शिवपुरी का असली स्वाद: जहाँ कचोरी के साथ गालियाँ भी मुफ्त मिलती हैं

 


शिवपुरी जिला न्यायालय के बाहर, परिवार कोर्ट के ठीक सामने, एक छोटे से छप्पर के नीचे जैन साहब की कचोरी की दुकान है। नाम का कोई बोर्ड नहीं, विज्ञापन की कोई ज़रूरत नहीं। यह दुकान सिर्फ अपने अनूठे स्वाद और यहाँ बनने वाले व्यंजनों की बदौलत जानी जाती है। लेकिन शिवपुरी के अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि मोहना की प्रसिद्ध पकोड़ियाँ, जिनके बारे में ग्वालियर तक चर्चा होती है, जैन साहब की ही देन हैं।

आज जो मोहना की पकोड़ियाँ अपनी विशेषता के लिए जानी जाती हैं, उनके जनक यही जैन साहब हैं, जो पिछले 20 वर्षों से शिवपुरी में अपने हाथों से कचोरी, समोसे और पकोड़ियों का जादू बिखेर रहे हैं। यह जगह स्वाद का एक ऐसा केंद्र है, जहाँ हर तबके के लोग आते हैं। पुलिसकर्मी, वकील, आरोपी, आम नागरिक, और कई बार बड़े अधिकारी भी, सभी एक कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं।

जैन साहब का अंदाज और स्वभाव जितना दिलचस्प है, उतनी ही अनोखी उनकी दुकान है। शुद्ध तेल में बनी कचोरी और समोसे, गुड़-इमली और हरी चटनी के साथ परोसे जाते हैं। उनके यहाँ आलू-प्याज़ मिर्च की पकोड़ी भी मिलती है, जो हर किसी के स्वाद को यादगार बना देती है। लेकिन यहाँ सिर्फ खाने का मजा ही नहीं, जैन साहब की मजेदार बातों और उनके गुस्से का तड़का भी मिलता है।

अगर कोई ग्राहक गलती से लाइन तोड़ने की कोशिश करे या ज्यादा चतुर बनने की कोशिश करे, तो जैन साहब का गुस्सा देखते ही बनता है। उनका गालियों का शब्दकोष इतना समृद्ध है कि ग्राहक इसे सुनकर हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते हैं। किसी को गालियां फ्री में मिलें और बुरा भी न लगे, यह जैन साहब की खासियत है।

यह दुकान सिर्फ स्वादिष्ट व्यंजन बनाने की जगह नहीं है, बल्कि शिवपुरी की एक जीवंत कहानी है। जैन साहब का मानना है कि जो भी यहाँ आए, उसे न केवल पेट भरने का, बल्कि एक यादगार अनुभव देने का मौका मिले। वे बड़े मनमौजी इंसान हैं। कभी-कभी दुकान अपने समय से पहले बंद हो जाती है, क्योंकि वे तय कर चुके होते हैं कि आज जितना बनाना था, उतना बन गया।

जो लोग जैन साहब की कचोरी के दीवाने हैं, वे यह भी बताते हैं कि मोहना की प्रसिद्ध पकोड़ियों की शुरुआत भी जैन साहब ने ही की थी। उनका यह सफर स्वाद का तो है ही, साथ ही एक ऐसा इतिहास भी है, जो उनकी अनूठी सोच और मेहनत का प्रमाण है।

शिवपुरी का यह छप्पर हर दिन स्वाद और हंसी का संगम बनता है। कचोरी के लिए इंतजार करने वाले ग्राहकों को यह इंतजार कभी बोझ नहीं लगता, क्योंकि वे जानते हैं कि कचोरी के साथ-साथ जैन साहब के मजाक और गुस्से का अनुभव उन्हें कहीं और नहीं मिलेगा।

यदि आप शिवपुरी में हैं और जैन साहब की दुकान पर नहीं गए, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि आपने शिवपुरी का असली स्वाद ही नहीं चखा। और अगर आप मोहना की पकोड़ियाँ खाते हैं, तो यह जानना दिलचस्प होगा कि उनके पीछे भी वही हाथ हैं जो आज इस छप्पर के नीचे बैठे लोगों को स्वाद का तोहफा दे रहे हैं।

जैन साहब और उनकी दुकान सिर्फ एक जगह या व्यक्ति नहीं, बल्कि शिवपुरी की एक कहानी हैं। एक ऐसी कहानी, जो हर बार उनकी कचोरी, समोसे, और पकोड़ियों के साथ सुनाई देती है और हर बार नई यादें छोड़ जाती है।

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