कुंभ मेला महातीर्थ प्रयागराज, उत्तर प्रदेश 2025 - डॉ. अमरीक सिंह ठाकुर

 



महाकुंभ का इतिहास महाकुंभ नदियों, संस्कृति, आध्यात्मिकता और मानवता का संगम है। यह भारत में आयोजित किया जाता है, यह विशाल सभा दुनिया भर से लाखों भक्तों को आकर्षित करती है, जिससे यह दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक सभाओं में से एक बन जाती है। यह हिंदू पौराणिक कथाओं में अपना इतिहास पाता है, जिसमें आकाशीय मंथन शामिल है। ऋग्वेद सागर मंथन नामक एक दिव्य घटना की बात करता है, जिसे महाकुंभ मेले का मूल माना जाता है। किंवदंतियों के अनुसार देवताओं (देवों) और राक्षसों (असुरों) ने अमरता के अमृत को प्राप्त करने के लिए मांडरा पर्वत का उपयोग करके आदिम महासागर का मंथन किया।कार्य के लिए इन देवताओं और राक्षसों के बीच एक अस्थायी संघर्ष विराम की आवश्यकता थी, जिसमें अमृत को समान रूप से साझा करने का वादा किया गया था। हालाँकि, जब अंततः अमृत का उत्पादन किया गया, तो इसके कब्जे को लेकर लड़ाई शुरू हो गई। राक्षसों से अमृत की रक्षा के लिए, भगवान विष्णु ने जादूगरनी मोहिनी के रूप में, अमृत युक्त कलश (कुंभ) को दूर कर दिया। पीछा करने के दौरान, चार बूंदें पृथ्वी पर गिर गईं, जिन्हें अब हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक के रूप में जाना जाता है, जिससे उन्हें पवित्र किया गया। तभी से इन स्थानों को पवित्र माना जाता है।महाकुंभ मेले के सटीक समय को निर्धारित करने के लिए, पृथ्वी के चारों ओर बृहस्पति (बृहस्पति) और सूर्य की स्थिति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चार स्थानों में से प्रत्येक विशिष्ट खगोलीय संरेखण से मेल खाता है, जो त्योहार के लिए शुभ तिथियों को चिह्नित करता है।

कुम्भ क्या है?


ऐसा कहा जाता है कि महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण करके उन्हें परास्त कर दिया थाI ऐसे में सब देवता मिलकर विष्णु भगवान के पास गए और सारा व्रतांत सुनाया. तब भगवान ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र यानी क्षीर सागर में मंथन करके अमृत निकालने को कहाI ये दूधसागर ब्रह्मांड के आकाशीय क्षेत्र में स्थित है। सारे देवता भगवान विष्णु जी के कहने पर दैत्यों से संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गएI जैसे ही समुद्र मंथन से अमृत निकला देवताओं के इशारे पर इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर उड़ गयाI इस पर गुरु शंकराचार्य के कहने पर दैत्यों ने जयंत का पीछा किया और काफी परिश्रम करने के बाद दैत्यों ने जयंत को पकड़ लिया और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और राक्षसों में 12 दिन तक भयानक युद्ध चला रहाI ऐसा कहा जाता है कि इस युद्ध के दौरान प्रथ्वी के चार स्थानों पर अमृत कलश की कुछ बूंदे गिरी थीI जिनमें से पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन और चौथी नासिक में गिरी थीI इसीलिए इन्हीं चार जगहों पर कुम्ब मेले का आयोजन किया जाता हैI यहीं आपको बता दें की देवताओं के 12 दिन, पृथ्वी पर 12 साल के बराबर होते हैंI इसलिए हर 12 साल में महाकुम्भ का आयोजन किया जाता हैI कुछ ज्योतिषीय महत्त्व भी है वह सब यहां बताया तो लेख बहुत ज्यादा लम्बा हो जायेगा।


घुमाफिरा कर यही कथा हर जगह आई है कि पौराणिक काल में समुद्र मंथन के बाद जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तो उस मंथन से अमृत का घट निकलाI अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया, जिसके चलते भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को अमृत के घड़े की सुरक्षा का काम सौंप दियाI गरुड़ जब अमृत को लेकर उड़ रहे थे, तब अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों – प्रयाग, हरिद्वार,उज्जैन और नासिक में गिर गईंI तभी से हर 12 वर्ष बाद इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता हैI वैसे इस कथा को जब आप डिकोड कर लेंगे तो कुंभ और अमृतकुंभ दोनों शब्दों के अर्थ बदल जाएंगे।


सारे नवग्रहों में से सूर्य, चंद्र, गुरु और शनि की भूमिका कुंभ में महत्वपूर्ण मानी जाती हैI जब अमृत कलश को लेकर देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था तब कलश की खींचा तानी में चंद्रमा ने अमृत को बहने से बचाया, गुरु ने कलश को छुपाया था, सूर्य देव ने कलश को फूटने से बचाया और शनि ने इंद्र के कोप से रक्षा कीI इसीलिए ही तो जब इन ज्र्हों का योग संयोग एक राशि में होता है तब कुंभ मेले का आयोजन होता हैI


भारत में यह मेला बहुत अनूठा है जिसमें पूरी दुनिया से लोग आते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं. इसका अपना ही धार्मिक महत्व है और यह संस्कृति का भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता हैI यह मेला लगभग 48 दिनों तक चलता हैI मुख्य रूप से दुनिया भर से साधू,महात्मा, संत,योगी,सन्यासी,यति, तपस्वी, तंत्रिक,मान्त्रिक, याज्ञिक, तीर्थयात्री, कल्पवासी, के साथ साथ समस्त श्रद्धालु भक्त इसमें भाग लेते हैंI


कुंभ गंगा यमुना सरस्वती का संगम पर लगता है,तीर्थों के तटों पर लगता है, प्रयाग तो वैसे महातीर्थ है। कुंभ में बहुत सारे सन्यासी इकट्ठे होते है। तंत्रयोग का एक सर्वमान्य सिद्धान्त है जिस जगह सारे संत, ज्ञानी, अद्वैत स्वरूपी चेतना, योगी, महात्मा, सन्यासी अपनी अपनी आध्यात्मिक विधाओं के श्रेष्ठतम लोग इकट्ठे होकर अपनी अपनी पद्धति से साधना करते हैं तो परमात्मा उस स्थान पर ऊर्जा का स्रोत खुद ही खोल देता है। जन सामान्य के लिए यह बहुत बड़ा अवसर होता है अध्यात्म लाभ के लिए। वैसे भी सामान्यजन उनसे अपनी जिज्ञासाओं का समाधान कर लेते हैं। कुंभ में परम्परा है, बहुत सारे कल्पवासी एक-एक अलग अलग संत का पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं।


कहते हैं ब्रह्मांड एक ही जगह एक ही तरह चैतन्य आनंद शक्ति के लिए एकत्रित लोगों के लिए वह स्थल पूरी तरह खोल देता है। तब उसे तीर्थ कहते हैं। इतने सारे संत-महात्माओं, जोगियो के इकट्ठे होने से वह सर्कल पूरी तरह स्वयं में ही चैतन्य होती है और वहां इकट्ठे लोगों में एक तरह का पूर्ण शक्तिपात होने लगता है। बहुत सारे लोगों का कर्मक्षय पापक्षय स्वयं ही होने लगता है। यह उनके ज्ञान का रास्ता भी खोल देता है।


इसी उद्देश्य से हजारों साल पहले हमारे तत्कालीन मनीषियों ने लोगों को इसीलिए इकट्ठा किया था कि एक जगह इकट्ठा होकर वे अध्यात्म पर वर्कशॉप, सेमिनार, मीटिंग्स आदि करेंगे, अध्यात्म विषयों पर वहां इकट्ठा हुए तमाम विशेषज्ञों से प्रशिक्षण ले सकें। वहां समस्त सनातनी(हिंदू) पंथ संप्रदायों शैव,वैष्णव, पांचरात्र, वैखानस, साक्त,पाशिपत्य,लिंगायत कापालिक, मांगलिक,गानपत्य,समस्त मतों की लीडरशिप अपने मठ सहित अवश्य ही आती है। साथ ही बौद्ध और जैनों के भी सभी मत कुंभ में आते है।सभी को वार्ता,शास्त्रार्थ, ट्रेनिंग, ज्ञान सीखने के अनन्त अवसर सहज ही वहां मिल जाते है।


पूर्ण महाकुंभ मेला: यह केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है. यह प्रत्येक 144 वर्षों में या 12 महाकुंभ मेले के बाद आता हैI



महाकुंभ मेला: यह हर 12 साल में आता है. मुख्य रूप से भारत में 4 कुंभ मेला स्थान यानि प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किए जाते हैं. यह हर 12 साल में इन 4 स्थानों पर बारी-बारी आता हैI



अर्धकुंभ मेला: इसका अर्थ है आधा कुंभ मेला जो भारत में हर 6 साल में केवल दो स्थानों पर होता है यानी हरिद्वार और प्रयागराजI



कुंभ मेला: चार अलग-अलग स्थानों पर राज्य सरकारों द्वारा हर तीन साल में आयोजित किया जाता है. लाखों लोग आध्यात्मिक उत्साह के साथ भाग लेते हैंI



माघ कुंभ मेला: इसे मिनीकुंभ मेले के रूप में भी जाना जाता है जो प्रतिवर्ष और केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता हैI यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ के महीने में आयोजित किया जाता हैI



महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का जीवंत संगम है, जो लोगों को अपनी आस्था को पुनः जागृत करने और ईश्वर के निकटता का अहसास दिलाने का अवसर प्रदान करता है. प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का यह आयोजन सभी श्रद्धालुओं के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव बनने जा रहा है, जहां करोड़ों लोग आस्था, एकता और श्रद्धा के इस अद्वितीय पर्व में भाग लेकर आत्मिक शांति का अनुभव करेंगेI


देशभर में अखाड़ों की कुल संख्या 13 है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये सभी अखाड़े उदासीन, शैव और वैष्णव पंथ के संन्यासियों के हैं। 7 अखाड़ों का संबंध शैव संन्यासी संप्रदाय से हैं और 3 अखाड़े बैरागी वैष्णव संप्रदाय के हैं। इसके अलावा उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं।


- कुंभ मेले का पहला लिखित प्रमाण भागवत पुराण में उल्लिखित है. कुंभ मेले का एक अन्य लिखित प्रमाण चीनी यात्री ह्वेन त्सांग (या Xuanzang) के कार्यों में उल्लिखित है, जो हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान 629-645 ईस्वी में भारत आया थाI साथ ही, समुंद्र मंथन के बारे में भागवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत और रामायण में भी उल्लेख किया गया हैI


- स्नान के साथ कुंभ मेले में अन्य गतिविधियां भी होती हैं, प्रवचन, कीर्तन और महा प्रसादI


- इसमें कोई संदेह नहीं कि कुंभ मेला कमाई का भी एक प्रमुख अस्थायी स्रोत है जो कई लोगों को रोजगार देता हैI


- कुंभ मेले में, पहले स्नान का नेतृत्व संतों द्वारा किया जाता है, जिसे कुंभ के शाही स्नान के रूप में जाना जाता है और यह सुबह 3 बजे शुरू होता है. संतों के अमृत(अमृत) स्नान के बाद आम लोगों को पवित्र नदी में स्नान करने की अनुमति मिलती हैI


- हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि जो इन पवित्र नदियों के जल में डुबकी लगाते हैं, वे अनंत काल तक धन्य हो जाते हैं। यही नहीं, वे पाप मुक्त भी हो जाते हैं और उन्हें मुक्ति के मार्ग की ओर ले जाता हैI महाकुंभ 2025 का महत्व अंक ज्योतिष के अनुसार और भी बढ़ जाता है क्योंकि इस साल और 144 वर्षों बाद बनने वाले दुर्लभ संयोग का संबंध मूलांक 9 से है। साल 2025 की सभी संख्याओं (2+0+2+5) का योग 9 है, जो मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। मंगल को ऊर्जा, साहस, दृढ़ता और इच्छाशक्ति का कारक माना जाता है।


इसके अलावा, 144 वर्षों का योग भी 9 (1+4+4) है, जो इस संयोग को और अधिक विशेष बनाता है। अंक 9 का संबंध कर्म और आध्यात्मिक उन्नति से होता है। यह किसी व्यक्ति के जीवन में नई शुरुआत और आत्म-सुधार की ओर संकेत करता है।


2025 प्रयागराज कुंभ मेला ; जिसे 2025 महाकुंभ के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया में ऐसा कोई भी राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक या आर्थिक संगठन नहीं है, जो 30-40 करोड़ लोगों को जुटाने और उनके बीच अनुशासन बनाए रखने का दावा कर सके। यह उपलब्धि केवल महाकुंभ के हिस्से है, जहां श्रद्धालु अपनी आत्मा की आवाज को सुनकर और विश्वास से भरकर आते हैं। कुंभ भारत की धर्मपरायण संस्कृति की उच्चता को ही प्रदर्शित नहीं करता, यह विभिन्न समुदायों के बीच धार्मिक और आध्यात्मिक संवाद की परंपरा का अग्रदूत भी है। यह महाकुंभ भारत की महान धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संस्कृति का सामूहिक प्रकटीकरण है। देश के लिए यह बेहद खुशी की बात है कि महाकुंभ के दौरान ही भारतीय सनातन संस्कृति के प्राण भगवान श्रीराम के अयोध्या में निर्मित भव्य मंदिर का एक साल पूरा होगा। यह भी सुखद संयोग है कि श्रीराम का जन्मस्थान उत्तर प्रदेश में है और इस बार का महाकुंभ भी इसी प्रदेश में आयोजित हो रहा है। इसलिए प्रयागराज महाकुंभ में केवल तीन पवित्र नदियों का त्रिपक्षीय मिलन ही नहीं, दो सनातन संस्कृतियों का महासम्मिलन भी होने जा रहा है। यह कहने में कोई हिचक नहीं कि यह महाकुंभ राष्ट्र की उज्ज्वल छवि को वैश्विक स्तर तक स्वीकृति और प्रशस्ति दिलाने का शानदार अवसर साबित होगा।

मकर संक्रांति पर्व से प्रयागराज में ऐतिहासिक महाकुंभ का आगाज होने जा रहा है। यह भारत ही नहीं, पूरे विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होगा। इस बार इसमें 40-45 करोड़ श्रद्धालुओं के जुटने की संभावना है। कुंभ, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारतीय संस्कृति की विविधता को एकता के सूत्र में पिरोता है। यह उत्सव विभिन्न भाषाओं, चिंतन परंपराओं, प्रथा और विश्वासों, सामाजिक व धार्मिक शिक्षा और आध्यात्मिक चिंतन के बीच एक पवित्र सेतु का कार्य करता रहा है। देश में आज विभिन्न धर्म और संस्कृतियों के बीच खुद को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ है। ऐसे समय में कुंभ जैसे आयोजन भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सहनशीलता को अपने अंदर समेटे हुए हैं। देश में संस्कृति की निरंतरता के लिए कई तरह के आयोजन और प्रयोजन होते रहे हैं। तीर्थयात्रा और मेले भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाने व उसको विस्तार देने के ही उपक्रम हैं। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, पुरुषार्थ के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति मनुष्य की अंतिम इच्छा रही है। कुंभ का स्नान भी मोक्ष प्राप्ति का ही एक पवित्र साधन है। इस बार संगम नगरी में होने वाला आयोजन हाईटेक होगा। सीएम योगी आदित्यनाथ का मानना है कि महाकुंभ के माध्यम से भारत की सनातन संस्कृति का सम्यक साक्षात्कार करने का हमारे पास सुनहरा अवसर है। यह आयोजन केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि भारत की ग्लोबल ब्रैंडिंग का महत्वपूर्ण माध्यम बनेगा। इस बार स्वच्छता, सुरक्षा और सुविधाओं के नए मानक स्थापित होने की उम्मीद है। महाकुंभ को दिव्य और भव्य बनाने के लिए इसे नया जिला ही घोषित कर दिया गया है।

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा , यमुना और सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर आयोजित किया जाएगा , यह 12 साल में एक बार होने वाला आयोजन होगा जो 13 जनवरी 2025 को शुरू होगा और 26 फरवरी 2025 को समाप्त होगा। इस आयोजन के बाद 2019 प्रयाग कुंभ मेले का अर्ध कुंभ होगा। इसमें लगभग 400 मिलियन आगंतुकों के आकर्षित होने की उम्मीद है । हिंदू धर्म में 12 साल की अवधि में एक बार आयोजित होने का इसका महत्व है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत की लड़ाई 12 साल तक चली थी। यह आयोजन हरिद्वार , उज्जैन और नासिक में भी आयोजित होने की उम्मीद है । कुंभ पर गंगा का स्नान महज स्नान नहीं, उस पवित्र नदी में डुबकी है जिससे इंसान पाप से पुण्य की ओर चल पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि कुंभ के समय पृथ्वी पर अमृत उतरता है। इस अमृत को पाने की चाह में ही दुनियाभर से श्रद्धालु आकर्षित होते हैं कुंभ की ओर। कुंभ हमारी पुरातन भारतीय सभ्यता के बहुत बड़े स्तंभ हैं, जो धर्म और अध्यात्म के उत्कर्ष का मार्ग आलोकित करते हैं। ये भारत के ज्ञान का विस्तार हैं। यही कारण है कि विभिन्न मठ-अखाड़ों से जुड़े साधु-संत, संन्यासी मत वैभिन्नता को भुलाकर एक साथ जुटते हैं और शाही स्नान करते हैं। महा कुंभ मेला 2025 - कुंभ मेला 2025 प्रयाग में 13 जनवरी से 26 फरवरी, 2025 तक आयोजित किया जाएगा। अपने भव्य समारोहों के लिए जाने जाने वाले हिंदू इस त्योहार को अपार श्रद्धा के साथ मनाते हैं। कुंभ मेला प्रयागराज 2025 हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक ऐसा ही महत्वपूर्ण आयोजन है। प्रयागराज में मकर संक्रांति से शुरू हो रहे महाकुंभ में 40-45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। यह आयोजन मोक्ष प्राप्ति का साधन, भारतीय संस्कृति की एकता का प्रतीक और पुण्य प्राप्ति का अवसर माना जाता है। कुंभ भारतीय सभ्यता के स्तंभ हैं जो धर्म और अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

आस्था, विश्वास, सौहार्द एवं संस्कृतियों के मिलन का पर्व है “कुम्भ”। ज्ञान, चेतना और उसका परस्पर मंथन कुम्भ मेले का वो आयाम है जो आदि काल से ही हिन्दू धर्मावलम्बियों की जागृत चेतना को बिना किसी आमन्त्रण के खींच कर ले आता है। कुम्भ पर्व किसी इतिहास निर्माण के दृष्टिकोण से नहीं शुरू हुआ था अपितु इसका इतिहास समय के प्रवाह से साथ स्वयं ही बनता चला गया। वैसे भी धार्मिक परम्पराएं हमेशा आस्था एवं विश्वास के आधार पर टिकती हैं न कि इतिहास पर। यह कहा जा सकता है कि कुम्भ जैसा विशालतम् मेला संस्कृतियों को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए ही आयोजित होता है।


कुम्भ का शाब्दिक अर्थ कलश है। यहाँ ‘कलश’ का सम्बन्ध अमृत कलश से है। बात उस समय की है जब देवासुर संग्राम के बाद दोनों पक्ष समुद्र मंथन को राजी हुए थे। मथना था समुद्र तो मथनी और नेति भी उसी हिसाब की चाहिए थी। ऐसे में मंदराचल पर्वत मथनी बना और नागवासुकि उसकी नेति। मंथन से चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई जिन्हें परस्पर बाँट लिया गया परन्तु जब धन्वन्तरि ने अमृत कलश देवताओं को दे दिया तो फिर युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। तब भगवान् विष्णु ने स्वयं मोहिनी रूप धारण कर सबको अमृत-पान कराने की बात कही और अमृत कलश का दायित्व इंद्र-पुत्र जयंत को सौपा। अमृत-कलश को प्राप्त कर जब जयंत दानवों से अमृत की रक्षा हेतु भाग रहे थे तभी इसी क्रम में अमृत की बूंदे पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरी- हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज। चूँकि विष्णु की आज्ञा से सूर्य, चन्द्र, शनि एवं बृहस्पति भी अमृत कलश की रक्षा कर रहे थे और विभिन्न राशियों (सिंह, कुम्भ एवं मेष) में विचरण के कारण ये सभी कुम्भ पर्व के द्योतक बन गये। इस प्रकार ग्रहों एवं राशियों की सहभागिता के कारण कुम्भ पर्व ज्योतिष का पर्व भी बन गया। जयंत को अमृत कलश को स्वर्ग ले जाने में 12 दिन का समय लगा था और माना जाता है कि देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर होता है। यही कारण है कि कालान्तर में वर्णित स्थानों पर ही ग्रह-राशियों के विशेष संयोग पर 12 वर्षों में कुम्भ मेले का आयोजन होने लगा। ज्योतिष गणना के क्रम में कुम्भ का आयोजन चार प्रकार से माना गया हैः-


o बृहस्पति के कुम्भ राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर हरिद्वार में गंगा-तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
o बृहस्पति के मेष राशि चक्र में प्रविष्ट होने तथा सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में आने पर अमावस्या के दिन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
o बृहस्पति एवं सूर्य के सिंह राशि में प्रविष्ट होने पर नासिक में गोदावरी तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
o बृहस्पति के सिंह राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर उज्जैन में शिप्रा तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।


धार्मिकता एवं ग्रह-दशा के साथ-साथ कुम्भ पर्व को तत्त्वमीमांसा की कसौटी पर भी कसा जा सकता है, जिससे कुम्भ की उपयोगिता सिद्ध होती है। कुम्भ पर्व का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि यह पर्व प्रकृति एवं जीव तत्त्व में सामंजस्य स्थापित कर उनमें जीवनदायी शक्तियों को समाविष्ट करता है। प्रकृति ही जीवन एवं मृत्यु का आधार है, ऐसे में प्रकृति से सामंजस्य अति-आवश्यक हो जाता है। कहा भी गया है “यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे” अर्थात् जो शरीर में है, वही ब्रह्माण्ड में है, इस लिए ब्रह्माण्ड की शक्तियों के साथ पिण्ड (शरीर) कैसे सामंजस्य स्थापित करे, उसे जीवनदायी शक्तियाँ कैसे मिले इसी रहस्य का पर्व है कुम्भ। विभिन्न मतों-अभिमतों-मतान्तरों के व्यावहारिक मंथन का पर्व है-‘कुम्भ’, और इस मंथन से निकलने वाला ज्ञान-अमृत ही कुम्भ-पर्व का प्रसाद है। महाकुम्भ मेला 2025 का आयोजन प्रयागराज में किया जा रहा है, जो 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक चलेगा। नीचे दी गई तालिका में महाकुम्भ मेला 2025 की प्रमुख तिथियों का उल्लेख है:

पर्व का नाम तिथि/दिवस
पौष पूर्णिमा 13-01-2025/सोमवार
मकर संक्रांति 14-01-2025/मंगलवार
मौनी अमावस्या (सोमवती) 29-01-2025/बुधवार
बसंत पंचमी 03-02-2025/सोमवार
माघी पूर्णिमा 12-02-2025/बुधवार
महाशिवरात्री 26-02-2025/बुधवार

भावी कुम्भ के अमृत कलश से भारत को जो अपूर्व अमृत मिलेगा, अगले वर्ष,यानि वर्ष,२०२५ के आरंभ से ही प्रयागराज में महाकुंभ आरंभ होने वाला है।यह १३जनवरी से २६ फरवरी तक,यानि पूरे डेढ़ माह तक चलेगा। यूं तो यह समय वैसे ही भारतीय राजनीति का, 'पुनरोत्थान काल' चल रहा है,जिसे हम प्रकारान्तर से,' हिन्दू पुनर्जागरण काल',या 'सनातन संस्कृति का आधुनिक स्वर्ण काल' भी कह सकते हैं।पर,इस महाकुंभ पर सनातन-संस्कृति की संतति को वास्तव में कुछ अमृत सदृश अमूल्य और अपूर्व मिलने की पूर्ण संभावना है,और अपेक्षा भी।


सुनते हैं, इस महाकुंभ में लगभग ४५ करोड़ सनातनी श्रद्धालु महाकुंभ के अमृत कलश से अमृत-पान और अमृत-स्नान करने का सौभाग्य प्राप्त करने वाले हैं। प्रवासी सनातनियों की स्थिति-उपस्थिति अलग से होगी।४५ करोड़ का आशय है,सनातन के विशिष्ट श्रद्धालुओं का एक पृथक संसार। दुनिया में एक-दो नहीं,दर्जनों ऐसे पूर्ण देश हैं,जिनकी कुल आबादी ४५ करोड़ नहीं होगी।इन ४५ करोड़ में लाखों नहीं तो,सैकड़ों हजार संख्या का समागम देश के अखाड़ों व छावनियों से आने वाले विशिष्ट साधु-संन्यासियों,नागाओं,संतों, महंतों,मठाधीशों,दंडी स्वामियों और सामान्य साधु-संन्यासियों व बाबाओं का पावन प्रयागराज के अतीव पुनीत संगम-स्थल पर होगा,जो डेढ़ माह तक चलने वाले कुम्भ में पूर्णकालीन कल्पवास करके वचन-प्रवचन,उपदेश-निर्देश और विचार-विमर्श कर भक्ति,ज्ञान और वैराग्य की त्रिवेणी बहाएंगे तथा इस त्रिवेणी में डुबकी लगाकर कुछ न कुछ अमृत तुल्य और अपूर्व निकाल कर लाएंगे,जैसा प्रायः हर कुम्भ पर निकाल कर लाते रहे हैं। सामान्य आदमी को आश्चर्य हो सकता है,कि इस महाकुंभ के समागम के दीर्घावधि आयोजन में नित्य चलने वाली विमर्श-वार्ताओं के निष्कर्ष स्वरूप,हमेशा से ही,जो नवनीत निकलता है,वह न केवल धर्म,संस्कृति और अध्यात्म के लिए ही उपयोगी होता है,वरन राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी सद्-शुभ मार्गदर्शक होता है। धर्म और अध्यात्म से जुड़ी महान विभूतियां वास्तव में तत्संगत-तत्संबंधी प्रस्ताव पारित करते हैं। इससे पूर्व सन्,२०१३ में पड़े महाकुंभ में साधु-संसद ने शायद प्रस्ताव पारित कर,अथवा अनौपचारिक रूप से ही सही,भावी प्रधानमंत्री के रूप में श्री नरेंद्र मोदी का नाम प्रस्तावित और घोषित किया था।साधु-संतों के आशीर्वाद को हम देख ही रहे हैं,नरेंद्र मोदी जी अगले ही वर्ष,सन् २०१४ के चुनाव में ही प्रधानमंत्री नहीं बने,प्रत्युत उससे अगले महाकुंभ,आज,२०२५ के आने तक तीसरी बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं। संभव है,इस महाकुंभ में साधु-संतों की संसद आगामी चुनाव,२०२९ में प्रधानमंत्री के लिए आदरणीय योगी आदित्यनाथ जी के नाम को प्रस्तावित करके घोषित कर दे,जिसकी पूर्ण संभावना है,क्योंकि आज की तिथि में एक मात्र योगी जी ने अपने कार्यों के द्वारा स्वयं को हिन्दू-हृदय सम्राट होना सिद्ध करके दिखाया है। संपूर्ण संत-समाज की दृष्टि में भी प्रधानमंत्री के रूप में उनसे अधिक उपयुक्त आज अन्य कोई नेता नहीं है।पर,कुंभ पर मुझे एक अन्य संभावना भी साकार होते दिखाई दे रही है।वह यह,कि साधु-समाज के साक्ष्य में स्वयं नरेंद्र मोदी जी आगे आएंगे और भावी प्रधानमंत्री के रूप में,अपने उत्तराधिकारी का नाम,' योगी आदित्यनाथ' घोषित करके आवश्यकता और अवसर को उत्सव बनाते हुए श्रेय और सम्मान प्राप्त करने के संयोग को हाथ से न निकलने देंगे।आज आदित्यनाथ एक ऐसे नेता के रूप में भी प्रतिष्ठित हो चुके हैं,जिनके नाम पर किसी भी नेता को पर,किन्तु,परंतु कहने-करने की न गुंजाइश है,न ही हिम्मत।


इस बार महाकुंभ की एक अद्भुत-अपूर्व विशेषता यह भी रहेगी,कि चीजों पर थूकने वाले, स्थान पर गंदगी करने वाले और पवित्र संगम में नहाने से परहेज़ करने वाले म्लेच्छों और राक्षसों का महाकुंभ में प्रवेश पूर्णतः वर्जित होगा। इससे महाकुंभ के प्रति सनातनियों का आकर्षण भी बढ़ेगा, महाकुंभ का माहात्म्य भी बढ़ेगा,और स्वयं महाकुंभ में दैवीय चेतना का अंश बढ़ने के कारण महाकुंभ की वरदायी शक्ति बढ़ेगी। प्रयागराज में महाकुंभ आयोजन ऐसे समय हो रहा है, जब हमारे सामने ग्लोबल वॉर्मिंग, पर्यावरण प्रदूषण, जल संकट, आतंकवाद और अतिवाद जैसी चुनौतियां हैं। देश की सामूहिकता, सामुदायिकता, धार्मिक और आध्यात्मिक ढांचा, आस्था, परंपराएं, मूल्य और संस्कार अपनी भारतीय अस्मिता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यही नहीं, पुरानी और नई पीढ़ी के बीच बढ़ती दूरी भी चिंता का कारण बनी हुई है। ऐसे समय में महाकुंभ निश्चित तौर पर रास्ता दिखाएगा।



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