2018-20) प्रति लाख जीवित जन्म हो गई। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 43 (2015) से घटकर 32 (2020) हो गई। महिलाओं की जीवन प्रत्याशा बढ़कर 71.4 वर्ष (2016-20) हो गई, जिसके 2031-36 तक 74.7 वर्ष तक पहुंचने की उम्मीद है। पोषण और स्वच्छता, जल जीवन मिशन ने 15.4 करोड़ घरों को पीने योग्य नल का पानी उपलब्ध कराया, जिससे स्वास्थ्य संबंधी जोखिम कम हुआ। स्वच्छ भारत मिशन के तहत 11.8 करोड़ शौचालयों का निर्माण हुआ जिससे सफाई एवं स्वच्छता में सुधार हुआ। पोषण अभियान: मातृ एवं शिशु पोषण कार्यक्रमों को मजबूत करता है, उज्ज्वला योजना के तहत 10.3 करोड़ से अधिक रसोई गैस कनेक्शन वितरित किए गए। आर्थिक सशक्तिकरण और वित्तीय समावेशन, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी आर्थिक विकास का एक प्रमुख कारक है। सरकार ने महिलाओं के लिए वित्तीय स्वतंत्रता, उद्यमशीलता और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए कई पहल शुरू की हैं। प्रमुख घरेलू निर्णयों में महिलाओं की भागीदारी: 84 प्रतिशत (2015) से बढ़कर 88.7 प्रतिशत (2020) हो गई। प्रधानमंत्री जन धन योजना: 30.46 करोड़ से अधिक खाते (55 प्रतिशत महिलाओं के) खोले गए। स्टैंड-अप इंडिया योजना: 10 लाख से 1 करोड़ रूपए तक के 84 प्रतिशत ऋण महिला उद्यमियों को स्वीकृत किए गए। मुद्रा योजना: 69 प्रतिशत सूक्ष्म ऋण महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों को दिए गए। एनआरएलएम के अंतर्गत स्वयं सहायता समूह: 9 मिलियन स्वयं सहायता समूहों से 10 करोड़ (100 मिलियन) महिलाएं जुड़ी हुई हैं। बैंक सखी मॉडल: 2020 में 6,094 महिला बैंकिंग प्रतिनिधियों ने 40 मिलियन डॉलर मूल्य के लेनदेन संसाधित किए। रोजगार और नेतृत्व, सशस्त्र बलों में महिलाएं: एनडीए में प्रवेश, लड़ाकू भूमिकाएं और सैनिक स्कूल। नागरिक विमानन: भारत में 15 प्रतिशत से अधिक महिला पायलट हैं जो वैश्विक औसत 5 प्रतिशत से अधिक है। कामकाजी महिला छात्रावास (सखी निवास): 523 छात्रावासों से 26,306 महिलाएं लाभान्वित होंगी। स्टार्टअप में महिला उद्यमी: भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक में 10 प्रतिशत निधि महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप के लिए आरक्षित, डिजिटल और तकनीकी सशक्तिकरण, डिजिटल युग में महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के लिए प्रौद्योगिकी और डिजिटल साक्षरता तक पहुंच महत्वपूर्ण है। सरकार विभिन्न पहलों के माध्यम से महिलाओं को डिजिटल क्रांति का हिस्सा बनाने में सक्रिय रही है। डिजिटल इंडिया पहल, पीएमजीदिशा (प्रधानमंत्री डिजिटल साक्षरता अभियान): 60 मिलियन ग्रामीण नागरिकों को डिजिटल साक्षरता में प्रशिक्षित किया गया। सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी): 67,000 महिला उद्यमी डिजिटल सेवा केंद्र चला रही हैं। आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम): डिजिटल समाधानों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा की सुलभता को बढ़ाना। महिला सशक्तिकरण के लिए संकल्प केन्द्र: 35 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 742 जिलों में कार्यरत, वित्तीय प्रौद्योगिकी और समावेशन, डिजिटल बैंकिंग और आधार से जुड़ी सेवाएं महिलाओं के लिए वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं। सरकारी ई-बाज़ार महिला उद्यमिता और ऑनलाइन व्यापार को प्रोत्साहित करते हैं।
सुरक्षा और संरक्षा महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने और कानूनी तथा संस्थागत सहायता प्रदान करने के लिए कई विधायी उपाय, समर्पित निधि और फास्ट-ट्रैक अदालतें स्थापित की गई हैं। प्रमुख कानूनी ढांचे, आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018: महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के लिए दंड में वृद्धि। घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013, पोक्सो अधिनियम, 2012: बाल दुर्व्यवहार के विरुद्ध कानून को मजबूत किया गया, तीन तलाक पर प्रतिबंध (2019): तत्काल तलाक प्रथाओं को अपराध की श्रेणी में लाना, दहेज निषेध अधिनियम, 1961: दहेज से संबंधित अपराधों को दंडित करता है, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006: नाबालिगों को जबरन विवाह से बचाता है, निर्भया फंड परियोजनाएं (11,298 करोड़ रूपए आवंटित), वन स्टॉप सेंटर (ओएससी): 802 केंद्र क्रियाशील हैं जो दस लाख से अधिक महिलाओं को सहायता प्रदान कर रहे हैं। आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ईआरएसएस-112): 38.34 करोड़ कॉलों का निपटान किया गया। फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (एफटीएससी): 750 न्यायालय चल रहे हैं जिनमें से 408 विशेष रूप से पोक्सो मामलों के लिए हैं। साइबर अपराध हेल्पलाइन (1930) और डिजिटल सुरक्षा के लिए साइबर फोरेंसिक प्रयोगशालाएं। सुरक्षित शहर परियोजनाएं: महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए 8 शहरों में कार्यान्वित की गईं। पुलिस स्टेशनों में 14,658 महिला सहायता डेस्क जिनमें से 13,743 की प्रमुख महिलाएं हैं। संस्थागत और विधायी सुधार, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023: लैंगिक न्याय के प्रावधानों को मजबूत करता है। वैवाहिक बलात्कार (18 वर्ष से कम आयु की पत्नियों के लिए) अपराध घोषित किया गया। यौन अपराधों और तस्करी के लिए सज़ा बढ़ाई गई। गवाह सुरक्षा और डिजिटल साक्ष्य स्वीकार्यता में सुधार हुआ। सीएपीएफ में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: चुनिंदा बलों में 33 प्रतिशत आरक्षण। नारी अदालत: असम और जम्मू-कश्मीर में 50-50 ग्राम पंचायतों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था जिसका अब विस्तार किया जा रहा है।
भारत ने व्यापक नीतियों, लक्षित योजनाओं और कानूनी ढांचों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण में उल्लेखनीय प्रगति की है। आर्थिक भागीदारी से लेकर सुरक्षा, डिजिटल समावेशन से लेकर शिक्षा तक, सरकार की पहलों ने महिलाओं के जीवन में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं। इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक समावेशी, लैंगिक-समान समाज के निर्माण की प्रतिबद्धता की पुष्टि करना बहुत जरूरी है जहां महिलाएं राष्ट्र के भविष्य को आकार देने में मुख्‍य भूमिका निभाती हैं। नीति-निर्माण, सामुदायिक जुड़ाव और डिजिटल समावेशन में निरंतर प्रयास यह सुनिश्चित करेंगे कि महिलाएं आने वाले वर्षों में भारत की विकास गाथा को आगे बढ़ाती रहें। समावेशिता भारत के लिए हीं नहीं यह एक वैश्विक घटना है। दक्षिण एशिया में, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों ने शेख हसीना और सिरिमावो भंडारनायके जैसी महिला नेताओं को देखा है, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सुदूर पूर्व में, जापान की प्राचीन शिंटो परंपराएं सूर्य देवी अमेतरासु का सम्मान करती हैं, जो स्त्री ऊर्जा के महत्व का प्रतीक हैं। मध्य पूर्व में, पूर्व-इस्लामी युग में पलमायरा की रानी ज़ेनोबिया जैसी शक्तिशाली महिलाओं को देखा गया, आधुनिक समय में भी, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने लैंगिक समावेशिता में महत्वपूर्ण प्रगति की है, जिसमें महिलाएं सरकार और व्यवसाय में प्रमुख पदों पर हैं। ये उदाहरण समावेशिता की सार्वभौमिकता को रेखांकित करते हैं, यह साबित करते हुए कि यह एक पश्चिमी निर्माण नहीं है बल्कि एक वैश्विक परंपरा है। जैसा कि हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं, हमें याद रखना चाहिए कि समावेशिता एक नया आदर्श नहीं बल्कि एक कालातीत परंपरा है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम के श्लोकों से लेकर रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी पहलों तक, समावेशिता भारतीय समाज की आधारशिला रही है।अपनी सांस्कृतिक विरासत को अपनाकर और अपने पूर्वजों द्वारा रखी गई नींव पर निर्माण करके, हम वास्तव में एक समावेशी समाज बना सकते हैं जहां पुरुष और महिलाएं एक साथ फलते-फूलते हैं। आइए हम लैंगिक विभाजन के मिथकों को तोड़ें और समावेशी लोकाचार का जश्न मनाएं जिसने हमारे अतीत को परिभाषित किया है और हमारे भविष्य को आकार देगा।

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