"मोहन यादव की सफलता के पीछे छिपा नागा साधुओं का अदृश्य हाथ?"

 

उज्जैन के जनमानस में एक कहानी वर्षों से फुसफुसाहट की तरह गूँज रही है। यह कहानी है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और नागा साधुओं के बीच के एक गूढ़ संबंध की, जो रहस्यमयी आशीर्वाद से जुड़ी है।

यह बात तब की है जब उज्जैन में कुम्भ का आयोजन हुआ था। नागा साधु, जो अपनी तपस्या और अद्भुत शक्ति के लिए जाने जाते हैं, उस दौरान यहाँ भारी संख्या में पहुंचे थे। कथा कहती है कि उसी समय एक नागा साधु की तबियत अचानक बिगड़ गई। भीड़ और आयोजनों के बीच उनकी सेवा करने का जिम्मा मोहन यादव ने लिया। उस समय, वे एक साधारण राजनेता थे, जिनकी पहचान क्षेत्रीय स्तर तक सीमित थी।

नागा साधु को पूरी तरह स्वस्थ करने के लिए मोहन यादव ने दिन-रात एक कर दिया। साधु के आराम करने से लेकर उनके खान-पान तक, हर छोटी-बड़ी आवश्यकता का ध्यान रखा। कहा जाता है कि जब साधु स्वस्थ होकर जाने लगे, तो उन्होंने मोहन यादव को गुप्त रूप से एक आशीर्वाद दिया। उस आशीर्वाद में क्या था, यह अब तक रहस्य बना हुआ है।

लेकिन उज्जैन में रहने वाले इसे संयोग नहीं मानते। उनका कहना है कि उस आशीर्वाद के बाद मोहन यादव की राजनीतिक यात्रा में जो बदलाव आया, वह चमत्कारिक था। जहां पहले वे स्थानीय स्तर पर संघर्ष करते दिखते थे, वहीं इसके बाद उन्होंने जिस भी चुनाव में कदम रखा, न केवल जीत दर्ज की बल्कि उनके विरोधी बुरी तरह पराजित हुए। चर्चा तो यहाँ तक है कि उनके कई प्रतिद्वंद्वियों का राजनीतिक और आर्थिक कद लगातार गिरता गया।

वर्षों बाद, जब मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद की दौड़ शुरू हुई, तब मोहन यादव का नाम कहीं भी प्रमुख दावेदारों में नहीं था। लेकिन परिस्थितियाँ इस तरह बदलीं कि वे न केवल इस दौड़ में शामिल हुए, बल्कि सबसे आगे निकलकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए।

जनमानस में विश्वास है कि यह सब नागा साधुओं के आशीर्वाद का प्रताप था। नागा साधुओं की शक्ति और तपस्या को जो लोग समझते हैं, वे जानते हैं कि उनके आशीर्वाद में कितनी गहराई होती है। हालांकि, मोहन यादव ने कभी सार्वजनिक रूप से इस बारे में कुछ नहीं कहा, लेकिन उनकी सफलता और इस कहानी का मेल उज्जैन के लोगों के लिए किसी रहस्य से कम नहीं।

क्या यह वाकई नागा साधुओं का आशीर्वाद था, या मोहन यादव की मेहनत और नेतृत्व क्षमता? यह सवाल आज भी अनुत्तरित है। लेकिन यह कहानी न केवल मोहन यादव की राजनीतिक यात्रा को रोचक बनाती है, बल्कि नागा साधुओं की शक्ति और आस्था को भी उजागर करती है। रहस्य की यह गाथा उज्जैन के लोकजीवन में एक अमिट छाप छोड़ चुकी है।

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