पत्रकारिता: कलम का सौदा या सत्य की साधना? – मणिका शर्मा



भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारिता का योगदान अद्वितीय रहा है। उस दौर के पत्रकारों ने न केवल समाज को जागरूक किया, बल्कि अपनी जान की परवाह किए बिना सत्य को सामने लाने का बीड़ा उठाया। वे अपनी कलम को देश और समाज की सेवा का माध्यम मानते थे। उनका जीवन सरल और संघर्षमय था, परंतु उनके उसूलों की दृढ़ता और स्वाभिमान के समक्ष कोई भी सत्ता नहीं टिक पाई। ऐसे पत्रकारों ने अपनी जान की बाजी लगाकर देश की आजादी के लिए आंदोलन चलाया।


आज, उस स्वतंत्रता के सात दशकों बाद, पत्रकारिता का चेहरा और चरित्र तेजी से बदल गया है। आज तथाकथित पत्रकार अपने स्वार्थों और निजी हितों के लिए कलम को नीलाम कर रहे हैं। वे सत्ता, धन और शक्ति के लालच में पड़कर अपनी निष्ठा और नैतिकता को गिरवी रख देते हैं। पत्रकारिता का यह पक्ष शर्मनाक है, क्योंकि यह न केवल पत्रकारिता की गरिमा को धूमिल करता है, बल्कि उन पत्रकारों की छवि को भी बदनाम करता है जो आज भी सत्य के प्रति समर्पित हैं और बिना किसी समझौते के अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।


वास्तविक पत्रकारों की स्थिति आज काफी दयनीय है। वे सत्य को उजागर करने के अपने कर्तव्य में जुटे रहते हैं, परंतु उनके पास संसाधनों की कमी होती है। उनका जीवन सामान्य या कभी-कभी संघर्षमय रहता है। इसके विपरीत, वे पत्रकार जो अपनी कलम को सत्ता और पैसे के हाथों बेच देते हैं, वे लक्जरी जीवन जीते हैं। महंगी गाड़ियाँ, आलीशान मकान और विभिन्न संगठनों में ऊँचे पद इनकी पहचान बन चुकी है। यह पत्रकारिता नहीं, बल्कि कलम की दलाली है।


इन संगठनों की जांच करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ये संगठन भी व्यक्तिगत स्वार्थों और निजी फायदे के लिए बने होते हैं। पत्रकारिता का उद्देश्य समाज को जागरूक करना, सत्य को उजागर करना और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना होता है, लेकिन इन संगठनों के एजेंडा कुछ और ही होते हैं। ये संगठित गिरोह के रूप में काम करते हैं, जो अपने प्रभाव और सत्ता के दम पर मीडिया माफिया की तरह काम करते हैं।


यह मीडिया माफिया समाज के लिए खतरनाक है क्योंकि यह जनता को गुमराह करता है और सच्चे पत्रकारों की मेहनत और निष्ठा को धूमिल करता है। जनता के बीच इन सच्चे पत्रकारों की भी बदनामी होती है, क्योंकि एक ही पेशे में होने के कारण जनता उन्हें भी उसी दृष्टि से देखती है।


समय आ गया है कि पत्रकारिता को फिर से उसके मूल्यों और उसूलों के साथ जोड़ा जाए। पत्रकारिता को एक बार फिर से स्वाभिमान, सत्य, और ईमानदारी का प्रतीक बनाना होगा। कलम को नीलाम करने वाले तथाकथित पत्रकारों को बेनकाब करना और उन पत्रकारों को सम्मानित करना होगा, जो आज भी अपने उसूलों से समझौता किए बिना समाज को सही दिशा दिखा रहे हैं।



पत्रकारिता को भ्रष्टाचार और सत्ता के चंगुल से मुक्त करना अनिवार्य है, तभी समाज को सही और निष्पक्ष जानकारी मिल सकेगी। सत्य की साधना ही पत्रकारिता का असली उद्देश्य है, और यही इसे सम्मानित बनाता है।

मणिका शर्मा 
पत्रकार, शिवपुरी (म. प्र.)



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