भाजपा मंडल अध्यक्ष नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल: अनुशासन और मापदंडों की अनदेखी
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भाजपा, जिसे एक अनुशासित और कार्यकर्ता-आधारित पार्टी के रूप में जाना जाता है, हाल ही में मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर विवादों में घिरती नजर आ रही है। पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र और मापदंडों पर उठ रहे सवाल न केवल कार्यकर्ताओं के मनोबल को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि संगठनात्मक संरचना पर भी गंभीर प्रश्न खड़े कर रहे हैं।
ताजा मामला शिवपुरी जिले के बामोर कला मंडल का है, जहां मंडल अध्यक्ष रमाकांत शर्मा की नियुक्ति को लेकर स्थानीय बूथ अध्यक्षों और कार्यकर्ताओं में व्यापक असंतोष है। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि नियुक्ति में राय-शुमारी और बूथ अध्यक्षों की सहमति को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया। साथ ही, नवनियुक्त मंडल अध्यक्ष का संगठन में कोई सक्रिय योगदान नहीं रहा है। इसके विपरीत, उन पर पार्टी-विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने के भी आरोप लगाए गए हैं।
कार्यकर्ताओं का सामूहिक विरोध
बामोर कला के बूथ अध्यक्षों ने मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति पर विरोध जताते हुए स्पष्ट किया है कि यदि पार्टी ने उनकी शिकायतों का समाधान नहीं किया तो वे अपने पदों और पार्टी से सामूहिक इस्तीफा दे देंगे। यह कदम पार्टी के लिए न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि प्रदेश स्तर पर भी एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
मप्र में मंडल अध्यक्ष चयन प्रक्रिया पर उठते सवाल
यह मुद्दा केवल बामोर कला तक सीमित नहीं है। प्रदेश के अन्य हिस्सों से भी शिकायतें सामने आ रही हैं, जहां मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में निर्धारित मापदंडों का पालन नहीं किया गया। ऐसे मामलों में कार्यकर्ताओं की अनदेखी और निष्पक्षता की कमी ने भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है।
पार्टी के अनुशासन और छवि पर असर
भाजपा जैसी पार्टी, जो कार्यकर्ताओं के समर्पण और अनुशासन पर आधारित है, इस तरह की घटनाओं से अपनी पहचान और संगठनात्मक मजबूती को कमजोर होते देख रही है। जब एक कार्यकर्ता-आधारित पार्टी में कार्यकर्ताओं की राय को महत्व नहीं दिया जाता, तो यह न केवल पार्टी के भीतर असंतोष को बढ़ावा देता है बल्कि विरोधी दलों को भी आलोचना का मौका देता है।
समाधान की जरूरत
पार्टी नेतृत्व को इन घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए पारदर्शी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनानी चाहिए। कार्यकर्ताओं की राय को महत्व देकर और विवादित नियुक्तियों की जांच कर पार्टी अपनी छवि को सुधार सकती है। इसके अलावा, जिम्मेदारों को इन मामलों में जवाबदेह ठहराने से संगठनात्मक अनुशासन और भरोसे को पुनः स्थापित किया जा सकता है।
भाजपा के लिए यह समय आत्मविश्लेषण का है। संगठन में अनुशासन बनाए रखने और कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतने के लिए नेतृत्व को ठोस कदम उठाने होंगे। अन्यथा, ऐसे मामले पार्टी के भीतर गहराते असंतोष और टूटते भरोसे का कारण बन सकते हैं, जिसका प्रभाव आगामी चुनावों पर भी पड़ सकता है।
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मध्यप्रदेश
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