वंदे भारत एक्सप्रेस: भारतीय इंजीनियरिंग की अप्रतिम सफलता और देश के भीतर छिपे बाधक तत्वों का सत्य

 

2016 की बात है, जब भारतीय रेलवे में एक उच्च अधिकारी अपने सेवा के अंतिम वर्षों में थे। यह आम बात होती है कि सेवा निवृत्ति के निकट कर्मचारियों से उनकी पसंदीदा जगह के बारे में पूछा जाता है ताकि वे अपनी अंतिम पोस्टिंग वहां प्राप्त कर सकें और अपने जीवन के बाकी समय को सहजता से बिता सकें। लेकिन उस अधिकारी, इंजीनियर सुधांशु मनी जी ने इस सुविधा का लाभ लेते हुए चेन्नई के ICF (Integral Coach Factory) में पोस्टिंग का अनुरोध किया। उनका उद्देश्य बड़ा था—देश की पहली "सेमी हाई-स्पीड ट्रेन" बनाना।


यह वह समय था जब देश में 180 किमी प्रति घंटे की गति से चलने वाली स्पेन की Talgo कंपनी की ट्रेनों का परीक्षण चल रहा था। कंपनी 10 डिब्बों के लिए 250 करोड़ रुपये की मांग कर रही थी, और "तकनीक स्थानांतरण" का कोई प्रस्ताव नहीं था। लेकिन सुधांशु मनी ने ठान लिया कि वह अपने ही देश में इससे बेहतर और सस्ती ट्रेन बनाएंगे। उनकी आत्मविश्वास भरी बातों पर रेलवे बोर्ड ने 100 करोड़ रुपये आवंटित किए और ICF में उन्हें पोस्टिंग दी।


"ट्रेन 18" का निर्माण: आत्मनिर्भरता की नई मिसाल


सुधांशु मनी और उनकी इंजीनियरों की टीम ने दो वर्षों की कठोर मेहनत से देश की पहली सेमी-हाई स्पीड ट्रेन, जिसे बाद में "वंदे भारत एक्सप्रेस" के नाम से जाना गया, का निर्माण किया। इसकी लागत केवल ₹97 करोड़ थी, जबकि Talgo के प्रस्ताव से कहीं कम। वंदे भारत एक्सप्रेस का हर डिब्बा स्वचालित था, जिसमें अलग से इंजन की आवश्यकता नहीं होती। यह भारत की तकनीकी क्षमता का प्रतीक था।


राजनीतिक हस्तक्षेप और बाधाएं: देशद्रोहियों का खेल


जब 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ट्रेन को हरी झंडी दिखाई, तो इस उपलब्धि को एक महान राष्ट्रीय गौरव के रूप में देखा जाना चाहिए था। लेकिन विपक्ष और देश के भीतर बैठे बाधक तत्वों ने इस पर मीन-मेख निकालना शुरू कर दिया। आरोप लगे कि ट्रेन 18 के निर्माण में टेंडर प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ। नतीजतन, सुधांशु मनी और उनकी टीम पर विजिलेंस जांच बिठा दी गई। यह जांच तीन साल तक चली, जिसमें कोई दोष नहीं पाया गया। लेकिन तब तक देश की विकास यात्रा रुक चुकी थी और 100 रैक बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य धरा रह गया।


देशद्रोहियों का सच: विकास विरोधी मानसिकता


यह कहानी सिर्फ एक ट्रेन की नहीं है, यह उन भीतरी गद्दारों की है जो देश के विकास को सहन नहीं कर पाते और हर अच्छे काम में बाधा डालते हैं। उनके प्रयास देश की प्रगति को रोकने के लिए होते हैं ताकि भारत आत्मनिर्भर न बन सके। सुधांशु मनी जैसे कर्मठ और देशभक्त इंजीनियरों का समर्पण, मेहनत, और प्रयासों का यह अपमान नहीं बल्कि पूरे देश का अपमान है।


सुधांशु मनी की विरासत और सीख


सुधांशु मनी 2018 में सेवा निवृत्त हो गए। उनकी असाधारण उपलब्धि को सम्मानित करने के बजाय उन्हें और उनकी टीम को लगातार राजनीतिक दवाब और आरोपों का सामना करना पड़ा। यह एक राष्ट्रवादी दृष्टिकोण की आवश्यकता की ओर इशारा करता है, जो देश के विकास के प्रति प्रतिबद्ध हो और किसी भी प्रकार की बाधा को सहन न करे।


वंदे भारत एक्सप्रेस भारतीय इंजीनियरिंग की अनूठी कृति है और यह आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते भारत का प्रतीक है। ऐसे अभियानों को बाधित करने वाले देशद्रोही तत्वों को समय रहते पहचानना और रोकना अत्यावश्यक है। यह हम पर निर्भर है कि हम अपने निर्णयों से ऐसे तत्वों का सफाया करें और देश के विकास में योगदान दें।


आइए, हम सभी मिलकर इस महान कार्य में अपना सहयोग दें और अपने देश को सशक्त बनाएँ।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें