राजनीति का कठोर सच: कार्यकर्ता या मोहरा? - दिवाकर शर्मा

 


किसी भी छोटे शहर, कस्बे या गाँव की राजनीतिक तस्वीर पर नज़र डालें, तो आपको एक जैसे चेहरे, एक जैसे वादे और एक जैसे संघर्ष नज़र आएंगे। छोटे शहरों मेँ राजनीति का आलम ऐसा है कि सच्चे और निष्ठावान कार्यकर्ता दिन-रात अपने नेताजी के पीछे पसीना बहाते हैं, लेकिन अंत में उनके हिस्से में आता है सिर्फ आश्वासन, तिरस्कार, और राजनीति का क्रूर चेहरा।


नेताजी की राजनीति में तुम्हारा अस्तित्व तब तक है, जब तक तुम उनके लिए मुफ़्त का ईंधन हो। तुम्हारी मेहनत और समर्पण को उनकी रणनीति में वही जगह मिलती है, जो एक पुराने औजार को मिलती है—जब तक चलता है, ठीक है; वरना किसी नए औजार की तलाश शुरू हो जाती है।


तुम्हारे जैसे सैकड़ों कार्यकर्ता सुबह से रात तक नेताजी के साथ फोटो खिंचवाने, नारे लगाने, और भीड़ जुटाने में लगे रहते हैं। तुम्हारा काम केवल उनके आदेश पर नारेबाजी करना, गली-गली पर्चे बांटना, और चुनावी गाड़ियों में झंडे लहराना है। लेकिन क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारी मेहनत का असली फल किसे मिलता है?


जब टिकट बांटने का समय आता है, तब नेताजी की प्राथमिकता बदल जाती है। उनके दिमाग में तुम्हारी जगह वह लोग लेते हैं जो मोटे चेक लेकर आते हैं, जिन्होंने पिछले चुनाव में 'पार्टी के लिए' हेलीकॉप्टर दिए थे, या जिन्होंने गुप्त रूप से 'पार्टी फंड' में बड़ा योगदान दिया था।


तुम्हारी उम्मीदें तब और दम तोड़ देती हैं, जब नेताजी की श्रीमतीजी ऐन वक्त पर किसी रिश्तेदार के लिए अड़ जाती हैं। और अगर किसी दबंग दल-बदलू की एंट्री हो जाए, जो अपने साथ 10-15 हजार वोट तोड़कर लाए, तो तुम्हारी सारी निष्ठा और मेहनत उसके भारी भरकम राजनीतिक वजन के नीचे कुचल जाती है।


तुम सोचते हो कि इतने सालों की सेवा के बदले तुम्हें ठेका, नौकरी, या कोई छोटा-मोटा पद मिल जाएगा। लेकिन राजनीति के इस खेल में तुम्हारा हिस्सा केवल हवाई वादे और नेताजी की मुस्कान होती है। मलाईदार विभागों में ठेके पहले ही बंट चुके होते हैं। नेताजी खुद इनकी देखरेख करते हैं, ताकि पूरा मुनाफ़ा सीधा उनके खाते में जाए।


अगर तुम्हें पद-प्रतिष्ठा नहीं चाहिए और केवल सम्मान के भूखे हो, तो नेताजी तुम्हारी कुटिया को पवित्र करने जरूर आएंगे। लेकिन यह पवित्रता केवल उनके खाने की थाली और फूलमाला तक सीमित रहेगी। तुम्हारी असली परख तब होगी, जब पुलिस चौराहे पर तुम्हें पकड़ लेगी, और नेताजी के फोन तक तुम्हारी पहुंच भी नहीं होगी।


सच्चाई यह है कि राजनीति अब सेवा नहीं, सौदा बन चुकी है। आदर्शवाद और त्याग की बातें केवल भाषणों में शोभा देती हैं। आज का दौर चतुराई और अवसरवाद का है। नेता अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए तुम्हारे सपनों को मोहरे की तरह इस्तेमाल करते हैं।


अगर तुम निःस्वार्थ भाव से राजनीति में टिके रहना चाहते हो, तो याद रखना—तुम्हारी जगह देव दुर्लभ है। तुम्हारी मेहनत नेताओं की गाड़ियों के ईंधन की तरह है, जो उनकी गाड़ियां तो चलाती है, पर तुम्हें मंजिल तक नहीं पहुंचाती।


तो सोचो, तुम्हें क्या चाहिए—नेताओं का झूठा आश्वासन, या अपनी खुद की एक सशक्त पहचान? राजनीति में टिके रहना है तो खुद को इस्तेमाल होने से बचाओ, क्योंकि तुम्हारा भविष्य तुम्हारे अपने हाथ में है, न कि किसी नेताजी की कृपा में।

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