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पिछोर की जनता का हुंकार: शिवम पांडे के न्याय के लिए सड़कों पर संघर्ष का ऐलान!

 



पिछोर की धरती पर 8 फरवरी 2025 का दिन जनता की आवाज़ बुलंद करने वाला दिन बन गया। प्रशासन द्वारा आयोजित जन समस्या निवारण शिविर में जनता उम्मीद लेकर पहुँची थी कि उनकी समस्याओं का समाधान होगा, लेकिन हकीकत कुछ और थी। अधिकारियों का रवैया अपमानजनक था, जनता की फरियाद अनसुनी की जा रही थी, और प्रशासन की मनमानी चरम पर थी। पर इस बार जनता चुप नहीं थी। इस बार एक आवाज़ गूँज उठी—शिवम पांडे की आवाज़।

शिवम पांडे, जो जनता के हक की बात कर रहे थे, जिन्होंने प्रशासन की अनियमितताओं पर सवाल उठाए, उन्हें ही सत्ता की साजिश का शिकार बना लिया गया। सच बोलने की सजा उन्हें झूठे मुकदमों के रूप में दी गई, धमकियाँ दी गईं, उन्हें डराने की कोशिशें की गईं। लेकिन शिवम झुके नहीं। उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी, और देखते ही देखते यह लड़ाई सिर्फ शिवम की नहीं, पूरे पिछोर की लड़ाई बन गई।

जनता अब चुप नहीं बैठ सकती थी। अन्याय के खिलाफ विरोध की चिंगारी सुलग चुकी थी। लोगों ने प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सैकड़ों नागरिकों ने संगठित होकर प्रशासन को ज्ञापन सौंपा, जिसमें दो मुख्य माँगें रखी गईं—

1. शिवम पांडे पर लगाए गए सभी झूठे मुकदमों को तुरंत वापस लिया जाए।

2. जन समस्या निवारण शिविर में हुई प्रशासनिक अनियमितताओं की उच्च स्तरीय जाँच कर दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।


इसके अलावा, जनता ने यह भी माँग की कि भविष्य में जब भी जन समस्या निवारण शिविर लगे, वहाँ प्रशासनिक मनमानी न हो और जनता की आवाज़ को दबाने के प्रयास बंद किए जाएँ। शिवम पांडे और उनके परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने की भी माँग उठी।

जनता ने प्रशासन को स्पष्ट चेतावनी दी—यदि 7 दिन के भीतर शिवम पांडे को न्याय नहीं मिला, तो पिछोर की सड़कों पर जनसैलाब उमड़ेगा, और प्रशासन को जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ेगा। यह सिर्फ ज्ञापन नहीं था, यह जनता का संकल्प था।

विशेष रूप से यह विरोध केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के जन समस्या निवारण शिविर में प्रशासनिक अनियमितताओं, जनता की आवाज दबाने तथा सत्य उजागर करने वालों पर दमनात्मक कार्यवाही के विरोध में किया गया। इस संदर्भ में जनता ने एसडीएम को ज्ञापन सौंपकर दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की माँग की।

शिवम पांडे अब सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि अन्याय के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बन चुके थे। यह आंदोलन सत्ता की हठधर्मिता और जनता के सब्र की परीक्षा थी। पिछोर की जनता अब यह दिखाने को तैयार थी कि जब आवाज़ें एक साथ उठती हैं, तो कोई भी तानाशाही उन्हें दबा नहीं सकती।

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