जलेबी की फैक्ट्री और राहुल गांधी : एक मीठा चुनावी सपना - दिवाकर शर्मा

 

हरियाणा के 2024 के चुनावों में जितनी मिठास जलेबी की फैक्ट्री को लेकर थी, उतनी शायद राहुल गांधी के राजनीतिक बयानों में भी कभी नहीं दिखी। गोहाना की विजय संकल्प रैली में जब कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने मंच पर राहुल गांधी को मातू राम की प्रसिद्ध जलेबियों का डिब्बा भेंट किया, तो उस वक्त शायद राहुल गांधी के मन में देश का भविष्य नहीं, बल्कि जलेबियों की निर्यात नीति घूमने लगी।

राहुल गांधी ने मंच से जलेबियों की ऐसी तारीफ की जैसे वे राजनीति की सबसे बड़ी उपलब्धि हों। यहां तक कि वे जलेबियों को "निर्यात" करने का सुझाव देने लगे—जी हां, वही जलेबियां जो दशकों से हरियाणा की मिठाई की दुकान की शोभा बढ़ा रही थीं, अब देश की आर्थिक रीढ़ बनने जा रही थीं! राहुल गांधी की यह सोच इतनी ‘मीठी’ थी कि उनके भाषण के बाद पूरे देश को लगने लगा कि बेरोजगारी की समस्या जलेबियों से ही हल होने वाली है।

कटाक्ष यहीं खत्म नहीं होता! इंटरनेट पर लोग इस बयान को लेकर इतने "प्रेरित" हुए कि जलेबियों की फैक्ट्रियां, जलेबी के खेत और यहां तक कि "जलेबी का बीज" तक उगते दिखा दिए गए। राहुल गांधी के समर्थक तो यह मान बैठे कि हरियाणा में जलेबी क्रांति की शुरुआत हो चुकी है, और अब हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा—जलेबी बनाने के कारखानों में! अगर यह राजनीति है, तो फिर नीति नहीं, बस मीठी जलेबी चाहिए!

कांग्रेस का यह नया चुनावी वादा कुछ इस तरह का है कि "हर घर में जलेबी, हर हाथ में कढ़ाई।" कांग्रेस का विजन अब बदल गया है—रोजगार के नए अवसर, किसानों की समस्याएं, या देश की सुरक्षा नहीं, अब जलेबियां ही देश का भविष्य बनेंगी। राहुल गांधी शायद यह भूल गए कि जलेबियों के लिए मशहूर होना और जलेबियों से रोजगार पाना दो अलग बातें हैं। वैसे भी, जब राहुल गांधी ने कहा कि जलेबी की फैक्ट्रियां लगेंगी, तो शायद वे इस बात से अनजान थे कि यह जनता अब उनकी मीठी बातों में नहीं, बल्कि ठोस कामों में विश्वास करती है।

सोचिए, अगर कांग्रेस की यह "जलेबी फैक्ट्री योजना" सच हो जाती, तो राहुल गांधी की अगली चुनावी रैली में शायद भाषण का मुख्य विषय होता—"जलेबियां उगाने का आधुनिक तरीका।" हरियाणा के खेतों में गेहूं, सरसों और बाजरे की जगह जलेबी की खेती शुरू हो जाती, और किसान जलेबियों की बंपर फसल काटते हुए नई राजनीति की फसल तैयार करते।

परंतु असलियत यह है कि जलेबियों से देश की राजनीति और रोजगार की समस्या नहीं सुलझती। कांग्रेस के मीठे वादे, जैसे उनकी जलेबी की फैक्ट्री की कल्पना, जल्द ही घुलकर गायब हो जाते हैं—बिल्कुल जलेबी की चाशनी की तरह। राहुल गांधी के लिए जलेबियों की ये बात शायद एक मीठी भूल थी, लेकिन जनता के लिए यह एक ऐसा मजाक बन गया, जिसे कोई भूल नहीं पाएगा।

हरियाणा के लोग अब जलेबियों के बजाय असली मुद्दों पर ध्यान देना चाहते हैं। भाजपा की ओर से तंज कसा गया कि राहुल गांधी के भाषणों में जलेबी से ज्यादा कुछ नहीं मिलता, और अगर उन्हें सत्ता मिल भी गई, तो शायद पांच साल बाद ही ये 'जलेबी की फैक्ट्री' लगेगी—वो भी एक सपना ही रहेगा, जिसे देखने में जनता अब दिलचस्पी नहीं रखती।

तो, राहुल गांधी और कांग्रेस का "जलेबी मॉडल" एक बार फिर से उनकी राजनीति का मजाक बन गया। परंतु यह तो तय है कि जलेबी की यह फैक्ट्री कांग्रेस के खोखले वादों की तरह ही रह जाएगी—मिठास तो बहुत होगी, लेकिन अंदर से खोखली। आखिरकार, "राहुल जी, जलेबियों से देश नहीं चलता, राजनीति में मिठास से ज्यादा दम चाहिए!"

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