अर्जुन सिंह को हराने वाले सुखलाल की कहानी,पत्रकार की जुबानी।




यह कहानी है एक साधारण व्यक्ति की जो अपने घर के लोगों को जलील होते देख कर प्रतिकार कर बैठा और फिर परिस्थितियों की लहरों पर सवार हो लोकसभा तक पहुंचा, बाद में जिसका अंत कुंठा और गहरी निराशा के दौर में आत्महत्या से हुआ। वास्तव में, दुनिया सुखलाल को 1996 में तब जानी जब वे सतना सीट से अर्जुन सिंह, वीरेंद्र कुमार सखलेचा और तोषण सिंह पटेल को पराजित कर सांसद बने। मगर मैं तो उन्हें सन 89 से जानता था जब वे अमरपाटन तहसील के कठहा गाँव में तीन शासकीय (ब्राह्मण) कर्मचारियों की हत्या के जुर्म में कैद होकर सुर्ख़ियों में आये थे।

ठीक-ठीक तारीख़ अवश्य भूल गया हूँ पर उस दिन की एक-एक बात याद है। भाजपा नेता और तत्कालीन वित्त मंत्री रामहित गुप्ता के पुत्र केशव भारती वन विभाग और एस.ए.एफ. के जवानों की हत्या के दूसरे दिन सुबह मेरे पास यह कहते हुए आए कि "आओ आज आपको कठहा अमरपाटन घुमा लायें।" जंगली लकड़ी पकड़ने ग्रामीणों के घर छापामारी करने गए हथियारबंद शासकीय कर्मचारियों के मारे जाने की घटना सनसनीखेज थी ! मैं उस समय दैनिक जागरण सतना का ब्यूरो प्रमुख व जनसत्ता दिल्ली का संवाददाता था अतएव मैंने कवरेज लायक खबर सूंघकर कठहा जाना तय किया। फोटोग्राफर हनीफ और हमको लेकर केशव भारती की उस समय की भगवा रंग की मशहूर जीप अमरपाटन 10 बजे पूर्वान्ह पहुंची। मैंने बसस्टैंड तिराहे पर पहुँच कर अपने अखबार के संवाददाता श्री रामखिलावन पटेल को बुला कर जीप में बैठा लिया। रामखिलावन अभी पिछली पंचवर्षीय में विधायक रह चुके हैं मगर उस समय वे दवा की अपनी एक दुकान चलाते थे और जागरण अखबार की एजेंसी लिए थे लिहाजा लोकल पत्रकार भी थे।

रास्ते में केशव भारती ने ब्रीफ किया कि हत्याओं के सिलसिले में कई काछी गिरफ्तार किये गए हैं । मैंने कहा कि इन लोगों में इतना हिम्मती कौन पैदा हो गया जिसने थ्री नॉट थ्री राइफल से लैस जवानों को कट्टे से मार डाला तो केशव जी ने बताया कि नवगवां बजवाही का एक लड़का सुखलाल है । वह भी बंद है। सब लॉकप में हैं। अभी जेल नहीं भेजे गए हैं। ठुकाई चल रही है !

अमरपाटन के थाना प्रभारी श्रीधर द्विवेदी थे जो हम लोगों के पूर्व परिचित थे ! चाय-नाश्ता के बाद मैंने थानेदार की जुबानी हत्या की पूरी कहानी सुनी और हिरासत में लिए गए लोगों खासतौर से सुखलाल से मिलने की इच्छा व्यक्त की ! द्विवेदी जी ने निवेदन किया कि बात कर लीजिये मगर कृपया लॉकप में फोटो मत खींचियेगा ! हमने कहा- नहीं खींचेंगे !

मैं लॉकप के सामने खड़ा हो गया ! भीतर दिन में भी अँधेरा दिख रहा था ! मैंने ध्यान से देखा तो थोड़ी सी जगह पर कई लोग जैसे ठुंसे हुए बैठे दिखाई पड़े ! और ध्यान से देखा तो आँखों पर विश्वास नहीं हुआ- सभी नग्न थे ! मैंने द्विवेदी जी से पूंछा कि इनके कपड़े, तो वे बोले- “कौनू आंसी-फांसी लगाय लेय ता नौकरी ता मोर जई ना !” मैंने कहा- इनमें सुखलाल कौन है ! सुखलाल...द्विवेदी जी के आवाज लगाने पर हल्की दाढ़ी रखे एक युवक धीरे से सींखचों की तरफ आया जो काफी मार खाया व डरा-डरा दिख रहा था ! अपने बन्धु-बांधवों के साथ वह भी नग्न था और किंचित उसी वजह से संकुचा रहा था !

मैंने जेब से 20 का एक नोट निकाल कर लॉकप से कुछ दूर खड़े रामखिलावन जी को अपने पास बुलाया और किसी दुकान से एक तौलिया लाने को कहा ! रामखिलावन बिना नोट लिए बाजार की तरफ दौड़ गए और एक तौलिया लेकर आये जो मैंने सुखलाल को लपेटने के लिए दी ! कमोवेश अँधेरी कोठरी में खड़े सुखलाल को गौर से देखने के लिए मैंने सींखचों के नजदीक अपना चेहरा किया तो अन्दर से टट्टी-पेशाब की दुर्गन्ध आई ! सुखलाल का इंटरव्यू हाँ-हूँ मैं हुआ ! गोरा के रहने वाले हो- हाँ ! कठहा में रिश्तेदारी है- हूँ ! रेन्जर पाण्डेय वगैरह को तुमने मारा है- हूँ !

लॉकप में बंद लोगों से मिलने के बाद हम सब कठहा गए और घटना स्थल को देखा ! वहां कुशवाहा समाज के घरों में सन्नाटा था ! सभी तो थाने में बंद थे ! कुछ घरों में महिलायें थीं जो घूंघट में मौन थीं ! एक-दो से कुछ पूंछना चाहा तो उन्होंने नाहीं में सिर हिलाया कि उन्हें कुछ नहीं मालूम ! कोई आवाज भी नहीं सुनी !

शाम को सतना से दैनिक जागरण रीवा को फालोअप समाचार भेजने के बाद मैंने जनसत्ता की उस समय की तासीर के मुताबिक़ विस्तृत समाचार लिखा जो पूरे आठ कॉलम शीर्षक और बाइलाइन के साथ लगभग आधे पेज में प्रकाशित हुआ ! उस समाचार में सब कुछ था ! विन्ध्य की कैमूर पर्वत रेंज के किनारे-किनारे गांवों में वन विभाग और एसएएफ का संयुक्त छापा, घर-घर में जंगली लकड़ी की तलाश, कठहा गाँव में एक कुशवाहा के घर अटारी में भूसा में दबीं हुईं सागौन की सिल्लियां मिलना, संबंधित व्यक्ति को रेंजर द्वारा हड़काया जाना, पास के गाँव गोरा में युवक सुखलाल का यह सुनना कि कठहा में लकड़ी मिलने पर सरकारी कारिंदे उसके रिश्तेदार को धमका रहे हैं, सुखलाल का अपने कुछ साथियों के साथ गोरा से कठहा पहुंचना और संक्षिप्त विवाद के बाद कट्टे से गोली चला कर दो लोगों को मौके में मार डालना, एक की बाद में अस्पताल में मौत होना, दूसरे दिन से पुलिस की सक्रियता, गोरा-कठहा और आसपास के कुशवाहों की धरपकड़, जमकर ठुकाई और लॉकप का वह दृश्य ! मानवाधिकार का सवाल और अंत में कांशीराम से गुहार कि दलितों का नेता आज कहाँ है !

कुछ दिनों बाद 93 के विधानसभा चुनाव हुए ! सुखलाल को बसपा ने अमरपाटन से टिकट दी ! उसने जेल में रहकर चुनाव लड़ा और सम्मानजनक वोट पाए ! कुछ दिनों बाद जमानत हो गई ! उन्हीं दिनों की बात है ! एक रात को जगतदेव तालाब की मेड़ पर बने महेंद्र सिंह पटेल (दलदल) के घर में डॉ. के.बी. सिंह, नकैला वाले पंडित जी और हम खा-पी रहे थे कि तभी महेंद्र सिंह दलदल को उनके नौकर नारायण ने बताया कि सुखलाल और उसके साथ तीन-चार आदमी मिलने आये हैं ! महेंद्र सिंह ने पुंछवाया कि - पूंछो रात में क्या काम है ! तो जबाब में नौकर ने बताया कि सुखलाल जेल से छूटे हैं तो आपका आशीर्वाद लेने आये हैं ! उस रात महेंद्र सिंह जी के साथ उनके यहाँ सुखलाल से मेरी मुलाक़ात स्थाई हो गई ! महेंद्र सिंह जी उसके केस और बाद में उसके चुनाव में नजदीकी सहायक रहे हैं और सुखलाल ने देखा कि मैं उनके साथ उठने-बैठने वाला आदमी हूँ ! जाते वक्त मुझसे दो-तीन बार हाँथ मिलाये !

फिर जब भी सुखलाल पेशी पर या यूँ ही सतना आते, जागरण दफ्तर अवश्य पहुँचते ! सुखलाल के बयान बिथ फोटो अखबार में छपने लगे ! रामहित गुप्ता से लेकर कांग्रेस नेता राजेन्द्र कुमार सिंह के ऊपर तक सुखलाल खुल्लमखुल्ला आरोप लगाते और विभिन्न विषयों पर राजनैतिक बयान देते ! 2-3 साल ही बीते थे कि सुखलाल को बसपा ने (1996 में) अर्जुन सिंह और सखलेचा के खिलाफ टिकट दे दी !

सभी सुखलाल को हल्के में ले रहे थे लेकिन मैं नहीं ! पूरे चुनाव के दौरान समय-समय पर सुखलाल के साक्षात्कार प्रकाशित करता रहा ! जिस दिन अर्जुन सिंह के प्रचार के लिए कपिल देव और मनोज प्रभाकर आये उस दिन सुखलाल का साक्षात्कार छापा- “हमारे वोटर क्रिकेट नहीं खेलते, वे जंगल पहाड़ों में बसे हैं !” सतना के वोटों की गिनती दो दिन और दो रात बराबर चली तब भी रिजल्ट नहीं निकला ! पूरे देश के रिजल्ट आ चुके थे ! तीसरी रात मैं तत्कालीन चुनाव की एक महिला पर्यवेक्षक के तम्बू में बैठा कॉफी पी रहा था, जिनसे चुनाव के दौरान मेरी दोस्ती हो चुकी थी ! जब उनसे मैंने कहा कि सतना में मतगणना अवधि का अपना कीर्तिमान बनने वाला है ! अभी और कितने दिन यहाँ वोट गिने जायेंगे तो उन्होंने बताया- “आपके सुखलाल जी चुनाव जीत चुके हैं ! कुछ फोर्मेलटीज बाकी है ! सुबह आठ बजे कलेक्टर रिजल्ट डिक्लेयर करेंगे !”

मैं तम्बू से बाहर निकला ! सखलेचा जी ने कोई शिकायत की थी ! कलेक्टर के.के.सिंह, सखलेचा, अभिमन्यु सिंह और सुखलाल अपने दो-दो, तीन-तीन समर्थकों के साथ वहीँ बैठे थे ! मैंने वहां पहुँच कर सुखलाल से गर्मजोशी से हाँथ मिलाया, उन्होंने प्रश्नवाचक निगाह से देखा तो मैंने मुस्कुराते हुए आँख मारी तथा गणना पंडाल से बाहर निकल कर अपने प्रेस में खबर देने के लिए अपनी यज्दी दौड़ाते चल पड़ा !

सुखलाल की वह सांसदी ढाई साल ही चली ! बाद में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे ! कई चुनाव लोकसभा विधानसभा के लड़े मगर दुबारा नहीं जीते ! दो साल पूर्व वे अपने घर की छत से गिरकर दुर्घटनाग्रस्त हो गए ! दिल्ली के डॉक्टर्स ने कह दिया कि अब आप जीवन में कभी चल नहीं पाएंगे ! विषाद और निराशा के हालातों में उन्होंने स्वयं को गोली मार ली ! कई नेताओं की किस्मत बनाने बिगाड़ने के लिए वे लम्बे समय तक याद किये जायेंगे !



लेखक - निरंजन शर्मा (पत्रकार)

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