जैन साहब की कैंटीन: शिवपुरी के बेमिसाल स्वाद का अड्डा
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शिवपुरी की धरोहरों में अगर किसी जगह ने लोगों के दिलों में खास जगह बनाई है, तो वह है "जैन साहब की कैंटीन"। यह सिर्फ एक कैंटीन नहीं, बल्कि शिवपुरी की आत्मा का हिस्सा है, जिसने अपने अनोखे स्वाद और दिलचस्प इतिहास से पूरे शहर को अपना दीवाना बना लिया है। लगभग 65 सालों से, यह कैंटीन न केवल स्वाद का प्रतीक है, बल्कि शिवपुरी के लोगों की जीवनशैली और यादों का अभिन्न हिस्सा बन गई है।
शुरुआत: एक सपना जो विरासत बना
वर्ष 1960 में स्वर्गीय श्री राजेन्द्र जैन ने पुराने रेलवे स्टेशन के बाहर इस कैंटीन की नींव रखी थी। उस समय स्टेशन कस्टम गेट के सामने स्थित था और कोयले से चलने वाली रेलगाड़ियां यात्रियों की पहली पसंद हुआ करती थीं। ऐसे समय में, जैन साहब की यह कैंटीन यात्रियों और स्थानीय लोगों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं थी। गरमा-गरम समोसे, पकोड़ी, चाय और कॉफी का स्वाद ऐसा था कि लोग इसे चखने के बाद कहीं और जाने का सोच भी नहीं सकते थे।
जैन साहब के समोसे: स्वाद और शेप का बेमिसाल संगम
शिवपुरी में "जैन साहब के समोसे" का नाम लेते ही हर किसी के मुंह में पानी आ जाता है। इसकी खासियत केवल इसका स्वाद नहीं, बल्कि इसका अनोखा शेप भी है। लाल मिर्च या तीखे मसालों के बजाय, इसमें गरम मसालों का इस्तेमाल किया जाता है, जो इसे दूसरे समोसों से अलग और खास बनाता है। यही कारण है कि शिवपुरीवासी मात्र इसके शेप को देखकर पहचान लेते हैं कि यह जैन साहब के समोसे हैं।
दुखद मोड़ और परंपरा का निर्वाह
स्वर्गीय श्री राजेन्द्र जैन के 1998 में हार्ट अटैक से निधन के बाद यह कैंटीन एक दुखद मोड़ पर पहुंची। लेकिन उनकी इस अमूल्य परंपरा को उनके बेटों, श्री संदीप जैन और श्री प्रवेश जैन, ने पूरी लगन और मेहनत से संभाला। उनके प्रयासों से न केवल कैंटीन का अस्तित्व बना रहा, बल्कि इसका स्वाद भी पहले जैसा ही बरकरार है ।
समय के साथ बदलाव
1998 में, जैन साहब के समोसे की कीमत मात्र 2.50 रुपये थी। यह वह समय था जब लोग इसे खाने के लिए लंबी कतारों में खड़े रहते थे। आज, समोसे की कीमत 10 रुपये हो चुकी है, लेकिन इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है।
बेड़ई की नई शुरुआत
समोसे के साथ-साथ, जैन साहब की कैंटीन में अब बेड़ई भी परोसी जाती है। बेड़ई का यह स्वाद ऐसा है कि लोग इसे खाने के बाद बार-बार लौटते हैं। पुरानी अनाज मंडी के बाहर स्थित यह कैंटीन अब सुबह से ही ग्राहकों से भरी रहती है।
कैंटीन का ऐतिहासिक महत्व
शिवपुरी में यह कैंटीन केवल स्वाद का केंद्र नहीं है, बल्कि यह शहर की ऐतिहासिक पहचान भी है। पुराने रेलवे स्टेशन के समय से लेकर आज तक, इसने समय के साथ अपने स्वाद को बनाए रखा है। कोयले वाली रेलगाड़ियां अब इतिहास बन चुकी हैं, लेकिन इस कैंटीन का स्वाद आज भी वैसा ही है।
65 वर्षों का सफर: स्वाद से रिश्तों तक
शिवपुरी के लोग इस कैंटीन को केवल एक दुकान के रूप में नहीं, बल्कि अपनी यादों और जीवन का हिस्सा मानते हैं। यहाँ का हर समोसा और बेड़ई एक कहानी कहता है। यह कैंटीन न केवल शिवपुरीवासियों का प्यार है, बल्कि बाहर से आने वाले लोग भी इसके स्वाद को भूल नहीं पाते।
रोचक किस्से और यादें
कैंटीन से जुड़ी कई कहानियाँ और किस्से हैं, जो इसे और खास बनाते हैं। पुराने समय में, जब लोग रेलवे स्टेशन से अपने सफर की शुरुआत करते थे, तो जैन साहब के समोसे और चाय उनके सफर का अनिवार्य हिस्सा हुआ करते थे। शहर के कई बुजुर्ग आज भी उन दिनों को याद करते हैं जब यहाँ की चाय और समोसे ने उनकी दोस्तियों और रिश्तों को गहराई दी थी।
आज, जैन साहब की कैंटीन केवल एक दुकान नहीं, बल्कि एक विरासत है जो पीढ़ी दर पीढ़ी शिवपुरीवासियों को जोड़ती आ रही है। इसका अनोखा स्वाद और पुरानी यादों का संगम इसे हर शिवपुरीवासी के दिल के करीब लाता है। अगर आप शिवपुरी में हैं और यहाँ के बेमिसाल स्वाद का आनंद नहीं लिया, तो यह आपकी यात्रा अधूरी मानी जाएगी।
आइए, जैन साहब की कैंटीन पर एक बार जरूर जाएं और 65 साल पुरानी इस विरासत का हिस्सा बनें।
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