रोचक जानकारी - विश्व के सबसे पुराने शैलचित्र: शिवपुरी की गुमनाम धरोहर और श्रीकृष्ण का संबंध



शिवपुरी, मध्य प्रदेश का एक ऐसा क्षेत्र है, जहां प्राचीन मानव सभ्यता की गूंज आज भी सुनाई देती है। यहां के शैलचित्र, जिन्हें मानव जाति के इतिहास के अनमोल धरोहर के रूप में देखा जाता है, प्रागैतिहासिक काल के जीवन को उजागर करते हैं। माधव राष्ट्रीय उद्यान के टुंडा-भरका खो और चुड़ैलछाज स्थान पर स्थित ये चित्र, केवल कला के रूप में नहीं, बल्कि उस समय के मानवों की धार्मिक आस्थाओं, उनकी मान्यताओं और संघर्षों की कहानी भी सुनाते हैं।


प्रागैतिहासिक मानवों की कहानी


शिवपुरी के चुड़ैलछाज चट्टानों पर बने शैलचित्र, सुप्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता श्री रविन्द्र डी. पांड्या के अनुसार, आदिम मानवों के जीवन की कठिनाइयों और उनकी इच्छाओं का चित्रण करते हैं। मानव ने अपने अस्तित्व की खोज में प्रकृति की महान शक्तियों का सामना किया और अपने अनुभवों को चट्टानों पर अंकित किया। ये चित्र हमें बताते हैं कि किस प्रकार मानव ने अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जंगली जानवरों का शिकार किया, और अपने जीवन को समृद्ध बनाने के लिए कला का सहारा लिया।


चुड़ैलछाज में, चित्रित आखेट के दृश्य, जैसे दौड़ते हिरण और शिकार करते मानव, न केवल उस काल के जीव-जंतुओं की विविधता को दर्शाते हैं, बल्कि उस समय की धार्मिक मान्यताओं और जादू-टोने की प्रथा को भी उजागर करते हैं। श्री पांड्या के शब्दों में, "ये मौन चित्रशालाएं तात्कालिक मानव की संघर्षमय कहानी कह रही हैं।" यह चित्र केवल रेखाएं नहीं हैं; ये उस समय के मानव के सपनों, आशाओं और उसके धार्मिक विश्वासों का प्रतीक हैं।


भगवान श्रीकृष्ण का संबंध शिवपुरी से


शिवपुरी का एक और दिलचस्प पहलू है भगवान श्रीकृष्ण का इस क्षेत्र से जुड़ाव। प्रसिद्ध लेखक, साहित्यकार, रंगकर्मी और इतिहासकार श्री अरुण अपेक्षित ने अपनी पुस्तक “शिवपुरी – अतीत से आज तक” में इस संबंध का उल्लेख किया है। उनके अनुसार, शिवपुरी की गुफाओं में एक संत के सोने की कथा जुड़ी हुई है, जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने अपना पीताम्बर उढ़ाकर आशीर्वाद दिया। यह कथा इस क्षेत्र की धार्मिक महत्वता को और भी बढ़ा देती है।


क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि क्या शिवपुरी की धरती पर कभी भगवान कृष्ण ने कदम रखा था? क्या यह संभव है कि यहां की चट्टानों ने कभी कृष्ण की लीलाओं को देखा हो? इस प्रश्न का उत्तर हमें शिवपुरी की संस्कृति और परंपरा में मिल सकता है।


हरी उपमन्यु जी की खोज: एक ऐतिहासिक खोज


शिवपुरी की इस प्राचीन धरोहर की खोज में एक महत्वपूर्ण नाम है हरी उपमन्यु जी का। वे एक सुप्रसिद्ध छायाकार थे, जिन्होंने शिवपुरी के शैलचित्रों की खोज की थी। एक रोचक संयोग से, जब उन्होंने एक शेरनी द्वारा शिकार किए गए बैल का चित्र लेने के लिए इस क्षेत्र का दौरा किया, तब उनकी नजर चुड़ैलछाज के शैलचित्रों पर पड़ी। उन्हें यहां की चट्टानों पर अंकित चित्रों ने बहुत आकर्षित किया। स्थानीय ग्रामीणों ने उन्हें चेतावनी दी थी कि ये चित्र चांदनी रात में चमकते हैं और इन्हें भूत-प्रेतों द्वारा बनाया गया माना जाता है।


उनकी जिज्ञासा ने उन्हें इस क्षेत्र की ओर खींचा, और इसी दौरान उन्होंने शिवपुरी के शैलचित्रों की खोज की। हरी उपमन्यु जी ने इस खोज के बारे में एक लेख लिखा, जो बाद में प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता रविन्द्र डी. पांड्या के ध्यान में आया। उनकी खोज ने शिवपुरी के शैलचित्रों के महत्व को उजागर किया, जो लगभग आठ हजार वर्ष पुराने हैं।


शिवपुरी की अनमोल धरोहर


हालांकि भीमबेटका के शैलचित्रों को विश्वस्तर पर ख्याति प्राप्त है, शिवपुरी के शैलचित्र अपनी अनोखी चित्रलिपि और प्राचीनता के कारण विशेष महत्व रखते हैं। ये चित्र न केवल प्रागैतिहासिक कला का अद्भुत उदाहरण हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि उस समय मानव ने अपने विचारों को कैसे व्यक्त किया। यहां के चित्रों में दर्शाए गए आखेट के दृश्य, हिरणों का समूह, स्वास्तिक चिन्ह, और धार्मिक प्रतीक उस समय की मान्यताओं और जीवनशैली को दर्शाते हैं।


यह आश्चर्य की बात है कि इन शैलचित्रों में प्रयुक्त गेरू रंग आज भी अपनी मौलिकता बनाए हुए है, जो इसे और भी अद्भुत बनाता है। क्या यह रंग उस समय की किसी विशेष धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यता का प्रतीक है? यह विचार हमें उन प्राचीन लोगों की सोच और उनके जीवन के रहस्यों की ओर ले जाता है।


आधुनिक दृष्टिकोण: संरक्षण और प्रचार की आवश्यकता


शिवपुरी की यह धरोहर, जिसे आज भी आम जनता की पहुंच से दूर रखा गया है, प्राचीन काल के मानव समाज की एक दुर्लभ झलक प्रदान करती है। इन चित्रों की खोज और संरक्षण के प्रयास अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यदि इन शैलचित्रों को उचित संरक्षण और प्रचार मिले, तो यह न केवल हमारे इतिहास को उजागर करेगा, बल्कि पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण गंतव्य बन सकता है।


शिवपुरी का यह अद्भुत इतिहास और भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी कथा इसे एक धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रतिष्ठित करता है। श्री अरुण अपेक्षित की पुस्तक "शिवपुरी – अतीत से आज तक" इस क्षेत्र की गाथा को और भी समृद्ध करती है, और हमें इस प्राचीन संस्कृति की महत्ता से परिचित कराती है।
इसलिए, शिवपुरी की धरती को एक बार फिर से खोजने की आवश्यकता है। यह न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि हमारे अतीत की गहराईयों में छिपी हुई अनमोल कहानियों का संग्रह है। शिवपुरी के शैलचित्रों की यात्रा हमें न केवल अतीत की ओर ले जाएगी, बल्कि हमारे वर्तमान को भी एक नई दृष्टि से देखने का अवसर प्रदान करेगी। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस धरोहर को संजोएं और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे सुरक्षित रखें।



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