"नई लीडरशिप, पुराने सवाल: भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र की चुनौती" - दिवाकर शर्मा

 

भारतीय जनता पार्टी अपने अनुशासन और आंतरिक लोकतंत्र के लिए पहचानी जाती है, लेकिन हाल के जिलाध्यक्षों की घोषणाओं ने इस छवि पर एक नई बहस को जन्म दिया है। पार्टी के निर्णयों में जहां आंतरिक लोकतंत्र की झलक मिलनी चाहिए थी, वहां अब आंतरिक अनुशासन का प्रभाव अधिक स्पष्ट दिखता है। यह अनुशासन भले ही संगठन की मजबूती का प्रतीक हो, लेकिन इसके पीछे सुलग रही असंतोष की चिंगारी भविष्य में चुनौती बन सकती है।

भाजपा ने हमेशा से पीढ़ी परिवर्तन को अपने विकास का आधार बनाया है। हर स्तर पर सेकेंड लाइन लीडरशिप तैयार करने की परंपरा इसकी रीति-नीति का हिस्सा रही है। यही कारण है कि पार्टी समय-समय पर नई पीढ़ी को नेतृत्व सौंपती रही है। लेकिन सवाल यह है कि यह नई नेतृत्व पीढ़ी संगठन की नीतियों और परंपराओं के साथ कितना तालमेल बिठा पाती है। सिर्फ पद प्राप्त करना पर्याप्त नहीं है; उसे यह भी साबित करना होगा कि वह संगठन के निर्णय का परिणाम है, न कि किसी एक व्यक्ति की कृपा का।

जिन नेताओं को कृपा पात्र माना जा रहा है, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी छवि को सुधारने की है। उन्हें अपने काम और निर्णयों से यह सिद्ध करना होगा कि वे संगठन की विचारधारा के प्रति समर्पित हैं। यदि वे ऐसा करने में असफल रहते हैं, तो यह न केवल संगठन के भीतर असंतोष को बढ़ावा देगा, बल्कि कार्यकर्ताओं और आम जनता में गलत संदेश भी जाएगा।

इस बीच, गुटबाजी एक ऐसा पहलू बनकर उभरी है, जो भाजपा की आंतरिक शक्ति को चुनौती दे सकता है। चर्चा इस बात पर होनी चाहिए थी कि जिलाध्यक्षों की नियुक्ति रायसुमारी के आधार पर हुई है या नहीं, लेकिन इसके बजाय यह देखा जा रहा है कि कौन सा गुट भारी पड़ रहा है। यह स्थिति संगठन के लिए खतरनाक संकेत है। भाजपा जैसी विचारधारा-आधारित पार्टी में यदि गुटीय राजनीति हावी हो गई, तो यह संगठन के मूलभूत ढांचे को कमजोर कर सकती है।

गुटबाजी करने वाले नेताओं को संगठन से सख्त संदेश देने का समय आ गया है। ऐसे नेताओं को लूपलाइन में डालना और संगठन के निर्णयों को प्राथमिकता देना आवश्यक है। यदि इसे अनदेखा किया गया, तो पार्टी कांग्रेस की तरह गुटीय राजनीति में उलझ सकती है। इससे पार्टी की छवि और कार्यक्षमता दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

जिलाध्यक्षों की घोषणा के बाद भले ही सब कुछ शांत दिख रहा हो, लेकिन इसके नीचे एक अदृश्य असंतोष सुलग रहा है। यह असंतोष तभी शांत होगा, जब संगठन पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्यों को प्राथमिकता देगा। गुटीय राजनीति को समाप्त करना और नेतृत्व को संगठन की नीतियों के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करना ही भाजपा को इस चुनौती से उबार सकता है।

भाजपा की ताकत उसकी अनुशासन और नीतियों में निहित है। यदि इसे बनाए रखने में थोड़ी भी ढील दी गई, तो इसका प्रभाव दीर्घकालिक होगा। अब समय है कि पार्टी न केवल अपने निर्णयों को मजबूत और स्पष्ट करे, बल्कि उन कार्यकर्ताओं और नेताओं का भी मार्गदर्शन करे, जो संगठन की परंपराओं को जीवित रखने का माद्दा रखते हैं। यह केवल संगठन की मजबूती ही नहीं, बल्कि इसकी स्थायित्व और लोकप्रियता के लिए भी आवश्यक है।

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