क्या संघ कभी बदल सकता है? - दिवाकर शर्मा

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का इतिहास और उसके मूलभूत आदर्श एक ऐसी यात्रा की कहानी कहते हैं, जिसमें भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सपना बुना गया। 27 सितंबर 1925 को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा नागपुर में स्थापित यह संगठन भारतीय समाज की उस गहरी आत्मा का प्रतीक है, जो अपनी सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रीय गौरव को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध थी। संघ का उद्देश्य केवल एक संगठन बनना नहीं था, बल्कि एक ऐसी विचारधारा का निर्माण करना था, जो राष्ट्र को एकता, स्वाभिमान, और समर्पण की भावना से प्रेरित कर सके।

RSS ने अपने प्रारंभिक दिनों से ही भगवा ध्वज को अपना गुरु मानकर उसे संगठन का सर्वोच्च प्रतीक बनाया। यह निर्णय गहरी वैचारिक और सांस्कृतिक सोच से प्रेरित था। भगवा ध्वज भारत की प्राचीन परंपराओं और गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है। यह तपस्या, त्याग, बलिदान, और निस्वार्थ सेवा का संदेश देता है, जो संघ के आदर्शों के केंद्र में है। संघ ने व्यक्तिवाद को त्यागकर सामूहिकता को प्राथमिकता दी, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि संगठन किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित न हो, बल्कि एक स्थायी आदर्श और मूल्य-आधारित व्यवस्था का निर्माण हो।

संघ के उद्देश्यों में हिंदू समाज को संगठित और सशक्त करना, राष्ट्रवाद का प्रचार करना, समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना और युवाओं में नैतिकता और अनुशासन को बढ़ावा देना शामिल थे। इन उद्देश्यों के माध्यम से संघ ने न केवल सांस्कृतिक जागरूकता बढ़ाई, बल्कि समाज के भीतर व्याप्त जातिवाद और भेदभाव को समाप्त करने के प्रयास भी किए। इसके कार्यक्षेत्र में स्वदेशी सोच को बढ़ावा देना, आत्मनिर्भरता का विकास करना, और समाज की समस्याओं का स्वाभाविक समाधान प्रस्तुत करना शामिल रहा है।

लेकिन, जैसे-जैसे समय बदला और समाज में नई चुनौतियां उभरीं, संघ को भी अपनी कार्यप्रणाली और दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता महसूस हुई। हालांकि, इस बदलाव की प्रक्रिया संघ के मूलभूत सिद्धांतों और आदर्शों के साथ सामंजस्य रखते हुए हुई। संघ ने अपनी विचारधारा को आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने का प्रयास किया, लेकिन इसकी जड़ें हमेशा उन आदर्शों में गहरी रही हैं, जो इसे स्वाभाविक और "प्राकृतिक" बनाती हैं।

यह कहना उचित होगा कि संघ का विकास किसी बाहरी दबाव या राजनीतिक प्रभाव से नहीं हुआ, बल्कि यह भारतीय समाज की स्वाभाविक आवश्यकताओं और सांस्कृतिक संरचना के अनुरूप हुआ। संघ की कार्यप्रणाली समाज के भीतर मौजूद सहकार, सेवा, और एकता की भावना को संगठित करती है। यह संगठन समाज की समस्याओं का समाधान स्वदेशी दृष्टिकोण से करता है और इसे किसी राजनीतिक विचारधारा या सत्ता के अधीन नहीं रखा जा सकता।

हालांकि, आधुनिक युग में संघ के समक्ष कुछ गंभीर चुनौतियां भी हैं। व्यक्तिवाद और स्वार्थी तत्वों का संगठन में प्रवेश, संघ की कार्यप्रणाली और मूल्यों के लिए खतरा बन सकता है। यदि संगठन में स्वार्थी तत्व प्रवेश करते हैं, तो यह उसकी विश्वसनीयता, सामूहिकता, और आदर्शों को कमजोर कर सकता है। व्यक्तिवाद संगठन की उस भावना को विघटित कर सकता है, जो इसे एक सशक्त और संगठित इकाई बनाती है।

इस परिप्रेक्ष्य में, यह आवश्यक हो जाता है कि संघ अपनी चयन प्रक्रिया को और अधिक कठोर बनाए, जिससे केवल निस्वार्थ और राष्ट्रवादी व्यक्तियों को ही स्थान मिले। संगठन के भीतर अनुशासन और समर्पण को बनाए रखने के लिए नियमित प्रशिक्षण और आत्मावलोकन की प्रक्रिया अपनानी चाहिए। साथ ही, संघ को अपने स्वयंसेवकों में निस्वार्थ सेवा और त्याग का भाव जगाने वाले कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए।

संघ के भीतर परिवर्तन की प्रक्रिया प्राकृतिक और संतुलित होनी चाहिए। यह आवश्यक है कि संघ का विकास और अनुकूलन उसकी मूल संरचना, संतुलन, और उद्देश्य को क्षति पहुंचाए बिना हो। संघ ने समय-समय पर अपनी कार्यप्रणाली को बदलते हुए नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए आधुनिक तकनीकों और डिजिटल माध्यमों का उपयोग किया है। इसके साथ ही, संघ ने समाज की जरूरतों के अनुसार अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार भी किया है, जैसे कि आपदा राहत कार्य, स्वदेशी शिक्षा प्रणाली, और पर्यावरण संरक्षण।

लेकिन, यह भी सत्य है कि किसी भी संगठन के लिए बदलाव की एक सीमा होती है। यदि परिवर्तन संघ के मूल सिद्धांतों और आदर्शों के विपरीत होता है, तो वह संगठन की स्थिरता और उसकी विचारधारा को नुकसान पहुंचा सकता है। संघ को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसका नेतृत्व और दिशा उसके आदर्शों और मूल्यों पर आधारित रहे, न कि किसी व्यक्ति विशेष की महत्वाकांक्षाओं पर।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसा संगठन है, जो भारतीय समाज और संस्कृति की आत्मा को प्रतिबिंबित करता है। यह संगठन समय के साथ बदला है, लेकिन इसकी जड़ें हमेशा उन मूल्यों में गहरी रही हैं, जो इसे अद्वितीय और "प्राकृतिक" बनाते हैं। संघ का उद्देश्य केवल संगठन का विस्तार करना नहीं है, बल्कि एक ऐसे भारत का निर्माण करना है, जो आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक रूप से आत्मनिर्भर और सशक्त हो।

इसलिए, यह प्रश्न कि "क्या संघ कभी बदल सकता है," इस तथ्य पर आधारित है कि संघ का हर परिवर्तन उसके मूल आदर्शों और उद्देश्यों के साथ सामंजस्य में होता है। संघ एक विचारधारा है, और विचारधाराएं समय के साथ विकसित होती हैं, लेकिन उनका मूल उद्देश्य और दृष्टिकोण अपरिवर्तित रहता है। संघ का परिवर्तन केवल उसकी कार्यप्रणाली में हो सकता है, लेकिन उसके मूल सिद्धांत और आदर्श सदैव स्थायी रहेंगे। यही संघ की स्थिरता और सफलता का रहस्य है।


दिवाकर शर्मा 
संपादक www.krantidoot.in
मप्र राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार 
ईमेल - krantidooot@gmail.com
मोबाइल - 7999769392, 8109449187
पता - विष्णु मंदिर के पीछे, गणेश कॉलोनी, शिवपुरी (म. प्र.)

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें