शिवपुरी में धार्मिक ध्रुवीकरण और सत्ताधारी संगठनों की खामोशी: महादेव मंदिर और ‘शाम-ए-दिवाली’ मुशायरे पर दोहरे मापदंड क्यों - दिवाकर शर्मा

 

शिवपुरी में वार्ड 37 स्थित महादेव मंदिर में हुए विवादित घटनाक्रम ने कई गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। जब कुछ गैर-हिंदू व्यक्तियों द्वारा मंदिर के टीन शेड को हटाने का विवादास्पद कृत्य सामने आया, तो समाज के तथाकथित हिंदुत्ववादी और राष्ट्रवादी संगठनों की खामोशी चौंकाने वाली थी। यह चुप्पी ऐसे समय में है, जब प्रदेश में सरकार से लेकर स्थानीय सांसद, विधायक, नगर पालिका अध्यक्ष, और पार्षद सभी भाजपा से जुड़े हुए हैं—जिसे हिंदुत्व समर्थक पार्टी माना जाता है। बावजूद इसके, मंदिर में हुई इस हरकत पर संगठनों द्वारा कोई ठोस प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली।

मंदिर का अपमान: एक बड़ा मुद्दा

महादेव मंदिर हिंदू आस्था का प्रतीक है, और वहां किसी भी प्रकार की अवमानना निश्चित रूप से हिंदू समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है। ऐसे में गैर-हिंदू व्यक्तियों का मंदिर में घुसकर टीन शेड हटाने की घटना स्थानीय समाज को भड़काने वाली है। सवाल यह उठता है कि क्या इसे केवल एक छोटी घटना मानकर अनदेखी की जा रही है, या इसमें राजनैतिक दबाव की वजह से धार्मिक संगठनों की चुप्पी है?

सत्ताधारी संगठनों की दोहरी नीति

वर्तमान समय में हिंदू समाज की रक्षा के नाम पर तमाम संगठन और राजनैतिक पार्टियां सक्रिय हैं, लेकिन इस मुद्दे पर इनका मौन रहना एक बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। यह स्थिति एक तरह से दोहरे मापदंड का संकेत देती है, जहां कथित राष्ट्रवादी संगठन और सत्ताधारी पार्टी के नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते इस प्रकार की घटनाओं पर खामोश रहते हैं।

‘शाम-ए-दिवाली’ मुशायरे पर आपत्ति जताने का अधिकार?

अगर इस घटना पर तथाकथित हिंदुत्ववादी और राष्ट्रवादी संगठन चुप बैठे हैं, तो उन्हें शिवपुरी में आयोजित होने वाले ‘शाम-ए-दिवाली’ मुशायरे पर आपत्ति जताने का कोई नैतिक अधिकार नहीं होना चाहिए। अगर मंदिर में हुए कृत्य को नजरअंदाज किया जा सकता है, तो फिर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम, जिसमें विभिन्न समुदायों के लोग भाग लेंगे, उस पर आपत्ति क्यों?

यह शिवपुरी के समाज के सामने एक महत्वपूर्ण संदेश प्रस्तुत करता है कि अगर महादेव मंदिर के टीन शेड की पुनः स्थापना नहीं की जाती है, तो न केवल ‘शाम-ए-दिवाली’ मुशायरा धूमधाम से होगा, बल्कि आने वाले समय में हर गली-मोहल्ले में ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।

क्या शिवपुरी में असली धर्मरक्षक हैं या केवल राजनीतिक लाभार्थी?

यह समय है कि तथाकथित धार्मिक और राष्ट्रवादी संगठनों को आत्ममंथन करना चाहिए। महादेव मंदिर जैसे धार्मिक स्थल पर हुए असम्मान को रोकने के लिए अगर वे कदम नहीं उठाते हैं, तो शिवपुरी के समाज को खुद से ऐसे आयोजनों को बढ़ावा देना चाहिए जो सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दें। केवल दिखावे के लिए राष्ट्रवाद और धर्म की बातें करना उचित नहीं है; सच्चा धर्मरक्षक वही होता है जो अपनी आस्था का अपमान सहन नहीं करता।

शिवपुरी में यह मामला एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि धार्मिक स्थलों का सम्मान और सांस्कृतिक एकता को बनाए रखना हर नागरिक का कर्तव्य है। अगर तथाकथित राष्ट्रवादी और हिंदुत्ववादी संगठन अपने दायित्व से मुंह मोड़ते हैं, तो उन्हें सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर आपत्ति जताने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए।

अब यह तय करना इन संगठनों पर निर्भर है कि वे शिवपुरी में महादेव मंदिर के सम्मान की रक्षा करेंगे या केवल राजनीति के भंवर में उलझे रहेंगे।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें