शिवपुरी में आयोजित राम कथा से उपजे कुछ विवादित सवाल - दिवाकर शर्मा
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शिवपुरी में आयोजित राम कथा को लेकर पूरे शहर में चर्चा और विवाद का माहौल है। यह आयोजन जहां एक ओर धार्मिक आस्था और संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया, वहीं दूसरी ओर इसमें उठे सवालों ने इसकी मंशा और उद्देश्य पर गहरा संशय खड़ा कर दिया। आयोजन के पीछे कौन था, इसकी जिम्मेदारी किन्हें दी गई थी, और क्यों इसे विवादास्पद बना दिया गया, ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर ढूंढने की आवश्यकता है।
आयोजन की शुरुआत में इसे सकल हिंदू समाज, आर्य समाज, और संघ जैसे प्रमुख संगठनों का संयुक्त प्रयास बताया गया। लेकिन जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ी, इसमें अलग-अलग संगठनों और व्यक्तियों की भागीदारी को लेकर संशय बढ़ता गया। संघ और आर्य समाज जैसे संगठन, जिनके साथ इस आयोजन को जोड़ा जा रहा था, खुद इसे लेकर स्पष्ट उत्तर देने से कतराते दिखे। संघ ने इससे दूरी बनाए रखी, जबकि आर्य समाज की भूमिका पर तब सवाल उठे जब उन्होंने एक ऐसी वक्ता को मंच पर बुलाया जो हिंदू शब्द को ही अस्वीकार करती हैं।
यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी सवालों के घेरे में है। सकल हिंदू समाज के नाम पर आयोजित इस कार्यक्रम में शहर के प्रमुख व्यक्तित्वों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, और धार्मिक संगठनों को आमंत्रित क्यों नहीं किया गया? अगर यह सच में हिंदू समाज का कार्यक्रम था, तो इसमें सभी धर्मप्रेमी लोगों की भागीदारी सुनिश्चित क्यों नहीं की गई?
सबसे अधिक आश्चर्यजनक बात यह रही कि राम कथा जैसे पवित्र मंच का उपयोग राजनीतिक मुद्दों को उठाने के लिए किया गया। कथा प्रवक्ता ने 'पाम पार्क' जैसे एक विशेष विषय पर चर्चा की, जो स्पष्ट रूप से एक राजनीतिक मुद्दा है। यह पार्क यशोधरा राजे सिंधिया के प्रयासों से बना है और इसका धार्मिक कथा से कोई लेना-देना नहीं था। इस मुद्दे को उठाने के पीछे क्या उद्देश्य था? क्या इसे जानबूझकर कथा का केंद्रबिंदु बनाया गया, ताकि किसी विशेष राजनीतिक एजेंडे को साधा जा सके? यह सवाल भी खड़ा होता है कि कथा प्रवक्ता को केवल इसी विषय की जानकारी क्यों दी गई? क्या यह किसी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था?
कार्यक्रम के दौरान यह भी देखने को मिला कि कुछ मंच संचालकों और आयोजकों के साथ अन्याय किया गया। उनकी धार्मिक निष्ठा और समर्पण का फायदा उठाकर उन्हें राजनीतिक षड्यंत्र में फंसा दिया गया। यह स्पष्ट है कि यह सब कुछ कुछ गुप्त प्राणियों द्वारा अपने निजी स्वार्थों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किया गया।
इन गुप्त प्राणियों की भूमिका पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है। यह वही लोग हैं, जिन्होंने पहले अन्ना हजारे को शिवपुरी बुलाकर युवाओं के जीवन को भ्रमित किया था। उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए एक ऐसा संगठन खड़ा किया, जिसने सैकड़ों युवाओं के भविष्य को बर्बाद कर दिया। आज यही लोग संघ में ऊंचे पदों पर आसीन हैं और जमीन से जुड़े कई विवादास्पद कार्यों में शामिल हैं। उन्होंने अपने प्रभाव का विस्तार कर लिया है और अब अपनी छवि को और मजबूत करने के लिए राम कथा जैसे आयोजनों का उपयोग कर रहे हैं।
इस कथा के आयोजन के पीछे की मंशा पर तब और गहरा संदेह होता है, जब यह देखा गया कि हिंदू समाज के नाम पर इसे संकीर्ण मानसिकता के तहत संचालित किया गया। अगर यह सच में हिंदू समाज का आयोजन था, तो इसमें सर्वदलीय और सर्वसमाज की भागीदारी क्यों नहीं थी? शहर के प्रतिष्ठित सामाजिक और धार्मिक व्यक्तित्वों को इसमें क्यों शामिल नहीं किया गया?
राम कथा जैसे आयोजन समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को मजबूत करने के लिए होते हैं। लेकिन इस कथा ने अपने उद्देश्यों से भटकते हुए न केवल धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाई, बल्कि समाज में विभाजन की स्थिति भी उत्पन्न कर दी। यह स्पष्ट है कि यह आयोजन धर्म और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कम और व्यक्तिगत तथा राजनीतिक स्वार्थों को साधने के लिए अधिक किया गया।
हिंदू समाज को इस घटना से सबक लेना चाहिए। ऐसे तत्व, जो धर्म की आड़ में अपने स्वार्थों को पूरा कर रहे हैं, उन्हें पहचानने और उन्हें समाज से अलग करने की आवश्यकता है। अगर समय रहते इन तत्वों को नहीं रोका गया, तो यह समाज की एकता और धार्मिक आयोजनों की पवित्रता के लिए घातक साबित हो सकता है।
इस पूरे घटनाक्रम की गहन जांच और विश्लेषण की आवश्यकता है। समाज के प्रबुद्ध वर्ग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में ऐसे विवादास्पद आयोजनों को पनपने का अवसर न मिले। राम कथा जैसे आयोजनों की पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है और इसे व्यक्तिगत और राजनीतिक स्वार्थों से दूर रखना चाहिए। हिंदू समाज को सतर्क रहना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे आयोजन केवल धर्म और संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए ही हों, न कि किसी गुप्त एजेंडे को साधने के लिए।
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