मोहन भागवत जी, क्या यह हिन्दू समाज की अपेक्षाओं से विमुख होने का संकेत है?
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मोहन भागवत जी, आपने हाल ही में जो बयान दिया है कि राम मंदिर हिन्दुओं की आस्था का विषय था और अब जब यह बन चुका है, तो हर मस्जिद के नीचे हिन्दू मंदिरों को खोजने की आवश्यकता नहीं है, उसने पूरे हिन्दू समाज को भीतर तक आहत किया है। यह केवल एक बयान नहीं है, बल्कि एक ऐसे भावनात्मक विषय पर आपकी सोच को दर्शाता है, जो हिन्दुओं के अस्तित्व, उनकी सांस्कृतिक पहचान और उनके गौरव से जुड़ा हुआ है। यह सवाल उठता है कि क्या आपने यह बयान देते समय उन करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को समझने का प्रयास किया, जिन्होंने सदियों से अपने धर्म और आस्था की रक्षा के लिए संघर्ष किया है?
हिन्दू समाज वर्षों से यह देखता आ रहा है कि उसके धार्मिक स्थलों को आक्रांताओं द्वारा निशाना बनाया गया, अपमानित किया गया और ध्वस्त किया गया। हर मंदिर के नीचे शिवलिंग का पाया जाना क्या केवल एक संयोग है? ज्ञानवापी, मथुरा, काशी, और भोजशाला जैसे स्थान इतिहास की गवाही देते हैं कि हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को व्यवस्थित रूप से मिटाने का प्रयास किया गया। ऐसे में यदि हिन्दू समाज यह मांग करता है कि उनकी खोई हुई सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत उन्हें वापस मिले, तो इसमें क्या गलत है? क्या यह मांग अन्यायपूर्ण है या यह किसी अन्य समुदाय के अधिकारों का अतिक्रमण है?
आपने पहले भी कहा था कि संघ ने हिन्दुओं का ठेका नहीं लिया है। लेकिन यह समझने की आवश्यकता है कि हिन्दू समाज ने संघ को ठेका दिया भी नहीं है। हिन्दू समाज ने संघ को अपनी आस्था, विश्वास और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की धुरी मानकर समर्थन दिया है। वर्षों तक संघ ने हिन्दू समाज को एकजुट करने और उनकी भावनाओं का नेतृत्व करने का प्रयास किया। परंतु, जब आप यह कहते हैं कि हिन्दुओं को अपनी खोई हुई विरासत की खोज बंद कर देनी चाहिए, तो यह हिन्दू समाज के प्रति आपकी प्रतिबद्धता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। क्या यह उचित है कि आप उस समाज से विमुख हो जाएं, जिसने आपको अपना संरक्षक समझा?
इतिहास गवाह है कि जब-जब हिन्दू समाज ने अपने साथ हुए अन्याय को भूलने का प्रयास किया है, तब-तब उसे और अधिक दमन और अपमान का सामना करना पड़ा है। क्या यह संभव है कि कश्मीरी पंडित, जो अपने ही देश में शरणार्थी बनकर जीने को मजबूर हैं, आपके इस बयान को स्वीकार कर पाएंगे? उनके उजड़े हुए घर, उनकी माताओं-बहनों का अपमान, और उनकी संस्कृति का विनाश क्या उन्हें यह कहने की अनुमति देगा कि अब हमें अपने अधिकारों की बात छोड़ देनी चाहिए?
इतिहास ने यह भी दिखाया है कि भाईचारे और बातचीत का रास्ता आक्रांताओं और उनके अनुयायियों के लिए कभी भी प्रभावी नहीं रहा है। गंगा-जमुनी तहजीब का नया परचम क्या वही परिणाम नहीं देगा, जो देश के विभाजन का कारण बना था? क्या यह आपकी योजना है कि हिन्दू समाज सहनशीलता की नई मिसाल पेश करे, भले ही उसके साथ अन्याय और अत्याचार होता रहे?
आज जब न्यायालय के माध्यम से हिन्दू समाज अपनी सांस्कृतिक धरोहरों की पुनः प्राप्ति के लिए प्रयास कर रहा है, तो इसमें आपत्ति क्यों होनी चाहिए? न्यायालय अपने निर्णय ऐतिहासिक साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर देता है। चाहे ज्ञानवापी हो, मथुरा हो या भोजशाला, इन सभी स्थानों पर ऐतिहासिक प्रमाण स्पष्ट रूप से हिन्दू विरासत की पुष्टि करते हैं। क्या यह न्यायपूर्ण है कि हिन्दू समाज को अपनी धार्मिक धरोहर की पुनः प्राप्ति से वंचित रखा जाए?
आपका यह बयान संघ के स्वयंसेवकों के लिए भी स्वीकार्य नहीं हो सकता। संघ के स्वयंसेवक, जो हर परिस्थिति में आपके निर्देशों का पालन करते हैं, वे भी इसे स्वीकारने में असमर्थ होंगे। यह प्रतीत होता है कि आपने यह बयान वास्तविकता और स्वयंसेवकों की भावना जाने बिना दिया है।
आज हिन्दू समाज जाग चुका है। हरियाणा और महाराष्ट्र के हालिया चुनाव परिणाम इस बात का प्रमाण हैं कि यह जागरूकता किसी संगठन विशेष की शक्ति से अधिक हिन्दू समाज के अपने प्रयासों का नतीजा है। यह स्पष्ट है कि हिन्दू समाज ने अब अपने नेतृत्व का भार स्वयं उठा लिया है और किसी भी प्रकार की चुप्पी या समझौते को सहन करने के मूड में नहीं है।
यह समय आपके लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने और हिन्दू समाज के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को साबित करने का है। आपका यह बयान न केवल हिन्दू समाज की भावनाओं को ठेस पहुँचाता है, बल्कि संघ के भविष्य और उसकी प्रासंगिकता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है। हिन्दू समाज आपसे अपेक्षा करता है कि आप उनके साथ खड़े हों, उनके संघर्षों में उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलें।
यदि आप ऐसा करने में असमर्थ रहते हैं, तो यह स्थिति संघ के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है। हिन्दू समाज अब जाग चुका है, और वह अन्याय को सहन करने के मूड में नहीं है। यह समय हिन्दू समाज की भावनाओं को समझने और उनके साथ खड़े होने का है। आपका नेतृत्व हिन्दू समाज के विश्वास और आशाओं का प्रतीक है। इसे बनाए रखना आपकी जिम्मेदारी है।
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