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शिवरात्रि: जागरण की रात, आत्मा से शिव तक की यात्रा – दिवाकर शर्मा

 

    रात्रि के घने अंधकार में जब चेतना की लौ मंद पड़ने लगती है, तब शिव जागते हैं। शिवरात्रि, वह पावन तिथि है जब समय के अनंत प्रवाह में शिव का तत्त्व सर्वाधिक जागृत होता है। यह केवल एक पर्व नहीं, अपितु एक गूढ़ रहस्य है, जो अध्यात्म के गहनतम तल को स्पर्श करता है। शिव, जो स्वयं में आदि और अनंत हैं, जिनका कोई आदि नहीं, कोई अंत नहीं—वे ही इस रात के केंद्र में स्थित होते हैं। ‘शिव’ शब्द स्वयं में अनंत विस्तार समेटे हुए है। यह केवल एक नाम नहीं, यह एक अनुभव है, अस्तित्व की परम शांति और असीम गहराई का प्रतीक। शिव वह हैं, जो संहारक भी हैं और सृजन के आधार भी। वे संहार में भी मंगल हैं और सृजन में भी। शिव निराकार भी हैं और साकार भी। वे काल के आर-पार बहने वाली शक्ति हैं, जो किसी एक स्वरूप में बंधे नहीं रह सकते। कभी वे नीलकंठ बनकर हलाहल का पान करते हैं, कभी महाकाल बनकर काल को भी ग्रास बना लेते हैं। वे अर्धनारीश्वर भी हैं, जहाँ सृजन और संहार का संतुलन समाहित है।
    शिवरात्रि का रहस्य अत्यंत गूढ़ है। यह केवल व्रत, उपवास और जागरण का पर्व नहीं, यह आत्मजागरण की तिथि है। यह वह रात्रि है जब साधक, भक्त और योगी अपने भीतर स्थित शिव-तत्त्व को पहचानने का प्रयास करते हैं। यह वही रात्रि है जब प्रकृति अपने चरम ऊर्जा-स्तर पर होती है और साधक का शरीर और मन इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है। यह आत्मा के शिवत्व की अनुभूति का पर्व है, जिसमें अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा की जाती है। शिवरात्रि के महत्व को समझने के लिए उन घटनाओं पर दृष्टि डालना आवश्यक है, जो इस तिथि से संबद्ध मानी जाती हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। यह केवल एक लौकिक विवाह नहीं, अपितु प्रकृति और पुरुष के मिलन का दिव्य प्रतीक है। यह शिव और शक्ति के अभिन्न संबंध का उत्सव है, जो संपूर्ण सृष्टि का आधार है। इसी रात्रि को वह काल भी कहा जाता है जब शिव ने सृष्टि के कल्याण हेतु विष का पान कर नीलकंठ का रूप धारण किया था। यह वह क्षण था जब शिव ने संहार के माध्यम से सृजन का बीज बोया।
    शिवरात्रि की रात्रि हमें यह स्मरण कराती है कि शिव केवल मंदिरों में स्थापित मूर्ति नहीं हैं, वे चेतना की पराकाष्ठा हैं। वे भीतर बहने वाली वह शक्ति हैं, जो हमें मोह-माया के बंधनों से मुक्त कर सकती है। इस रात्रि का रहस्य यह है कि यह हमें हमारी सीमाओं से परे ले जाने का अवसर प्रदान करती है। इस रात्रि को जागना मात्र बाहरी साधना नहीं, बल्कि अंतर्मन के शिव को जागृत करने का प्रयास है। यह आत्मा और परमात्मा के मिलन की रात्रि है, जहाँ हर जीव शिव से एकाकार हो सकता है। शिव, जो योगियों के गुरु हैं, जो श्मशानवासी हैं, जो गंगा को जटाओं में धारण करते हैं, जो चंद्रमा को मस्तक पर सजाते हैं—वे हमें यह सिखाते हैं कि संसार में रहते हुए भी उससे परे कैसे जिया जाए। शिवरात्रि का पर्व उसी रहस्य का उद्घाटन करता है। यह आत्म-साक्षात्कार की घड़ी है, यह वह रात्रि है जब समर्पण की पराकाष्ठा पर मनुष्य स्वयं में शिवत्व का दर्शन करता है। यह आत्मा की अनंत यात्रा का प्रारंभ बिंदु है।
    जब पूरा ब्रह्मांड शिव के जागरण में लयबद्ध हो, तब क्या हम स्वयं को इस प्रवाह से अलग रख सकते हैं? नहीं। यह वही क्षण है जब हमें अपनी चेतना को जागृत करना चाहिए, जब हमें अपने भीतर उस शून्यता का आभास करना चाहिए जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड समाहित है। शिव ही ब्रह्म हैं, शिव ही सत्य हैं। और शिवरात्रि वह काल है जब यह सत्य हमारे निकटतम होता है। यह रात हमें बताती है कि शिव वह नहीं जो किसी स्थान विशेष तक सीमित हों, बल्कि वह शक्ति हैं जो प्रत्येक कण में व्याप्त है। यह एक ऐसा अवसर है जब संपूर्ण सृष्टि उस शक्ति की अनुभूति करती है। भक्त इस रात्रि को व्रत रखते हैं, उपवास करते हैं, जल चढ़ाते हैं, बेलपत्र अर्पित करते हैं, क्योंकि यह सब बाहरी अनुष्ठान मात्र नहीं, बल्कि आत्मिक अनुशासन का प्रतीक हैं। यह एक साधना है, जो हमें अपने भीतर की शक्ति को पहचानने और उसे जागृत करने की प्रेरणा देती है। शिवरात्रि का जागरण केवल शारीरिक रूप से जागे रहने का नाम नहीं है, यह मानसिक और आत्मिक जागरूकता का पर्व है। यह वह रात्रि है जब हम अपने भीतर की चेतना को पूर्ण रूप से सक्रिय कर सकते हैं। शिव का ध्यान करने से हमारे भीतर की ऊर्जा संतुलित होती है, हमारा मन शुद्ध होता है और हम उस परम तत्व की अनुभूति कर सकते हैं जो जीवन-मरण से परे है।
    शिव अनादि हैं, शिव सनातन हैं। वे सृष्टि के साक्षी हैं, वे सृष्टि की आत्मा हैं। जब ब्रह्मांड अंधकार में डूब जाता है, तब भी शिव चेतना के रूप में विद्यमान रहते हैं। वे वह शाश्वत प्रकाश हैं, जो काल के आर-पार फैला हुआ है। शिव की आराधना आत्मा को उसी असीम विस्तार का अनुभव कराती है। यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि संसार की क्षणभंगुरता में उलझने के बजाय हमें अपनी आत्मा के शिवत्व को पहचानने की दिशा में बढ़ना चाहिए। शिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, यह एक अनंत यात्रा की शुरुआत है। यह एक उद्घोष है कि जीवन और मृत्यु के इस चक्र में हम भी शिव के समान हो सकते हैं—स्थिर, अचल, और पूर्ण रूप से मुक्त।

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