महिलाओं और बेटियों का सम्मान: प्रभा देवी गंगेले की स्मृति में 30 वर्षों का प्रयास

 

छतरपुर, मध्य प्रदेश: छतरपुर जिले के कस्बा नौगांव वार्ड नंबर 10 की निवासी श्रीमती प्रभा देवी गंगेले का निधन 20 अक्टूबर 1993 को शारदीय नवदुर्गा पंचमी उत्सव के दिन हुआ। उनके पति श्री संतोष कुमार और उनके परिवार ने उनकी स्मृति को बनाए रखने का एक अनोखा तरीका निकाला है, जो 30 वर्षों से लगातार जारी है। प्रत्येक वर्ष, नवदुर्गा उत्सव की पंचमी के दिन, प्रभा देवी की स्मृति में वृक्षारोपण, बेटियों का पूजा-पाठ, और गरीब महिलाओं को वस्त्र वितरण जैसे सामाजिक कार्य किए जाते हैं। 

सामाजिक समरसता का संदेश 

प्रभा देवी की याद में किए जा रहे इन कार्यों का उद्देश्य समाज में समरसता और स्नेह का संदेश फैलाना है। 30 वर्षों से जारी इस परंपरा ने न केवल उनकी याद को जीवित रखा है, बल्कि स्थानीय समाज में जागरूकता और संवेदनशीलता भी बढ़ाई है। यह कार्य न केवल एक श्रद्धांजलि है, बल्कि एक प्रेरणा भी है, जो महिलाओं और बेटियों की भूमिका को सम्मानित करता है। 

नवदुर्गा पंचमी का विशेष आयोजन 

गत दिन नवदुर्गा पंचमी के अवसर पर महाराजपुर विधानसभा क्षेत्र के ऊजरा, उर्द मऊ, पृथ्वीपुरा शिक्षण संस्थानों में बेटियों का पूजा-पाठ किया गया। इस विशेष कार्यक्रम में बेटियों का स्वागत साहित्य सामग्री देकर किया गया और उन्हें सम्मानित किया गया। पांच बेटियों को अंग वस्त्र देकर उन्हें भारतीय नारी शक्ति और बेटियों के कर्तव्यों का बोध कराया गया, ताकि वे देश और राष्ट्र के प्रति समर्पित रहें। 

शिक्षकों और विद्यार्थियों की सहभागिता 

इस कार्यक्रम में तीन विद्यालयों के शिक्षकों और विद्यार्थियों ने भी भाग लिया। उन्होंने इस सामाजिक कार्य को प्रेरणा देने वाला बताया और अपने माता-पिता के गुणों एवं परिजनों को सच्ची श्रद्धांजलि देने का कार्य समझा। इस प्रकार के आयोजन से न केवल बेटियों को प्रोत्साहन मिलता है, बल्कि समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना भी बढ़ती है। 

प्रभा देवी गंगेले की स्मृति में किए जा रहे ये कार्य न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश हैं। यह पहल यह दर्शाती है कि किसी व्यक्ति की याद में किए गए कार्य समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। इस तरह की परंपराएं समाज में समरसता, एकता, और नारी शक्ति का उत्सव मनाने का एक महत्वपूर्ण साधन बनती हैं। ऐसे प्रयास हमें यह सिखाते हैं कि हम अपने प्रियजनों की याद को केवल यादों में ही नहीं, बल्कि उनके कार्यों के माध्यम से भी जीवित रख सकते हैं।

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