क्या यशोधरा राजे को दरकिनार कर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा ने रची साजिश?

 

मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया परिवार का प्रभाव ऐतिहासिक रहा है। यशोधरा राजे सिंधिया, जो अपनी कर्मठता और प्रशासनिक कुशलता के लिए जानी जाती हैं, शिवपुरी की राजनीति का एक अभिन्न हिस्सा रही हैं। उनके नेतृत्व में शिवपुरी ने कई विकास कार्यों को देखा, लेकिन हाल के वर्षों में उनका सक्रिय राजनीति से दूर होना और ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा में शामिल होना, कई अनसुलझे सवाल खड़े करता है।

भाजपा में ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रवेश, पार्टी के भीतर गहरी हलचल का संकेत देता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनके आगमन का उद्देश्य सिर्फ कांग्रेस को कमजोर करना नहीं था, बल्कि सिंधिया परिवार के अंदरूनी समीकरणों को प्रभावित करना भी था। यह कहा जा रहा है कि यशोधरा राजे और वसुंधरा राजे के प्रभाव को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया गया। इस पूरी योजना के पीछे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का नाम लिया जा रहा है, जो अपनी सटीक और कठोर रणनीतियों के लिए जाने जाते हैं।

अमित शाह के करीबी माने जाने वाले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और मुख्यमंत्री मोहन यादव ने प्रदेश की राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत की है। यह समीकरण प्रदेश के पुराने और प्रभावी नेताओं के लिए चुनौती बन चुका है। शिवपुरी, जो कभी यशोधरा राजे सिंधिया का अभेद किला माना जाता था, अब सत्ता के नए ध्रुवीकरण का गवाह बन रहा है।

यशोधरा राजे के शिवपुरी से हटने के बाद अचानक उनके समर्थकों का ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे में जाना एक चौंकाने वाली घटना थी। यह बदलाव न केवल राजनीतिक रूप से अप्रत्याशित था, बल्कि इसे एक सुनियोजित प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है। शिवपुरी में बढ़ते अपराध, भ्रष्टाचार, और प्रशासनिक शिथिलता ने इन चर्चाओं को और बल दिया है। ऐसा लगता है कि जिला अब एक नए प्रकार की राजनीतिक अराजकता का सामना कर रहा है।

प्रदेश स्तर पर भी, भाजपा के पुराने नेताओं को दरकिनार करने की घटनाएं बढ़ी हैं। एक सवाल जो बार-बार उठता है, वह यह है कि क्या मध्य प्रदेश भाजपा के लिए एक प्रयोगशाला बन गया है? क्या यहां सत्ता के संतुलन को तोड़कर नए समीकरण बनाने की कोशिश हो रही है? यह भी कहा जा रहा है कि विगत विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी चयन के लिए जिस पीआर एजेंसी को जिम्मेदारी दी गई थी, उसने केंद्रीय स्तर के निर्देशों के आधार पर काम किया, जिसमें जमीनी नेताओं को कमजोर करने की साजिश थी।

शिवपुरी में, यशोधरा राजे की अनुपस्थिति ने अपराध और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। जिले की जनता, जो कभी उनके नेतृत्व में सुरक्षित महसूस करती थी, अब एक अनिश्चित भविष्य की ओर देख रही है। यह भी गौर करने वाली बात है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक जिले के विभिन्न स्थानों पर प्रभावशाली बन चुके हैं, लेकिन इसके परिणामस्वरूप कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ रही है।

क्या शिवपुरी और मध्य प्रदेश में हो रहे ये बदलाव सिर्फ सत्ता की भूख और राजनीति की चालों का परिणाम हैं, या फिर यह एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है? क्या भाजपा के भीतर गुटबाजी को बढ़ावा देकर संगठन को कमजोर करने की कोई योजना बनाई जा रही है? ये सवाल सिर्फ शिवपुरी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरे प्रदेश की राजनीति पर सवालिया निशान लगाते हैं।

जनता और राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें अब इस पर टिकी हैं कि आने वाले समय में ये बदलाव किस दिशा में जाते हैं। शिवपुरी, जो कभी विकास और स्थिरता का प्रतीक था, आज एक रहस्यमयी राजनीतिक प्रयोगशाला बन चुका है। इसका परिणाम न केवल जिले, बल्कि पूरे प्रदेश की राजनीति को बदल सकता है।

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