सुनील सिंह राठौर की गर्जना: क्या प्रशासन केवल डीजे पर ही सख्त?
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शिवपुरी प्रशासन की कार्यवाही को लेकर एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है—क्या यह सिर्फ़ डीजे तक ही सीमित है? क्या सुबह से गूंजने वाले लाउडस्पीकर प्रशासन की नजरों से ओझल रहते हैं, या फिर उन पर कार्यवाही करने का साहस नहीं किया जाता? नियम यदि हैं, तो सबके लिए समान क्यों नहीं?
बजरंग दल जिला सुरक्षा प्रमुख सुनील सिंह राठौर ने इस विषय पर सोशल मीडिया पर अपने विचार बेबाकी से रखे हैं। उन्होंने जो प्रश्न उठाए हैं, वे केवल उनकी निजी सोच नहीं हैं, बल्कि एक बड़ी संख्या में नागरिकों की जिज्ञासा और असंतोष का प्रतिनिधित्व करते हैं। आखिर क्यों प्रशासन डीजे पर इतनी तत्परता से कार्रवाई करता है, जबकि धार्मिक स्थलों, आयोजनों और अन्य मौकों पर बजने वाले लाउडस्पीकरों को नजरअंदाज कर दिया जाता है? यह प्रशासनिक पक्षपात है या किसी अनकही रणनीति का हिस्सा?
शिवपुरी की गलियों में जब धार्मिक और सामाजिक आयोजनों के दौरान ध्वनि प्रदूषण अपनी चरम सीमा पर होता है, तब क्या प्रशासन की संवेदनशीलता निष्क्रिय हो जाती है? यह प्रश्न केवल एक व्यवस्था पर उंगली उठाने के लिए नहीं, बल्कि न्यायसंगत नीति-निर्धारण की मांग के लिए है। किसी भी समाज में यदि नियम बनाए जाते हैं, तो उन्हें सभी पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। यदि डीजे पर रोक है, तो लाउडस्पीकरों पर भी होनी चाहिए।
सुनील सिंह राठौर की यह आवाज़ केवल उनकी व्यक्तिगत चिंता नहीं, बल्कि प्रशासनिक निष्क्रियता के प्रति एक चेतावनी भी है। उनकी यह निर्भीकता प्रशंसा योग्य है, क्योंकि यह केवल एक डीजे बनाम लाउडस्पीकर का विवाद नहीं, बल्कि न्याय की स्थापना का प्रयास है। जब हम न्याय की बात करते हैं, तो किसी भी प्रकार के भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। प्रशासन को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और ध्वनि प्रदूषण से जुड़ी सभी गतिविधियों पर समान रूप से कार्यवाही सुनिश्चित करनी चाहिए।
शहर की जनता अब यह जानना चाहती है कि प्रशासन का रुख स्पष्ट होगा या नहीं? क्या यह केवल डीजे तक ही सीमित रहेगा या फिर लाउडस्पीकरों पर भी उतनी ही सख्ती दिखाई जाएगी? क्योंकि जब तक नियम सब पर समान रूप से लागू नहीं होंगे, तब तक यह प्रश्न उठते रहेंगे और सुनील सिंह राठौर जैसे लोग बेबाकी से इन्हें उठाते रहेंगे।
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