नवरात्रि और देवी स्थापना जैसे पवित्र उत्सवों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक गहरा है। यह समय देवी दुर्गा की आराधना और शक्ति की उपासना का होता है, जिसमें भक्ति गीतों और मंत्रों का विशेष स्थान होता है। सदियों से भक्तजन भक्ति संगीत और पूजा-पाठ के माध्यम से देवी की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते रहे हैं। इन गीतों में एक आंतरिक शक्ति होती है, जो न केवल मन को शांति देती है, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करती है।
भक्ति संगीत की आध्यात्मिक शक्ति
भक्ति गीतों में वह क्षमता होती है, जो हमारी चेतना को जाग्रत कर, हमें अध्यात्म के मार्ग पर ले जाती है। चाहे वह 'जय अम्बे गौरी' जैसे पारंपरिक गीत हों या फिर मंत्रोच्चार, इन ध्वनियों में दिव्यता और शांति का संचार होता है। देवी दुर्गा की पूजा में भक्ति संगीत के माध्यम से एक अद्भुत सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे न केवल वातावरण पवित्र होता है, बल्कि हमारी आंतरिक शक्ति का भी विस्तार होता है।
इन गीतों का धार्मिक महत्व केवल उनके संगीत में नहीं, बल्कि उनके संदेश में भी निहित है। भक्ति गीत देवी की महिमा और शक्ति का वर्णन करते हैं, जो हमें हमारी कठिनाइयों से उबरने और जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। इन गीतों का उद्देश्य मनोरंजन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शांति और देवी की कृपा प्राप्त करना होता है।
भड़कीले गीतों का प्रभाव और सांस्कृतिक ह्रास
दुर्भाग्यवश, हाल के वर्षों में नवरात्रि और देवी स्थापना जैसे पर्वों में भक्ति संगीत की जगह भड़कीले और शोरगुल वाले गीतों ने ले ली है। उदाहरण के लिए, "मेरी चुनरिया सरकी जाए" जैसे गीत, जो साधारण मनोरंजन का हिस्सा हो सकते हैं, देवी के पावन अवसर पर बजाना न केवल अपमानजनक है, बल्कि समाज पर इसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।
जब हम देवी के सामने ऐसे गीत बजाते हैं, तो क्या हम वास्तव में उस शक्ति की आराधना कर रहे हैं जो शांति और भक्ति की प्रतीक मानी जाती है? ऐसे गीत वातावरण में व्यर्थ का शोर और हलचल उत्पन्न करते हैं, जिससे न केवल भक्ति की भावना कम होती है, बल्कि इससे मानसिक तनाव और स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ सकती हैं। ध्वनि प्रदूषण का बढ़ता स्तर एक गंभीर समस्या है, और ये शोरगुल भरे गीत धार्मिक आयोजन को मनोरंजन का मंच बना देते हैं।
ध्वनि प्रदूषण और स्वास्थ्य पर प्रभाव
ध्वनि प्रदूषण से कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं, विशेष रूप से मानसिक तनाव और हृदय रोगियों के लिए यह अत्यंत हानिकारक हो सकता है। यह धार्मिक आयोजनों की पवित्रता को भी कम करता है। नवरात्रि जैसे पर्वों का उद्देश्य आध्यात्मिक जागरूकता और देवी की आराधना है, न कि शोरगुल और ध्वनि प्रदूषण।
धर्म और अध्यात्म का गहरा संबंध शांति से होता है, और जब हम अपनी पूजा-अर्चना के दौरान ऐसे शोरगुल वाले गीत बजाते हैं, तो हम उस शांति को खो देते हैं जो हमें भक्ति के माध्यम से प्राप्त होनी चाहिए। भक्ति गीतों और मंत्रों के माध्यम से होने वाली उपासना से न केवल वातावरण पवित्र होता है, बल्कि हमारे मन और आत्मा को भी शांति मिलती है।
भक्ति संगीत की ओर लौटने की आवश्यकता
हमें अपनी संस्कृति और धार्मिक आयोजनों की पवित्रता को बनाए रखने की दिशा में कदम उठाने होंगे। यह जरूरी है कि हम इन पवित्र अवसरों पर भक्ति संगीत और पारंपरिक मंत्रोच्चार का प्रयोग करें, जो देवी-देवताओं की उपासना का वास्तविक रूप है। भक्ति के नाम पर ध्वनि प्रदूषण फैलाना न तो धार्मिक है और न ही सांस्कृतिक।
समाज को जागरूक करने की आवश्यकता है कि धार्मिक आयोजनों का उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति है, न कि मनोरंजन। हमें इन पर्वों के दौरान पारंपरिक और भक्ति संगीत का समर्थन करना चाहिए, ताकि देवी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
नवरात्रि और देवी स्थापना जैसे पर्वों का वास्तविक आनंद तभी प्राप्त हो सकता है जब हम इनका पालन पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ करें। भड़कीले गीतों का त्याग कर हमें भक्ति गीतों और मंत्रों की ओर लौटना चाहिए, ताकि हम अपने आराध्य देवी-देवताओं को प्रसन्न कर सकें और अपनी संस्कृति और धार्मिक आयोजनों की पवित्रता को बनाए रख सकें। धर्म और अध्यात्म का सही मार्ग शांति, भक्ति और समर्पण में है, और यही हमें देवी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का सच्चा माध्यम है।
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