भटनावर से पोहरी तक: शिक्षा, समाज सुधार और संघर्ष की अमर गाथा
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पोहरी का आदर्श विद्यालय शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। इस विद्यालय की स्थापना 1921 में स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी स्वर्गीय गोपालकृष्ण पौराणिक ने की थी। महात्मा गांधी के विचारों से अत्यधिक प्रभावित गोपालकृष्ण पौराणिक ने अपनी पूरी जिंदगी सामाजिक और शैक्षणिक उत्थान के लिए समर्पित कर दी। वे अमेरिका जाकर पत्रकारिता की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन गांधीजी ने उन्हें समझाया कि देश को ऐसे युवाओं की आवश्यकता है जो जमीनी स्तर पर काम कर सकें। गांधीजी के इस प्रेरणादायक संदेश को आत्मसात करते हुए पौराणिक जी दिल्ली से वापस लौटे और शिवपुरी जिले के पोहरी क्षेत्र में शिक्षा के माध्यम से समाज सुधार का कार्य शुरू किया।
गोपालकृष्ण पौराणिक ने भटनावर गांव में आदर्श विद्यालय की नींव रखी। यह विद्यालय न केवल शिक्षा का केंद्र बना, बल्कि सामाजिक समरसता और गांधीवादी विचारधारा का आदर्श उदाहरण भी पेश करता था। यहां पढ़ाई का तरीका पूरी तरह से गांधीवादी था, जिसमें चरखा कातना, खादी बुनना, और आत्मनिर्भरता की शिक्षा दी जाती थी। विद्यार्थियों को सत्य, अहिंसा, और सामाजिक समानता के सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रेरित किया जाता था। विद्यालय में न केवल किताबों से ज्ञान दिया जाता था, बल्कि व्यावहारिक शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों को जीवन की वास्तविकता से जोड़ने का प्रयास किया जाता था। यहां शिक्षा के साथ-साथ हस्तकला और कृषि जैसे कौशल भी सिखाए जाते थे, ताकि छात्र आत्मनिर्भर बन सकें।
हालांकि, भटनावर गांव में जातिवाद और छुआछूत की गहरी जड़ें होने के कारण उच्च वर्गीय समाज ने इस विद्यालय का कड़ा विरोध किया। स्थानीय समाज ने इसे अपने परंपरागत ढांचे के लिए खतरा माना और सरकारी दबाव में आकर विद्यालय को भटनावर से स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया। 1922 में इस विद्यालय को पोहरी के किले के पास एक निर्जन स्थान पर स्थापित किया गया। यहां छात्रों को रात में खुद पहरेदारी करनी पड़ती थी, क्योंकि आसपास की परिस्थितियां सुरक्षित नहीं थीं। इसके बावजूद छात्रों और शिक्षकों ने अपने संकल्प और दृढ़ता से विद्यालय को आगे बढ़ाया।
गोपालकृष्ण पौराणिक बहुभाषी विद्वान थे, जो संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी में महारत रखते थे। उनका दृष्टिकोण केवल शिक्षा प्रदान करने तक सीमित नहीं था। वे समाज में एक नई चेतना और जागरूकता लाने के लिए प्रयासरत थे। उन्होंने पोहरी के आदर्श सेवा संघ की स्थापना की, जिसके संचालन के लिए पोहरी के जागीरदार सरदार शितोले ने 300 बीघा भूमि दान दी। यह भूमि धीरे-धीरे घटकर 60 बीघा रह गई। विद्यालय का संचालन अनाज, फल, सब्जियां, और खादी के उत्पादन और बिक्री से होने वाले आय पर निर्भर था। छात्रों से फीस के बदले उनके घरों से लाया गया अनाज लिया जाता था।
पौराणिक जी का सपना था कि पोहरी में प्रदेश का पहला कृषि विश्वविद्यालय स्थापित हो। उन्होंने इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से बातचीत की थी। हालांकि, सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए यह सपना साकार नहीं हो सका और यह विश्वविद्यालय जबलपुर में स्थापित किया गया। उनकी इस असफलता के बावजूद, उनकी दूरदृष्टि और समर्पण ने शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में एक अमिट छाप छोड़ी।
इस विद्यालय ने कई असाधारण छात्रों को जन्म दिया। इनमें से एक थे अमृतलाल, जो अपने समय के सबसे कुख्यात लेकिन विचारशील डकैत बने। अमृतलाल इस विद्यालय के सबसे होनहार छात्रों में से एक थे. एक ओर वे इस विद्यालय के आदर्श मूल्यों के पोषक थे, तो दूसरी ओर परिस्थितियों ने उन्हें डकैत बनने पर मजबूर कर दिया। गरीबी और अन्याय के कारण उन्होंने बंदूक उठाई, लेकिन उनकी डकैती केवल अपराध नहीं थी; उसमें सामाजिक प्रतिशोध की भावना थी। उन्होंने अपने जीवन में सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को अपनाया और गरीबों और वंचितों की सहायता की। उनके जीवन से जुड़ा एक रोचक किस्सा है जब फिल्म "पाकीज़ा" की शूटिंग के दौरान कमाल अमरोही और मीना कुमारी उनके गिरोह के कब्जे में आ गए थे। अमृतलाल ने न केवल उन्हें सम्मानपूर्वक रिहा किया, बल्कि मीना कुमारी से अपनी कलाई पर ‘एम’ लिखवाने की अनूठी जिद भी पूरी की।
इस विद्यालय से जुड़े एक अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे रतिराम जी, रतिराम जी, जो गांधीजी के शिष्य थे, ने आदर्श विद्यालय को स्वतंत्रता संग्राम का गुप्त केंद्र बनाया। अंग्रेजों के खिलाफ उनकी गतिविधियाँ इतनी साहसिक थीं कि उन्होंने कई बार अपने प्राणों की बाजी लगाई। उन्होंने साबरमती आश्रम में प्रशिक्षण प्राप्त किया और चरखा कातने में निपुण थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई बार अंग्रेजी जासूसों को गुमराह किया। पोहरी का आदर्श सेवा केंद्र क्रांतिकारी गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र था। यहां से कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी गतिविधियों को अंजाम दिया।
मौनी बाबा, जो भटनावर के एक महान संत थे, ने सामाजिक समरसता के लिए उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने अपने गांव में शूद्र समुदाय को हवन में शामिल किया, जिससे उनके खिलाफ विरोध हुआ और उन्हें गांव छोड़ना पड़ा। वे शिवपुरी के सिदेश्वर मंदिर में रहने लगे, जहां उन्होंने समाज सुधार और आध्यात्मिक कार्यों को जारी रखा। भटनावर से सिदेश्वर मंदिर तक का उनका सफर जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ उनकी लड़ाई का प्रतीक है। उन्होंने समाज के शूद्र वर्ग को मंदिर और यज्ञ में शामिल कर सामाजिक समानता का संदेश दिया।
नारायण दास त्रिवेदी ने आदर्श विद्यालय के सिद्धांतों को शिवपुरी तक पहुँचाया। उन्होंने यहाँ भारतीय विद्यालय की स्थापना की, जो राष्ट्रीय शिक्षा आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना। यह विद्यालय न केवल शिक्षा का केंद्र था, बल्कि भारतीय संस्कृति और स्वदेशी विचारों का प्रसार करने का माध्यम भी। आगे चलकर आपने शिवपुरी में भारतीय विद्यालय की स्थापना की।
त्रिवेदी जी का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह समाज को नई दिशा देने का माध्यम बने। लेकिन आज उनकी इस महान पहल को शायद ही कोई याद करता है।
हरिहर निवास त्रिवेदी ने अपने जीवन में आर्य समाज के सिद्धांतों को आत्मसात किया। उन्होंने जाति-पांति की सीमाओं को तोड़ते हुए आर्य समाज पद्धति से विवाह किया। उनका यह कदम सामाजिक क्रांति का प्रतीक था, जिसने उस समय की रूढ़िवादी परंपराओं को चुनौती दी।
हरिहर निवास का विवाह केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं था, बल्कि यह समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और दकियानूसी परंपराओं के खिलाफ एक संदेश था। लेकिन क्या यह दुखद नहीं है कि उनके जैसे क्रांतिकारी व्यक्तित्व को आज भुला दिया गया है?
आज यह विद्यालय अपनी ऐतिहासिक पहचान और योगदान के बावजूद उपेक्षा का शिकार है। यह मात्र 1 बीघा जमीन पर संचालित हो रहा है, जबकि इसकी 30 बीघा जमीन गुम हो चुकी है। पिछले 20 वर्षों में विद्यालय का ऑडिट नहीं हुआ है और इसका प्रबंधन मनोनयन के आधार पर चल रहा है। यह विद्यालय, जिसने कभी शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में क्रांति लाई थी, अब एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संघर्षरत है।
आज का सवाल: हम अपने इतिहास से क्यों कटते जा रहे हैं?
आदर्श विद्यालय की यह गाथा केवल एक शिक्षण संस्थान की नहीं, बल्कि सामाजिक सुधार और क्रांति की है। गोपालकृष्ण पौराणिक, रतिराम, अमृतलाल, नारायण दास, हरिहर निवास और मौनी बाबा जैसे नायकों ने पोहरी और उसके आसपास के क्षेत्र को नई पहचान दी।
लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आज स्थानीय नागरिक ही इन महान व्यक्तित्वों और उनके योगदान से अनजान हैं। यह हमारी विफलता नहीं तो और क्या है?
क्या यह इतिहास मिट जाएगा?
आज यह सवाल हमारे सामने है: क्या हम अपने गौरवशाली अतीत को भूलने देंगे, या इसे जीवित रखने का प्रयास करेंगे? यह समय है कि हम इन नायकों को उनकी सही जगह दें और उनकी प्रेरणादायक गाथाओं को अगली पीढ़ी तक पहुँचाएँ।
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इतिहास
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