शिवपुरी: कठिन कार्यो को हल करने की अपनी विशिष्ठ कार्यपद्धति के कारण देश के गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह मे सरदार बल्लभ भाई पटेल का भी रूप जन मानस देखने लगा है। एक और तो वे सहकारिता को जन आंदोलन बनाने में लगे है, बिन सहकार नही उद्धार के मंत्र को स्थापित करने की दिशा में बढ़ रहे है, किन्तु दुर्भाग्य से उनकी मुहीम को जिला सहकारी केंद्रीय बैंक शिवपुरी ठेंगा दिखाने में लगा हुआ है। यू तो समूचे मध्यप्रदेश में ही सहकारिता का मूल उद्देश्य ठप्प पड़ा हुआ सा दिख रहा है। जब विश्वास सारंग को मंत्री के रूप में प्रदेश में सहकारिता की जिम्मेदारी प्रदान की गई थी, तब कुछ अच्छा हो जाने की आशा बंधी थी, पंरन्तु शिवपुरी में ये दूर की कौड़ी ही नजर आता है। न केवल मध्यप्रदेश बल्कि देश के सबसे बड़े भ्रष्टाचार का कीर्तिमान स्थापित करने वाली केंद्रीय सहकारी बैंक शिवपुरी की शाखा स्वयं तो सुधरने या सबक लेने से रही, अपेक्स बैंक या अन्य सहकारिता क्षेत्र के अधिकारी भी इसे सुधारने की इच्छा नही रखते।
2013 में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक शिवपुरी को कंप्यूटरीकृत करने के नाम पर जो घोटाला हुआ उसने पूरे देश मे शिवपुरी को कलंकित कर दिया,अधिकारियों ने बेख़ौफ़ होकर भृत्यों और कर्मचारियो के साथ मिलकर जो घोटाला किया उसने भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए।
राकेश पाराशर नामक व्यक्ति जिसकी मूल पोस्ट भृत्य ही थी ने जिस तरह से भ्रष्टाचार किया और अधिकारियों ने जिस तरह से उसका सहयोग किया वह अपने आप मे शिवपुरी बैंक के नाम पर कलंक का बड़ा धब्बा है। जिसे मिटाने की बजाय लोग बढ़ाने में ही विश्वास कर रहे है। यहाँ तक कि अब तो आग लगाकर समूचा रिकॉर्ड ही मिटाने की कोशिशें बे बेखौफ अंदाज में जारी हैं ।आखिरकार पांच पांच महाप्रबन्धको के ऊपर तलवार जो लटक रही है,24 कर्मचारी जिसमे सीधे तौर पर लिप्त है।लता कृष्णन जैसी महिला महाप्रबंधक ने जिस तरीके को अपनाकर आगे कदम बढ़ाया उसने सहकारिता के क्षेत्र को सीधे तौर पर बदनाम करके अविश्वास की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया है।
2013 में कंप्यूटरीकृत के नाम पर बैंक का पैसा विभिन्न लोगो के खाते में फर्जी तरीके से दर्शा कर व उस पैसे को फिर अपने खातों में ट्रांसफर कर 80 करोड़ रुपये का गबन करने वाले बैंक के ही कर्मचारी और अधिकारी थे। सूत्रों की माने तो बंदरबांट नीचे से लेकर ऊपर तक हुई,इसी वजह से कार्यवाही के नाम पर केवल जांचे ही जारी है।
80 करोड़ के इतने बड़े घोटाले के सामने आने के बाद एक 13 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया।डॉ अनिल कुमार जो जांच कमेटी के प्रमुख और संयुक्त सहकारिता आयुक्त थे, के नेतृत्व में कमेटी ने 80 करोड़ के घोटाले को सत्य मानते हुए पांच बैंक महाप्रबन्धको के साथ साथ कई कर्मचारियों को इस घोटाले में दोषी करार दिया। के सी त्यागी,प्रभात भार्गव,श्रीकृष्ण शर्मा,हरवंश श्रीवास्तव ये वह कर्मचारी नाम थे,जो अधिकारियों के चहेते रत्नों में निरंतर शामिल रहे और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते रहे।
सहकारी बैंक की करतुते देखिए अरस्तू प्रभाकर नामक व्यक्ति जो मुख्य लेखापाल 2018 में रहे उनके ऊपर घोर अनियमितताओं के आरोप लगे जांच के लिए श्रीकृष्ण शर्मा कार्यालय अधीक्षक को नियुक्त किया गया।शर्मा ने केवल एक पत्र थाना प्रभारी को लिखकर इति श्री कर ली।मूल कागज के नाम पर हीला हवाली चलती रही। सांठ गांठ हो जाने के बाद अक्सर यही जो होता आया है।इसके एवज में जब अरस्तू प्रभाकर महाप्रबंधक के रूप में बैंक में आ गए तब श्रीकृष्ण शर्मा की बेटी को खनियाधाना से न सिर्फ शिवपुरी लेकर आये बल्कि अनुकंपा नियुक्ति पर रहने वाली अनुभवहीन लड़की को शिवपुरी मुख्यालय में कोर बैंकिंग का प्रभारी व निरीक्षण अधिकारी भी बना दिया।अर्थात नई नवेली लड़की को सारे कर्मचारियों के ऊपर लाकर बिठा दिया।
और इसी तरह श्रीकृष्ण शर्मा के एक मामले में गवाही पक्ष में न देने वाले अर्थात सत्य का साथ देने वाले राकेश भदौरिया को निलंबित व राजीव चौहान को सेवा से पृथक तक कर दिया।
यानी भ्रष्टाचारी भाई भाई तू भी कर में भी करूँ समय पड़े तब एक दूजे का साथ निभाओ, खुलकर निभाओ की पद्धति ने बैंक का बंटाधार कर दिया।
अमानतदारो का लाखो रुपया आज बैंक में फंसा पड़ा है,बच्चे बच्चियों की शादी या अन्य जरूरत के समय लोग अपने ही पैसे को नही निकाल पा रहे,और ज्यादा पहुच जो दिखा दे उसे एक हजार दो हजार रुपये बमुश्किल मिल रहे है,यानी स्वयम के पैसों को इन भ्रष्टाचारियों की वजह से लोग फंसा चुके है।और मोटी चमड़ी के लोगो पर कोई इसका असर नही है,वह तो भगवान से भी नही डरते,पैसा ही इनके लिए भगवान हो चुका है।
अपेक्स बैंक अपना सी ओ नियुक्त कर 25 लाख प्रतिवर्ष का इस कंगाल बैंक के नाम पर खर्च कर रहा है,यानी फिजूलखर्ची कर रहा है,एक व्यक्ति को सीधे सीधे उपकृत कर रहा है। जबकि अपेक्स बैंक से तीन वर्ष से किसानों का ऋण बंद है,किसानों के नाम पर चलने वाला बैंक किसानों के साथ ज्यादती करने में सबसे आगे है।मध्यप्रदेश शासन के मुखिया की मंशा, देश के प्रधानमंत्री की किसानों के हित मे चलाई जाने वाली योजनाओं और अन्नदाताओं के साथ सीधे तौर पर बेईमानी की जा रही है।मजाल किसी की कोई कुछ कर पाए। यानी शिवपुरी घोटाले के आरोपी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से भी ऊपर है।कलेक्टर के साथ बैंक की साधारण सभा मे बैठक के दौरान जब बैंक के शुभचिंतकों ने इस विषय को रखा तब कलेक्टर ने सीधे तौर पर कहा मुझे सब पता है,मुख्यमंत्री जी तक को पता है,विधायक शिवपुरी कई बार विधानसभा में प्रश्न लगा चुके है,चर्चा हो चुकी है,पंरन्तु फिर भी कोई परिणाम नही निकल कर आ पाया है।आरोपी की जमीन बिक़बा कर उस पैसे से अमनतदारो को पैसा लौराने तक मे बैंक नाकाम रहा है।
कल्पना कीजिये इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि व्यक्ति अपना ही पैसा सरकारी तिजोरी में रख देवे और नही निकाल पाए तो इसे आप क्या कहेंगे? सरकार की मंशा और अधिकारियों की मिलीभगत को सबसे ऊपर मानकर प्रश्रचिन्ह लगाएंगे कि नही?
इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी, सहकारिता के क्षेत्र में पूरे देश मे शिवपुरी से गलत संदेश देने के बाद भी ऐसा नही है कि भ्रष्टाचार रुक गया हो,या कर्मचारी अधिकारी डाका डालने से रुक गए हो।हाल ही में शाखा प्रबंधक नरवर के द्वारा भृत्य की मदद से लाखों रुपये का गबन अपने खातों में पैसा जमा कर किया है। जब बात खुल गई तो बड़ी बेशर्मी से कुछ पैसा जमा तो कर दिया पर पूरी सिलक आज तक जमा नही हुई।अरस्तू प्रभाकर ही ऐसे लोगो को संरक्षण पिछोर से नरवर लाकर दे रहे है। पोहरी में भी यही सब जारी है।
एक नही दो नही तीन तीन पत्र जिस अरस्तू प्रभाकर की जांच 420 का प्रकरण दर्ज कराने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा लिखे गए है,वह रद्दी की टोकरी में डालें गए हो,और बेशर्म अधिकारियों कर्मचारियों ने रिकॉर्ड ही गायब करा दिया हो उस बैंक के क्या हाल होंगे अंदाजा लगाया जा सकता है।
बैंक नही ये भ्रष्टाचारियों का अड्डा बना हुआ है,और ऐसे बैंकों को सुधारने में गृह व सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह को रात दिन एक करना पड़ेगा।
अब तो बेशर्मी की पराकाष्ठा देखिए कि रिकॉर्ड को सरेआम जलाने के लिए यानी आरोपियों को सीधे तौर बचाने के लिए आग भी बैंक में लग गयी है। रिकॉर्ड जल भी गया है।अधिकारी बचाने के लिए क्या कुछ नही कर सकते ये भी पूरी तरह सिद्ध हो रहा है।
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