अवैध कार बाजार: प्रशासनिक सख्ती के दावों के बीच साठगांठ का खेल?

 


शिवपुरी में एसडीएम उमेश कौरव द्वारा हाल ही में जारी आदेश ने मैरिज गार्डन, वाटिका, और होटलों में होने वाले आयोजनों के दौरान सड़क पर पार्किंग को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया है। इस आदेश का उद्देश्य शहर की यातायात व्यवस्था को सुधारना बताया गया है। हालांकि, इस फैसले ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है: क्या यह कदम शहर की यातायात व्यवस्था सुधारने के नाम पर केवल गरीब और छोटे व्यवसायियों को ही निशाना बना रहा है?

पिछले कुछ वर्षों में शिवपुरी की सड़कों पर ठेले वालों और फुटपाथ व्यापारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होती रही है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि शहर के पुराने बस स्टैंड पर अवैध रूप से चल रहे कार बाजार पर प्रशासन की नजरें क्यों मूंदे हुए हैं? यह बाजार न केवल यातायात में बाधा बनता है बल्कि शहर के सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित करता है। शाम होते ही यहां असामाजिक तत्वों का जमावड़ा आम बात हो गई है।

रणवीर यादव, जो वर्तमान में शिवपुरी यातायात व्यवस्था के प्रभारी हैं, ने अपने पिछले कार्यकाल में इस अवैध कार बाजार पर कार्रवाई की थी। लेकिन अब वे भी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। क्या यह चुप्पी प्रशासनिक मजबूरी है, या फिर व्यक्तिगत और राजनीतिक दबाव का परिणाम?

शहर में चर्चा यह है कि इस अवैध कार बाजार के संचालकों के स्थानीय नेताओं, समाजसेवियों और पत्रकारों से गहरे व्यक्तिगत संबंध हैं। यह भी कहा जा रहा है कि इन तथाकथित प्रभावशाली व्यक्तियों के दबाव में प्रशासन इस बाजार पर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। सवाल यह उठता है कि जब छोटे व्यवसायियों पर यातायात के नाम पर कार्रवाई हो सकती है, तो इस बड़े और प्रभावशाली अवैध बाजार को क्यों बख्शा जा रहा है?

यह दोहरी नीति प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करती है। क्या शहर की यातायात व्यवस्था सुधारने की आड़ में गरीब तबके को दबाने का प्रयास हो रहा है? और क्या प्रशासन उन शक्तियों के सामने नतमस्तक हो गया है जो अवैध कार बाजार को खुला संरक्षण दे रही हैं?

शिवपुरी के नागरिकों और जागरूक समाज को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। क्या हम एक ऐसे शहर में रहना चाहते हैं जहां कानून केवल कमजोरों पर लागू हो और ताकतवरों के लिए हमेशा रास्ते खुले रहें?

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