क्या यशोधरा राजे नें शिवपुरी से बदला लेने के लिए चुना गायत्री शर्मा को ? - दिवाकर शर्मा
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शिवपुरी नगर पालिका अध्यक्ष पद को लेकर हुए घटनाक्रम में जो राजनीतिक निर्णय सामने आया, वह शहरवासियों के लिए अप्रत्याशित रहा। किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि गायत्री शर्मा जैसे कम अनुभवी व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त किया जाएगा, जबकि नगर में कई योग्य और अनुभवी महिलाएँ थीं जो इस पद की अधिक हकदार मानी जाती थीं। ऐसा कहा जा रहा है कि यशोधरा राजे ने यह निर्णय शिवपुरी से किसी व्यक्तिगत कारणवश लिया। उनके इस निर्णय का असर अब शहर पर पड़ रहा है, और लोग यशोधरा राजे के इस निर्णय के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं।
शिवपुरी में नगर पालिका अध्यक्ष के प्रति बढ़ते असंतोष के बीच जब नागरिक अपनी समस्याओं के समाधान हेतु जनप्रतिनिधियों से मिलने पहुँचते हैं, तो उन्हें वहाँ उपस्थित नए भाजपाई कार्यकर्ताओं से सुनने को मिलता है – "कौन से महाराज? असली या नकली महाराज?" इस प्रकार की टिप्पणियाँ शहर की बदलती राजनीतिक स्थिति का स्पष्ट संकेत देती हैं। यह दर्शाता है कि अब शिवपुरी का राजनीतिक परिदृश्य पहले जैसा नहीं रहा, और जनता को यह समझने की आवश्यकता है कि अब उनके मुद्दों का समाधान खुद ही खोजना होगा, क्योंकि शहर के पारंपरिक नेतृत्व का प्रभाव धीरे-धीरे क्षीण हो रहा है।
क्या यशोधरा राजे ने शिवपुरी से बदला लेने के लिए चुनीं गायत्री शर्मा?
शिवपुरी जिले की राजनीति में बीते कुछ समय से उथल-पुथल मची हुई है, और इसकी जड़ में नगर पालिका अध्यक्ष गायत्री शर्मा के कार्य और निर्णय खड़े नजर आते हैं। सबसे ताजा विवाद वार्ड 37 के महादेव मंदिर में टीन शेड हटाने को लेकर है। इस घटना में गैर-हिंदू व्यक्तियों द्वारा मंदिर के टीन शेड को हटाया गया, जिससे शिवपुरी के हिंदू समाज की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। स्थानीय नागरिक और हिंदुत्व समर्थक संगठन इस घटना से दुखी हैं, और यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या ऐसे मुद्दों पर प्रशासन की चुप्पी उचित है। गायत्री शर्मा, जो इस नगर पालिका की अध्यक्ष हैं, ने इस मामले में कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है, जिससे लोगों के बीच उनके नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं।
महादेव मंदिर विवाद ने शिवपुरी के समाज में असुरक्षा की भावना को जन्म दिया है। यह घटना उन धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के प्रति प्रशासन की नाकामी को दर्शाती है, जो लोगों की आस्था के प्रतीक हैं। गायत्री शर्मा के नेतृत्व में नगर पालिका से यह अपेक्षा की जा रही थी कि धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे, लेकिन इस मामले में ठोस कार्यवाही न देखकर लोग असंतुष्ट हैं। यह सवाल उठता है कि क्या यशोधरा राजे सिंधिया का उन्हें नगर पालिका अध्यक्ष बनाने का निर्णय शिवपुरी के भविष्य के लिए सही था या फिर यह फैसला शिवपुरी की धार्मिक भावनाओं और सांस्कृतिक धरोहर की उपेक्षा का प्रतीक बन गया है।
इस विवाद के बाद गायत्री शर्मा की कार्यशैली और निर्णय लेने की क्षमता पर भी सवाल उठाए जाने लगे हैं। इस घटना के दौरान न केवल मंदिर को नुकसान हुआ, बल्कि समाज में अस्थिरता और असंतोष भी फैल गया। शिवपुरी ने हमेशा अपनी सांस्कृतिक धरोहरों और धार्मिक स्थलों को सुरक्षित रखा है, लेकिन ऐसे में प्रशासन की निष्क्रियता ने लोगों को निराश किया है। धार्मिक स्थलों की सुरक्षा में विफलता केवल प्रशासनिक लापरवाही ही नहीं, बल्कि आम जनता की भावनाओं के प्रति असंवेदनशीलता को भी दर्शाती है। क्या गायत्री शर्मा इस जिम्मेदारी के योग्य थीं, और क्या यशोधरा राजे ने सही सोच के साथ उन्हें यह पद सौंपा था?
इसके अलावा, लुधावली गौशाला में 14 गायों की मौत का मामला भी प्रशासनिक लापरवाही का एक उदाहरण बन गया था। नगर पालिका के अधीन इस गौशाला में गायों की मृत्यु चारे और देखभाल की कमी के चलते हुई थी। यह घटना भी गायत्री शर्मा की कार्यशैली पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। यह भाजपा की छवि पर भी प्रभाव डालता है, क्योंकि गौ संरक्षण और पशुधन की देखभाल भाजपा के प्रमुख मुद्दों में से एक है। इस घटना के बाद कांग्रेस नेता वीरेंद्र रघुवंशी ने इसे भाजपा सरकार की विफलता बताते हुए आरोप लगाया था और कहा था कि प्रशासनिक स्तर पर जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जा रही है। इस स्थिति में यह कहना मुश्किल नहीं कि गायत्री शर्मा के नेतृत्व में नगर पालिका जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर रही है।
नगर पालिका में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप भी गायत्री शर्मा के खिलाफ लगते रहे हैं। शिवपुरी के अनेकों पार्षदों नें इस बात की पूर्व में नाराजगी जाहिर की है कि प्रोसीडिंग रजिस्टर और महत्वपूर्ण फाइलों को गायत्री शर्मा द्वारा उनके घर में रखा जा रहा है, जो कि पारदर्शिता और जवाबदेही का उल्लंघन है। इसके विरुद्ध पार्षदों के द्वारा विरोध प्रदर्शन भी किया जा चुका है और पार्षदों का यह कदम नगर पालिका की व्यवस्था में बड़े बदलाव की मांग को दर्शाता है, क्योंकि शहर की जनता पारदर्शिता और साफ-सुथरे प्रशासन की अपेक्षा करती है। पार्षदों का यह विरोध यह दिखाता है कि नगर पालिका के कामकाज में आम जनता का विश्वास घट रहा है।
शिवपुरी में गायत्री शर्मा के नाम से जुड़े कई विवादों में से एक और मामला सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो से जुड़ा हुआ है। इस वीडियो में गायत्री शर्मा को भाजपा जिला अध्यक्ष से यह कहते सुना गया कि रामजी व्यास की किस्मत अच्छी थी, वरना उन्हें बाहर निकाल देतीं। इस टिप्पणी के कारण नगर की राजनीति में हलचल मच गई थी। यह विवाद उस समय और बढ़ गया जब तत्कालीन सांसद केपी यादव ने रामजी व्यास को अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया था। इस घटनाक्रम ने शिवपुरी की राजनीति में मतभेद और आंतरिक असंतोष को उजागर कर दिया था।
इन सभी घटनाओं और विवादों को देखते हुए यह सवाल लाजमी है कि क्या यशोधरा राजे सिंधिया ने शिवपुरी के हित में सोचकर गायत्री शर्मा को नगर पालिका अध्यक्ष के रूप में चुना था? या फिर यह निर्णय शहर के हितों के खिलाफ था, जिसने शिवपुरी की जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने में असफलता पाई है। धार्मिक स्थलों की सुरक्षा में लापरवाही, गौशाला में गायों की मौत, अवैध खनन पर अस्थायी कार्यवाही, और नगर पालिका में पारदर्शिता की कमी ने लोगों के मन में संदेह पैदा कर दिया है। शिवपुरी की जनता जानना चाहती है कि आखिर यशोधरा राजे ने ऐसा निर्णय क्यों लिया, और क्या यह शिवपुरी के प्रति कोई बदले की भावना से प्रेरित था?
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