उच्च शिक्षा में गिरते मानक: पीएचडी से लेकर प्रायोगिक परीक्षा तक भ्रष्टाचार की काली परतें
0
टिप्पणियाँ
भारत का उच्च शिक्षा क्षेत्र, जिसे ज्ञान और शोध का केंद्र माना जाता है, अब गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। हाल ही में भोपाल और ग्वालियर में आयोजित परीक्षा संचालन और मूल्यांकन पर कार्यशाला में प्रदेश भर के कॉलेज प्राचार्यों ने शिक्षा व्यवस्था के गिरते स्तर और व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त कीं।
पीएम कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस, सतना के प्राचार्य डॉ. सुरेश चंद्र राय ने पीएचडी डिग्री के क्षेत्र में चल रहे गिरोह का खुलासा किया। उन्होंने बताया कि अब पीएचडी शोध एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक सौदेबाजी बन गया है। पैसे खर्च करने वालों के लिए 200 पृष्ठों की थीसिस लिखना, जमा करना, और मूल्यांकन के बाद डिग्री प्राप्त करना मात्र औपचारिकता बन चुकी है। इस सिस्टम के कारण ऐसे लोगों का एक गिरोह तैयार हो गया है, जो शिक्षा प्रणाली के भीतर अपनी जगह बना चुके हैं और नए शोधार्थियों को भी इसी गलत रास्ते पर ले जाते हैं।
इसी कार्यशाला में शासकीय पीजी कॉलेज, मुरैना के प्राचार्य डॉ. एके उपाध्याय ने प्रायोगिक परीक्षाओं में चल रही गड़बड़ियों को उजागर किया। उन्होंने बताया कि निजी कॉलेजों में छात्रों के अंक पहले से तय होते हैं। प्रायोगिक परीक्षा केवल एक दिखावा बनकर रह गई है, जिसमें छात्रों को 100 में से 97, 98, या 100 अंक दिए जाते हैं, भले ही उनका प्रदर्शन औसत से कम हो। यह समस्या केवल मुरैना तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे प्रदेश में फैली हुई है।
इन घटनाओं ने उच्च शिक्षा की साख पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। शिक्षा, जो कि समाज को समृद्ध और सशक्त बनाने का माध्यम है, अब भ्रष्टाचार का गढ़ बनती जा रही है। इस स्थिति में जरूरी है कि सरकार, शिक्षा विभाग, और समाज मिलकर इन समस्याओं का समाधान करें।
क्या किया जा सकता है?
1. पारदर्शिता और निगरानी: पीएचडी शोध और मूल्यांकन प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल मॉनिटरिंग और बाहरी मूल्यांकनकर्ताओं की नियुक्ति की जानी चाहिए।
2. सख्त कार्रवाई: प्रायोगिक परीक्षाओं में गड़बड़ी करने वाले कॉलेजों पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। मान्यता रद्द करना और जुर्माना लगाना प्रभावी कदम हो सकते हैं।
3. शिक्षकों और प्रशासकों की जवाबदेही: कॉलेज प्रशासन और प्राचार्यों को अपने संस्थानों में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
4. नैतिक शिक्षा का समावेश: शोधकर्ताओं और छात्रों को शिक्षा के नैतिक मूल्यों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।
यदि समय रहते इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो न केवल हमारी शिक्षा व्यवस्था का स्तर गिरेगा, बल्कि यह समाज और राष्ट्र के विकास को भी बाधित करेगा। उच्च शिक्षा को एक बार फिर उसके मूल उद्देश्य—ज्ञान और नवाचार—की ओर लौटाना ही समय की मांग है।
Tags :
मध्यप्रदेश
एक टिप्पणी भेजें