तस्लीमा नसरीन को भारत में रहने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए?

 



बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन का नाम दक्षिण एशियाई साहित्य जगत में विशेष रूप से जाना जाता है। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से महिलाओं के अधिकारों, सामाजिक अन्याय और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ आवाज़ उठाई है। उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास 'लज्जा' 1993 में प्रकाशित हुआ था, जिसने बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा के खतरनाक प्रभावों को उजागर किया। इस पुस्तक के बाद उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलीं और 1994 में तस्लीमा को अपना देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। तब से वह निर्वासन में हैं, और 2004 से भारत में रह रही हैं।

भारत से तस्लीमा का संबंध

भारत तस्लीमा के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बन गया है। पिछले 20 सालों से तस्लीमा भारत में रह रही हैं और इस देश को अपना दूसरा घर मानती हैं। हाल ही में, तस्लीमा ने गृह मंत्री अमित शाह से अपील की है कि उनका रेजिडेंस परमिट बढ़ाया जाए, क्योंकि जुलाई 2022 से उनका परमिट आगे नहीं बढ़ाया गया है। तस्लीमा ने कहा कि वह भारत में रहना चाहती हैं और अगर उन्हें यहां रहने की अनुमति दी जाती है तो वह बेहद आभारी होंगी।

तस्लीमा नसरीन का भारत में रहना सिर्फ उनके लिए ही नहीं, बल्कि भारतीय समाज और उसकी लोकतांत्रिक परंपराओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारतीय समाज ने हमेशा से ऐसे व्यक्तियों को स्वीकार किया है जो सृजनात्मक और बौद्धिक स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं। तस्लीमा ने अपने लेखन के माध्यम से धार्मिक कट्टरता, पितृसत्ता और अन्याय के खिलाफ जो संघर्ष किया है, वह भारतीय समाज के मूल्यों के साथ मेल खाता है। उनका लेखन न केवल बांग्लादेश, बल्कि दक्षिण एशिया के लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है।

भारतीय लोकतंत्र और तस्लीमा नसरीन

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बहुत महत्व है। भारत ने हमेशा अपने दरवाजे उन लोगों के लिए खोले हैं, जिन्हें उनके विचारों या जीवनशैली के कारण उनके देश में सुरक्षित स्थान नहीं मिल सका। तस्लीमा नसरीन को भारत में रहने की अनुमति देना इस परंपरा को कायम रखने का प्रतीक है। तस्लीमा नसरीन का जीवन महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए एक लंबी लड़ाई का प्रतीक है। भारत में उनके निवास से यह संदेश जाएगा कि यह देश न केवल अपने नागरिकों, बल्कि उन सभी के लिए एक सुरक्षित स्थान है, जो मानवाधिकार और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

सांस्कृतिक और साहित्यिक योगदान

तस्लीमा नसरीन का साहित्यिक योगदान केवल बांग्लादेश तक सीमित नहीं है। उनका लेखन भारतीय पाठकों के बीच भी उतना ही लोकप्रिय और प्रभावशाली है। उनकी किताबें महिलाओं की समस्याओं, सामाजिक असमानताओं और धार्मिक रूढ़ियों को तोड़ने के लिए प्रेरित करती हैं। तस्लीमा का भारतीय समाज में रहने से यहां की साहित्यिक संस्कृति को भी एक नई दिशा मिलती है।

भारत ने पहले भी कई ऐसे लेखकों, विचारकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को शरण दी है, जो अपने देश में सताए गए। तस्लीमा नसरीन को शरण देना इस परंपरा को जारी रखना होगा। भारतीय समाज का दायित्व है कि वह उन आवाजों का समर्थन करे, जो सच्चाई, स्वतंत्रता और मानवता के लिए खड़ी होती हैं।

तस्लीमा नसरीन ने अपने जीवन और लेखन के माध्यम से जो संघर्ष किया है, वह उनके साहस और धैर्य का प्रतीक है। उनके भारत में निवास को जारी रखना न केवल उनके व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए, बल्कि दक्षिण एशियाई साहित्य और समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम होगा। तस्लीमा ने भारत को अपना दूसरा घर माना है, और भारत को भी उन्हें वह स्थान और सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए, जिसकी वह हकदार हैं। उनके लिए भारत में निवास की अनुमति देना हमारे लोकतंत्र, सहिष्णुता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल्यों को सुदृढ़ करने का प्रतीक होगा।

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