फूलन देवी : नायकत्व का मिथक और असलियत की त्रासदी - दिवाकर शर्मा

 

फूलन देवी का नाम सुनते ही एक ऐसे विद्रोही महिला की छवि उभरती है, जिसने अत्याचार के खिलाफ बंदूक उठाई और बदले की आग में जलते हुए ऊंची जातियों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। मीडिया और पॉप संस्कृति ने फूलन देवी को उच्च वर्ग के अन्याय के खिलाफ संघर्ष की प्रतीक बना दिया, लेकिन क्या यह पूरी कहानी है? 

फूलन देवी का जीवन जितना रोमांचक दिखता है, उतना ही जटिल और दर्दनाक भी है। यह कहानी सिर्फ जातीय प्रतिशोध की नहीं है, बल्कि एक औरत के उन संघर्षों की भी है, जो उसे अपने परिवार, समाज, और परिस्थितियों से झेलने पड़े। 

बचपन की कड़वी शुरुआत 

फूलन देवी की तकलीफें उस वक्त शुरू हो गईं, जब उनके सगे चाचा ने उनके पिता की जमीन पर जबरन कब्जा कर लिया। 10 साल की उम्र में फूलन ने अपने परिवार में पहली बार अन्याय का सामना किया, जब उसने अपनी माँ से पूछा कि चाचा के पास ज्यादा जमीन क्यों है। माँ की सच्चाई ने उसे झकझोर दिया—यह सब ताकत का खेल था, और इसमें उसका परिवार भी शामिल था। तब फूलन ने पहली बार अपने चाचा के खिलाफ खड़ी होकर प्रतिशोध लिया, लेकिन यह सिर्फ शुरुआत थी। 

बचपन की बोली: 3000 रुपये में सौदा 

महज 10 साल की उम्र में फूलन देवी के पिता ने उसे 3000 रुपये में एक 45 साल के बूढ़े व्यक्ति को बेच दिया। यह विवाह नहीं, बल्कि एक सौदा था, जिसमें एक बच्ची को एक ऐसे व्यक्ति के हवाले कर दिया गया, जो उम्र में दोगुना था और अत्याचारी था। विवाह के नाम पर फूलन देवी का यह दर्दनाक जीवन, उसके अपने पिता द्वारा सौंपा गया था। परिवार की असंवेदनशीलता जब फूलन देवी अत्याचार सहन नहीं कर सकी और मायके लौटी, तो उसके भाईयों ने उसे वापस उसके पति के घर भेज दिया, जैसे कि उसकी तकलीफों की कोई अहमियत ही न हो। क्या उसके परिवार ने फूलन देवी के प्रति न्याय किया? या वह केवल उस समाज का शिकार हो रही थी, जहां महिलाओं की आवाज़ को दबा दिया जाता है? 

बीहड़ की दुनिया में धकेला गया जीवन 

जब विक्रम मल्लाह नामक डकैत ने फूलन देवी का बलात्कार किया और उसे अपने साथ बीहड़ में ले गया, तब उसकी जिंदगी में और अंधकार छा गया। विक्रम ने बाबू गुर्जर की हत्या कर उसके गैंग पर कब्जा कर लिया, और फूलन देवी उसकी साथी बन गई। विक्रम ने भले ही उसे किसी हद तक बचाया हो, लेकिन वह भी फूलन को एक नई दुनिया में ले आया—अपराध की दुनिया। 

बेहमई हत्याकांड: प्रतिशोध की सीमा 

फूलन देवी के जीवन का सबसे भयावह और चर्चित अध्याय बेहमई हत्याकांड है, जहां उन्होंने ठाकुर समाज के 22 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। यह घटना उनके प्रतिशोध की चरम सीमा को दर्शाती है। फूलन देवी का मानना था कि इन ठाकुरों ने उनकी गैंग के सदस्य विक्रम मल्लाह की हत्या में दादा ठाकुर का समर्थन किया था। हालांकि, इस खूनखराबे के पीछे सिर्फ अपराधी दिमाग का खेल नहीं था, बल्कि उसके जीवन में हुए अत्याचारों का आक्रोश था, जो लगातार उसके भीतर पनप रहा था। लेकिन इस क्रूर प्रतिशोध का सबसे निर्दोष शिकार एक मासूम बच्ची बनी। फूलन देवी ने उस बच्ची को आसमान में फेंककर इतना बुरी तरह पटका कि उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। यह बच्ची आज भी जीवित है, लेकिन जीवनभर के लिए विकलांग है। यह घटना फूलन देवी की हिंसक मानसिकता की ओर इशारा करती है, जहां जातिगत प्रतिशोध की आड़ में निर्दोषों का जीवन बर्बाद हो गया। 

वास्तविकता बनाम मिथक 

फूलन देवी को अक्सर नायिका के रूप में प्रस्तुत किया गया, जो उच्च जातियों के अन्याय के खिलाफ उठ खड़ी हुई। लेकिन जब हम उनके जीवन की गहराई में उतरते हैं, तो यह साफ हो जाता है कि उनके खिलाफ सबसे पहले अत्याचार उनके खुद के परिवार ने किए थे—उनके चाचा ने उनकी जमीन छीनी, उनके पिता ने उन्हें एक बूढ़े आदमी को बेच दिया, उनके भाई उन्हें बार-बार उसी क्रूर पति के पास भेजते रहे। विक्रम मल्लाह ने भी उनका शोषण किया और उन्हें अपराध की दुनिया में धकेल दिया। इस सबके बीच, फूलन देवी को केवल एक जातीय प्रतिशोध की प्रतीक बनाकर पेश करना अन्याय है। उनका जीवन एक त्रासदी है, जिसमें वह अपने परिवार, समाज, और अपनी परिस्थितियों का शिकार बनती चली गईं।यह कहानी उस जटिलता को उजागर करती है, जो फूलन देवी के जीवन में मौजूद थी—एक महिला, जिसने अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष किया, लेकिन अपराध और हिंसा का रास्ता चुना। 

क्या फूलन देवी वास्तव में नायिका थीं? 

यह सवाल विचारणीय है। फूलन देवी ने अपने जीवन में अनेक अत्याचार झेले, लेकिन क्या उनके द्वारा किए गए हिंसक कृत्यों को उचित ठहराया जा सकता है? क्या मासूम लोगों की हत्या और निर्दोष बच्ची को विकलांग बनाने के लिए प्रतिशोध की भावना को समझा जा सकता है? फूलन देवी का जीवन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या उनकी असली लड़ाई जातीय संघर्ष के खिलाफ थी, या यह उनके जीवन में हुए व्यक्तिगत अन्यायों का परिणाम था? फूलन देवी की कहानी एक जटिल और त्रासदीपूर्ण जीवन का चित्रण है, जो न केवल सामाजिक अन्याय बल्कि पारिवारिक उत्पीड़न की भी शिकार थी। उनके जीवन की सच्चाई यह है कि उन्होंने अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया, लेकिन इस संघर्ष ने उन्हें अपराध और हिंसा की उस राह पर ला खड़ा किया, जिसे कभी सही नहीं ठहराया जा सकता। 

यह लेख फूलन देवी के जीवन की सच्चाई को उजागर करता है, जो केवल जातिगत संघर्ष से अधिक व्यक्तिगत पीड़ाओं और अन्यायों से भरा था। उनके जीवन का हर पहलू हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वे सच में नायिका थीं, या फिर एक ऐसी त्रासदी की शिकार, जिसे हमने पूरी तरह समझने की कोशिश ही नहीं की।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें