धर्म प्रचार और समाज प्रबोधन का केंद्र बने मंदिर - मिलिंद परांडे, (केंद्रीय संगठन महामंत्री- विहिप)

 

हिंदी विवेक प्रकाशित ‘मंदिर: राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र’ ग्रंथ और विहिप के दिनदर्शिका का हुआ विमोचन

मुकेश गुप्ता

मुंबई। हमारे मंदिर पहले की तरह समजाभिमुख बनकर शिक्षा, चिकित्सा, सेवा, आस्था, प्रेरणा, शक्ति, धर्म प्रचार और समाज प्रबोधन का केंद्र बने, यह आज की आवश्यकता है। यह वक्तव्य मिलिंद परांडे ने 'मंदिर राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र' ग्रंथ के विमोचन कार्यक्रम के दौरान प्रमुख वक्ता के तौर पर दिया। उन्होंने आगे कहा कि यदि समाज बंट गया या सो गया तो मंदिर पुनः ध्वस्त हो जाएंगे, इसलिए हमें ऐसे सशक्त संगठित जागरूक समाज का निर्माण करना होगा कि भविष्य में भी कोई मंदिरों को तोड़ने का साहस न कर पाए। हिंदुत्व के जागरण और विमर्श के केंद्र में लाने में मंदिर खासकर रामजन्मभूमि आंदोलन की प्रमुख भूमिका रही है। मंदिर के विविध पहलुओं को मंदिर ग्रंथ में रेखांकित किया गया है। अतः निश्चित रूप से मंदिर ग्रंथ मार्गदर्शक सिद्ध होगा, ऐसा मझे पूर्ण विश्वास है। हिंदी विवेक के इस सराहनीय कार्य के लिए मैं उनका अभिनंदन करता हूं। आज देश का कोई भी चर्च या मस्जिद सरकारी नियंत्रण में नहीं है किंतु मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में रखा गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार से कहा है कि मंदिरों को नियंत्रित कर उसकी व्यवस्था संभालना सरकार का काम नहीं है। बावजूद इसके मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में रख कर मंदिरों की संपत्ति का सरकार दुरुपयोग कर रही है। इसलिए मंदिरों को मुक्त करना हमारा कर्तव्य है। मंदिर की अर्थव्यवस्था, व्यवस्थापन, कार्यप्रणाली, पारदर्शिता, समाज की सहभागिता और मंदिर के सम्बंध में हमारी दृष्टि कैसी होनी चाहिए, ऐसे विविध विषयों से इस ग्रंथ में अवगत कराया गया है।


मुंबई के दादर पूर्व स्थित स्वामी नारायण मंदिर के सभागृह में हिंदी विवेक पत्रिका द्वारा प्रकाशित ‘मंदिर: राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र’ ग्रंथ का विमोचन समारोह हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। इसी के साथ विहिप के दिनदर्शिका का भी विमोचन किया गया। मंच पर विराजमान विहिप के केंद्रीय संगठन महामंत्री मिलिंद परांडे जी, मंदिर स्थापत्य व मूर्ति विशेषज्ञ डॉ. गो. ब. देगलूरकर, झा कंस्ट्रक्शन प्रा. लि. के चेयरमैन व एमडी रामसुंदर झा एवं उनकी धर्म पत्नी मनोरमा झा, विहिप कोंकण प्रांत मंत्री मोहन सालेकर, हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे, हिंदी विवेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर एवं हिंदी विवेक की कार्यकारी सम्पादक श्रीमती पल्लवी अनवेकर के करकमलों द्वारा ग्रंथ एवं दिनदर्शिका का विमोचन किया गया।


भारत माता की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं कवि रजनीकांत द्वारा सुंदर कविता का प्रस्तुतिकरण कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। इसके बाद मंच पर उपस्थित सभी मान्यवरों का परिचय व स्वागत सम्मान किया गया।


हिंदी विवेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर ने अपनी प्रस्तावना में हिंदी विवेक पत्रिका के १५ वर्षों की उल्लेखनीय सफल यात्रा पर संक्षेप में प्रकाश डाला और विशेष तौर पर इस बात पर जोर दिया कि हमने मंदिरों के महत्व को भुला दिया इसलिए हमें गुलाम होना पड़ा। मंदिर राष्ट्र व समाज जागरण के प्रमुख केंद्र रहे है इसलिए हमारी मंदिर की परंपरा को शुरू करने से ही भारत विश्वगुरु की भूमिका में आएगा। लोकरंजन के साथ लोकमंगल करने के उद्देश्य से हिंदी विवेक पत्रिका द्वारा 'मंदिर: राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र' ग्रंथ को प्रकाशित किया गया है। इस ग्रंथ को सफल बनाने में हमारे समाज के गणमान्य जनों का अपेक्षित सहयोग मिला है, जिसके लिए हम सदैव उनके आभारी रहेंगे। मंदिर ग्रंथ का विमोचन कार्यक्रम देश के चार स्थानों पर करने की हमने योजना बनाई है। पहला कार्यक्रम आज हो रहा है। दूसरा कार्यक्रम 29 नवम्बर को मध्य प्रदेश के इंदौर में मा. भैया जी जोशी की उपस्थिति में होने जा रहा है। तीसरा कार्यक्रम मुम्बई के प्रसिद्ध संस्था भागवत परिवार द्वारा मुम्बई में ही किया जाएगा और चौथा कार्यक्रम दक्षिण भारत में होगा। इसके साथ ही परिसंवाद के कार्यक्रम भी होंगे जिसमें मंदिर के विविध विषयों पर चर्चा की जाएगी।


इसके बाद हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे ने अपने भाषण में कहा कि जब समाज खड़ा हो गया तो राम मंदिर बन गया। इसलिए समाज का खड़ा होना आवश्यक है। मंदिर और देवता का सामर्थ्य क्या होता है इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने दो कहानियां सुनाकर श्रोताओं को रोमांचित कर दिया। हिन्दू समाज के भेदभाव और कमियों को दूर करना होगा तभी समाज संगठित एवं शक्तिशाली स्वरूप में खड़ा होगा। उन्होंने आगे कहा कि सरदार पटेल को ऐसा क्यों लगा कि सोमनाथ का मंदिर खड़ा होना चाहिए? के.एन. मुंशी और राजेंद्र प्रसाद को क्यों लगा कि मंदिर खड़ा होना चाहिए? वो तो विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता नहीं थे। तब तो विहिप का जन्म भी नहीं हुआ था परंतु वो इस बात को जानते थे कि भारत स्वतंत्र हो रहा है और स्वतंत्रता का प्रतीक क्या है तो वह हमारा मंदिर है। यदि मंदिर खड़ा होता है और भारत स्वतंत्र होता है तो दुनिया में एक सकारात्मक संदेश जाएगा।


मंदिर स्थापत्य व मूर्ति विशेषज्ञ डॉ. गो. ब. देगलूरकर जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि मंदिर के स्थापत्य कला के शिल्पकारों को हमने भुला दिया। जिन्होंने भव्य दिव्य मंदिर बनाए। मंदिर एक सामाजिक संस्था है जिसमें समाज के सभी वर्गों की सहभागिता होती है। मंदिर में जाने के पूर्व उसकी परिक्रमा करनी चाहिए। मंदिर की बाहरी दीवार पर अंकित सुरा सुंदरी आपसे कुछ कहती है, उसे समझना चाहिए। मनुष्य का शरीर और मंदिर का स्वरूप एक जैसा होता है।


इस दौरान झा कंस्ट्रक्शन प्रा. लि. के चेयरमैन व एमडी तथा डायरेक्टर रामसुंदर झा एवं उनकी धर्मपत्नी मनोरमा झा, गोवर्धन इको विलेज के निदेशक गौरंगदास प्रभुजी, महालक्ष्मी मंदिर ट्रस्ट के चेयरमैन वी. एन. गुपचुप, टेम्पल कनेक्ट के संस्थापक गिरीष वासुदेव कुलकर्णी एवं हिंदी विवेक के प्रतिनिधि दत्तात्रेय ताम्हणकर एवं महेश जुन्नरकर को मंच पर उपस्थित मान्यवरों के हाथों पुरस्कार, पुस्तक, शोल व श्रीफल देकर विशेष तौर पर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम का सफल संचालन हिंदी विवेक की कार्यकारी सम्पादक श्रीमती पल्लवी अनवेकर ने किया और सभी का आभार माना। अंत में श्रीमती मानसी राजे द्वारा पसायदान के उपरांत कार्यक्रम का समापन किया गया।


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