"हाथों में तलवार, दिल में नफरत: सरदार पटेल पर हमले की छुपी हुई कहानी"

 

हम भारतीयों को बचपन से यह बताया गया कि महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी, लेकिन एक महत्वपूर्ण और दिल दहला देने वाली घटना, जो न सिर्फ सरदार वल्लभभाई पटेल की जान को निशाना बनाती है, बल्कि उस समय की राजनीति की गहरी साजिशों को भी उजागर करती है, हमें कभी नहीं पढ़ाई गई। वह घटना थी 14 मई 1939 को सरदार पटेल पर हुआ जानलेवा हमला, जिसने न केवल उनकी जान को खतरे में डाला, बल्कि भारतीय इतिहास के एक काले सच को भी छिपाने का प्रयास किया गया।

14 मई और 15 मई 1939 को भावनगर राज्य प्रजा परिषद का पांचवां अधिवेशन आयोजित किया जा रहा था, जिसकी अध्यक्षता सरदार पटेल को करनी थी। जैसे ही सरदार पटेल रेलवे स्टेशन पर पहुंचे और खुले जीप में यात्रा की शुरुआत की, लोगों का हुजूम उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़ा। यह यात्रा भावनगर में एक ऐतिहासिक और भव्य उत्सव के रूप में निकाली जा रही थी। लेकिन इस यात्रा के दौरान, जो दृश्य घटित हुआ, वह न केवल सरदार पटेल के लिए बल्कि भारतीय राजनीति के लिए भी एक निर्णायक मोड़ था।

खार गेट चौक पर, नगीना मस्जिद में छुपे हुए 57 उग्र लोगों ने तलवार, छुरी और भाले के साथ सरदार पटेल की जीप की तरफ दौड़कर जानलेवा हमला किया। इन हमलावरों का इरादा केवल पटेल की हत्या करने का था। लेकिन उनकी योजना को विफल कर दिया दो निडर युवाओं, बच्चू भाई पटेल और जाधव भाई मोदी ने, जिन्होंने पूरी बहादुरी से सरदार पटेल की रक्षा की। वे दोनों युवाओं ने एक ढाल की तरह खुद को सरदार पटेल के सामने खड़ा कर दिया। हमलावरों ने उन पर कई वार किए, जिसमें बच्चू भाई पटेल की मौके पर ही मृत्यु हो गई, जबकि जाधव भाई मोदी अस्पताल में वीरगति को प्राप्त हुए।

यह घटना केवल एक दुखद घटना नहीं थी, बल्कि यह उस समय की सरकार की गंभीर जांच और कार्रवाई का कारण भी बनी। अंग्रेजी शासन ने इस हमले की जांच के लिए विशेष कोर्ट का गठन किया और 57 हमलावरों को गिरफ्तार किया। इनमें से आजाद अली और रुस्तम अली सिपाही को फांसी की सजा दी गई, जबकि कई अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इन आरोपियों ने अदालत में यह स्वीकार किया कि सरदार पटेल ने कोलकाता में मुस्लिम लीग के खिलाफ भाषण दिया था, जिससे वे नाराज हो गए थे और उनकी हत्या की साजिश रची गई थी।

यह घटना इतिहास में एक काले अध्याय की तरह दर्ज होती, लेकिन सबसे अफसोसजनक बात यह है कि स्वतंत्रता के बाद जब नेहरू सरकार सत्ता में आई, तो इस महत्वपूर्ण घटना को किताबों से हटा दिया गया। इतिहास को इस तरह से संपादित किया गया कि भविष्य में कोई यह न जान सके कि सरदार पटेल पर एक जानलेवा हमला हुआ था, जो न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन पर, बल्कि देश की राजनीति और राष्ट्रीय एकता पर भी गहरी चोट करता था।

क्या यह सच नहीं है कि सरकार ने जानबूझकर इस घटना को छिपाने की कोशिश की? क्या यह महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े तथ्यों को मनगढंत तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश का हिस्सा नहीं था, ताकि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की अन्य जटिलताएँ और संघर्ष छिपाए जा सकें?

सरदार पटेल के ऊपर यह हमला और उसकी साजिश उस समय के राजनीतिक विरोधों और तनावों का परिणाम था, जो आज भी कई भारतीयों के लिए अनकहा और अप्रकटित रह गया। यह सच छिपाने का षड्यंत्र आज भी हमारे सामने खड़ा है। यह जरूरी है कि हम इस काले सच को उजागर करें और उन वीर जवानों की बहादुरी और बलिदान को याद करें, जिन्होंने देश की एकता और स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

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