शिवपुरी भाजयुमो: किसके सिर सजेगा ताज?

 

शिवपुरी की सियासत में इन दिनों एक बड़ा सवाल है – "भाजयुमो का अगला जिला अध्यक्ष कौन होगा?" जिले के युवा राजनीतिक गलियारों में इस सवाल को लेकर जबरदस्त चर्चाएं चल रही हैं। इस रेस में दो नाम प्रमुखता से उभरकर सामने आए हैं – प्रशांत राठौर और मयंक दीक्षित। दोनों के अपने-अपने दमदार तर्क और अनुभव हैं, लेकिन कौन बाजी मारेगा? आइए जानते हैं।

प्रशांत राठौर: भरोसेमंद पर व्यक्तिवादी

प्रशांत राठौर, शिवपुरी की युवा राजनीति का जाना-पहचाना चेहरा हैं। जिले के हर विधायक और स्थानीय सांसद के चहेते माने जाते हैं। लगातार सक्रियता और विश्वसनीयता उनकी सबसे बड़ी ताकत है। राजनीतिक मैदान में उनका दांव खेलने का अंदाज काबिल-ए-तारीफ है।

लेकिन... यहां एक सवाल खड़ा होता है – क्या संगठन के बजाय व्यक्तिवाद पर अत्यधिक भरोसा उन्हें पीछे खींच सकता है? भाजपा जैसे अनुशासित संगठन में ये गुण दोष में बदल सकता है। प्रशांत का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट उनकी मजबूत पकड़ है, लेकिन यही पकड़ उन्हें संगठन की छांव से दूर भी कर सकती है।

मयंक दीक्षित: स्वाभाविक नेता, लेकिन ब्रांडिंग का ठप्पा

दूसरी ओर मयंक दीक्षित, जिनके नाम का शोर हर युवा कार्यकर्ता के जुबान पर है। अभाविप के पूर्व जिला संयोजक और एक अनुभवी नेता के तौर पर उनकी पहचान है। मयंक की आक्रामकता और उनकी राजनीतिक शैली उन्हें भीड़ से अलग बनाती है। संगठन के हर स्तर पर उनके जीवंत संपर्क उन्हें इस रेस में एक कदम आगे रखते हैं।

लेकिन मुश्किलें उनके साथ भी हैं। उनके ऊपर 'केपी यादव के करीबी' का ठप्पा और सक्रियता की कमी उन्हें कमजोर कर सकती है। जिले भर में सिंधिया समर्थकों का दबदबा उनकी राह में रोड़ा बन सकता है। हालांकि, मौजूदा जिलाध्यक्ष की पसंद बनकर उन्होंने अपनी स्थिति मजबूत जरूर की है।

तीसरे विकल्प की तलाश या सिर्फ चर्चा?

प्रशांत और मयंक के बीच मुकाबला दिलचस्प है, लेकिन चर्चा में कुछ और नाम भी शामिल हैं। शिवम दुबे, आशीष बिंदल, और अमन मिश्रा जैसे युवा भी इस पद के दावेदार माने जा रहे हैं। हालांकि, ये नाम फिलहाल 'अच्छी चर्चा' से आगे नहीं बढ़े हैं।

संगठन के लिए कौन सही?

शिवपुरी भाजयुमो की कमान ऐसे व्यक्ति को सौंपी जानी चाहिए, जो संगठन की मजबूती के साथ-साथ युवाओं को एक नई दिशा दे सके। प्रशांत की सक्रियता और मयंक की स्वाभाविक राजनीतिक शैली – दोनों में से कोई भी इस पद का हकदार हो सकता है। लेकिन संगठन को अब यह तय करना है कि उसे 'अनुभव' चाहिए या 'आक्रामकता'।

आखिरकार, किसकी होगी जीत?

फैसला जो भी हो, शिवपुरी की सियासी हवाओं में बदलाव की सुगंध साफ महसूस हो रही है। युवा भाजपा के इस संग्राम का अंजाम न केवल संगठन बल्कि जिले की सियासत का भविष्य भी तय करेगा। अब देखना यह है कि संगठन किसे चुनता है – एक भरोसेमंद चेहरा या आक्रामक नेतृत्व?

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