"परिवार पर सवाल: धीरेन्द्र शास्त्री के साथ न्याय या अन्याय?" - दिवाकर शर्मा
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आधुनिक समाज में, जहां सूचना और तकनीक ने जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है, वहीं इसका नकारात्मक पक्ष यह भी है कि किसी भी व्यक्ति की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए झूठी खबरों और फेक वीडियो का सहारा लिया जाता है। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब यह प्रयास किसी ऐसे व्यक्तित्व से जुड़ा हो, जो समाज के लिए आदर्श और प्रेरणा स्रोत हो। बागेश्वर धाम के प्रमुख पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री और उनके परिवार के साथ हाल ही में हुई घटनाएं इस समस्या का सबसे ताजा उदाहरण हैं।
पंडित धीरेन्द्र शास्त्री सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपने अद्वितीय प्रयासों और आध्यात्मिक नेतृत्व के कारण पूरे भारत में विख्यात हैं। वे न केवल एक आध्यात्मिक गुरु हैं, बल्कि सनातन परंपरा और हिंदुत्व के मूल्यों को संरक्षित रखने वाले योद्धा भी हैं। उनके प्रति लोगों की अटूट आस्था और प्रेम इस बात का प्रमाण है कि वे अपने कर्तव्यों में कितने सफल हैं। परंतु, क्या यह उचित है कि उनकी महानता के आधार पर उनके परिवार के हर सदस्य से भी समान आदर्शों और आचरण की अपेक्षा की जाए?
हाल ही में, सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें कुछ युवक और युवतियां अश्लील नृत्य कर रहे थे। दावा किया गया कि इनमें से एक युवक धीरेन्द्र शास्त्री के छोटे भाई शालिग्राम गर्ग हैं। यह वीडियो देखते ही देखते सोशल मीडिया पर फैल गया, और उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया गया। जब यह मामला पुलिस के समक्ष पहुंचा और जांच हुई, तो यह स्पष्ट हो गया कि वीडियो पूरी तरह से फर्जी था। बावजूद इसके, यह घटना समाज के उस पहलू को उजागर करती है, जहां हम बिना सत्यता की जांच किए किसी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने में पीछे नहीं रहते।
यह पहली बार नहीं है कि किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के परिवार को उनके कार्यों या जीवन शैली के लिए जिम्मेदार ठहराया गया हो। समाज में यह प्रवृत्ति आम हो चुकी है कि जब कोई व्यक्ति प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचता है, तो उसके परिवार के सदस्यों पर भी समाज की अनावश्यक अपेक्षाओं का बोझ डाल दिया जाता है। क्या यह जरूरी है कि एक महान व्यक्ति का हर संबंधी भी उतना ही महान हो? क्या सचिन तेंदुलकर का बेटा उसी स्तर का क्रिकेटर होगा? क्या हर प्रसिद्ध डॉक्टर, वकील या वैज्ञानिक के बच्चे उनके क्षेत्र में समान सफलता प्राप्त कर पाते हैं? यह विचारणीय है कि क्यों समाज हर क्षेत्र में समानता की अपेक्षा करता है, जबकि सच्चाई यह है कि हर व्यक्ति अपने गुणों और कर्मों के आधार पर अलग होता है।
धीरेन्द्र शास्त्री के छोटे भाई शालिग्राम गर्ग ने हाल ही में एक वीडियो जारी कर अपने भाई और बागेश्वर धाम से अपने संबंध तोड़ने की घोषणा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके कारण धीरेन्द्र शास्त्री और बागेश्वर धाम की छवि को ठेस पहुंची है, और उन्होंने इस बात के लिए माफी भी मांगी। उन्होंने यह भी कहा कि अब उन्हें किसी भी रूप में बागेश्वर धाम से जोड़ा न जाए। शालिग्राम गर्ग का यह बयान जहां एक ओर उनकी ईमानदारी और आत्मावलोकन को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर समाज की उस सोच को भी उजागर करता है, जो किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत कर्मों के लिए उसके पूरे परिवार को दोषी ठहराती है।
सन्यास परंपरा का पालन करने वाले धीरेन्द्र शास्त्री का जीवन पूरी तरह से धर्म और समाज की सेवा को समर्पित है। सन्यासियों का न तो कोई परिवार होता है, न ही वे सांसारिक बंधनों में बंधे होते हैं। उनके लिए पूरा समाज ही परिवार है। ऐसे में उनके परिजनों को उनके जीवन का अभिन्न अंग मानना और उनके कर्मों के लिए उन्हें उत्तरदायी ठहराना न केवल अनुचित है, बल्कि यह सन्यास की परंपरा का भी अपमान है। समाज को यह समझना चाहिए कि किसी भी सन्यासी के जीवन का मूल्यांकन उनके अपने कार्यों के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि उनके परिवार के सदस्यों के आधार पर।
यह घटना समाज को आत्मचिंतन का एक अवसर प्रदान करती है। हमें यह विचार करना चाहिए कि हम अपने विचारों और अपेक्षाओं में कितने न्यायसंगत हैं। क्या हम बिना किसी साक्ष्य के किसी व्यक्ति या उनके परिवार को दोषी ठहराने का अधिकार रखते हैं? क्या हमारी यह प्रवृत्ति समाज के लिए स्वस्थ है? यह समय है कि हम अपनी सोच और दृष्टिकोण में बदलाव लाएं।
बागेश्वर धाम और पंडित धीरेन्द्र शास्त्री न केवल हिंदू समाज की आस्था का केंद्र हैं, बल्कि वे उन मूल्यों के भी प्रतीक हैं जो हमारे धर्म और संस्कृति की पहचान हैं। उनके प्रति सम्मान बनाए रखना हमारा नैतिक और सामाजिक दायित्व है। हमें यह समझना होगा कि किसी भी महान व्यक्ति की प्रतिष्ठा केवल उनके कार्यों से बनती है, न कि उनके परिवार के सदस्यों से।
इस घटना का सबसे बड़ा संदेश यह है कि समाज को सचेत और विवेकशील होना चाहिए। झूठी खबरों और फेक वीडियो से किसी की छवि को धूमिल करने के प्रयास न केवल अनैतिक हैं, बल्कि यह समाज के मूल्यों को भी कमजोर करते हैं। हमें सत्य के साथ खड़े होने और किसी भी मुद्दे पर निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। यही हमारे धर्म और संस्कृति की सच्ची पहचान है।
इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि धीरेन्द्र शास्त्री जैसे महान व्यक्तित्वों को समाज की ओर से समर्थन और सम्मान की आवश्यकता है, न कि उनके परिवार को लेकर अनावश्यक विवाद उत्पन्न करने की। हमें अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए एकजुट रहना चाहिए और हर उस प्रयास को विफल करना चाहिए, जो समाज को विभाजित करने का उद्देश्य रखता है। यही हमारे धर्म की सच्ची सेवा होगी।
हिन्दू समाज से बस एक प्रश्न
आधुनिक हिंदू समाज में जहां एक ओर धर्म और संस्कृति को बचाने की पुरजोर कोशिशें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर यह चिंता भी उठती है कि क्या हमारा समाज आज हर घर में झाँकने की प्रवृत्ति से ग्रस्त नहीं हो गया है? यह प्रवृत्ति न केवल समाज की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रहार करती है, बल्कि उन महान व्यक्तित्वों की प्रतिष्ठा पर भी चोट करती है, जो समाज सुधार और धर्म के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर चुके हैं।
सोचने की बात यह है कि जिन लोगों से अपने खुद के घर नहीं संभल रहे, वे धीरेन्द्र शास्त्री जैसे महान समाज सुधारकों और सनातनी योद्धाओं पर आरोप लगाने के लिए खुद को उपयुक्त कैसे मान सकते हैं? क्या यह उचित है कि हम ऐसे व्यक्तित्वों की महानता को उनके परिवार के सदस्यों की व्यक्तिगत गलतियों के आधार पर मापें? यह प्रवृत्ति केवल समाज के नैतिक पतन को दर्शाती है और हमारे भीतर व्याप्त ईर्ष्या और द्वेष की भावना को उजागर करती है।
हमें यह समझना चाहिए कि समाज को सुधारने वाले व्यक्ति अपने परिवार तक सीमित नहीं होते; उनका कर्तव्य और उनकी जिम्मेदारी पूरे समाज के प्रति होती है। धीरेन्द्र शास्त्री जैसे महान व्यक्तित्व अपनी कड़ी साधना और सेवा के माध्यम से समाज का मार्गदर्शन कर रहे हैं। उनके परिवार के सदस्यों पर बेबुनियाद आरोप लगाकर उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास न केवल अनैतिक है, बल्कि यह समाज के नैतिक मूल्यों के भी विरुद्ध है।
यह समय है कि हम आत्मावलोकन कर यह समझें कि हमारा धर्म और हमारी संस्कृति उन महान विचारों और आदर्शों पर आधारित है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सहिष्णुता और सत्य की स्थापना को महत्व देते हैं। धीरेन्द्र शास्त्री जैसे व्यक्तित्वों को उनका उचित सम्मान देना हमारा नैतिक कर्तव्य है।
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दिवाकर की दुनाली से
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