अरे ? विधायक ऐसे भी होते हैं ? - दिवाकर शर्मा

 

अगर आप अपने विधायक के अहंकार, आमजन से बेरुखी, चटक मटक - रुतबे का दिखाबा और दबंगी देखदेखकर राजनेताओं के प्रति वितृष्णा से भर चुके हैं, तो आईये आज एक ऐसे विधायक का वर्णन आपके सामने रखते हैं, जिसे पढ़कर आप बेसाख्ता कह उठेंगे - अरे ? क्या विधायक ऐसे भी होते हैं ?

मध्यप्रदेश के सीहोर जिले का एक छोटा सा क़स्बा है इछावर। यहाँ की दो विशेषाताएँ हैं - एक विशेषता तो यहाँ का शरबती गेंहू और दूसरी विशेषता यहाँ के विधायक। श्री करणसिंह वर्मा आठ बार इछावर विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और वर्त्तमान मंत्रीमंडल के सबसे बुजुर्ग मंत्री हैं। वे चार बार अलग अलग मुख्यमंत्रियों के साथ मंत्री मंडल के सदस्य रह चुके हैं।

हम तो देखते हैं कि आमतौर पर चुनाव जीतने के लिए पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी एक बार मंत्री रहे विधायक को उसी विधानसभा से दूसरी बार जीतने में पसीना आ जाता है। आधे से अधिक मंत्रियों को तो हार का मुंह देखना ही पड़ता है। आप भी मानेंगे कि इस सख्सियत में कुछ तो ख़ास है, और जानना भी चाहेंगे कि श्री करन सिंह वर्मा में ऐसी क्या खूबी है कि वे लगातार विधायक भी बन रहे हैं और मंत्री भी।

आईये पहले उनके कुछ संस्मरणों पर नजर डालें, उनसे सहज पता चल जाएगा कि वे अन्य नेताओं से अलग और विशेष क्यों हैं।

जब पूर्व विदेश मंत्री स्व. श्रीमती सुषमा स्वराज विदिशा संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरीं तो सभी विधानसभाओं के चुनावी व्यय के लिए विधायकों को कुछ धनराशि की व्यवस्था की। लेकिन करणसिंह वर्मा ने सहज भाव से इंकार कर दिया। बोले हमें चुनाव लड़ने के लिए धन की जरूरत ही नहीं है।

अचंभित सुषमा जी ने पूछा - बिना धन के चुनाव प्रचार कैसे होगा ?

जबाब मिला - हमारे यहाँ कार्यकर्ता ही चुनाव लड़ते हैं, वे ही धन की व्यवस्था भी स्वयं करते हैं।

आपको जानकर हैरत होगी कि श्री करण सिंह वर्मा के क्षेत्र में संगठन को भरपूर चन्दा मिलता है। भावना ऐसी कि बच्चिया अपनी गुल्लक दे रहीं हैं। महिलायें अपनी बचत के पैसे दे रही हैं, यह नजारा हर चुनाव में वहां देखने को मिलता है। अपनी हैसियत के अनुसार सभी स्वेच्छा से अपना योगदान देने को आतुर से दिखाई देते हैं, पांच रुपया दस रूपया से लेकर हजारों तक आमजन वहां संगठन को प्रदान करते हैं। यही तो है मूल भारतीय जनता पार्टी की विशेषता, जो जनसंघ काल से लेकर अपवाद रूप में ही सही कुछ क्षेत्रों में आज तक चली आ रही है।

फक्कड़ स्वभाव और ईमानदारी ऐसी कि दांतो तले उंगली दबाने को मन करता है। मंत्री के रूप में मिली सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल घर के और सदस्य नहीं कर सकते। न पत्नी न बच्चे। पत्नी को बाजार जाना हो तो ऑटो से जाती थीं। एक बार का बड़ा अद्भुत प्रसंग है। बड़े सुपुत्र अपनी मां अर्थान मंत्री जी की पत्नी को लेकर गाँव से मोटर साईकिल पर आ रहे थे। रास्ते में खजूरी सड़क पर बने ब्रेकर पर संतुलन गड़बड़ा गया और दोनों मां बेटे गिर पड़े। पास ही चैकिंग कर रहे थानेदार और कांस्टेबिल ने एक्सीडेंट देखकर बिठा लिया और पूछताछ की कौन हो, कहाँ से आ रहे हो, कहाँ जा रहे हो। आदि आदि। लडके ने जबाब दिया। गाँव से अपनी मां को लेकर पिताजी के पास भोपाल जा रहा हूँ।

थानेदार ने पूछा - भोपाल में क्या करते हैं तुम्हारे पिताजी।

लडके ने बताया - राजस्व मंत्री हैं।

थानेदार को भरोसा नहीं हुआ, आप होते उसकी जगह तो आपको भी नहीं होता। वह दोनों को लेकर कोतवाली पहुंचा और वहां से मंत्री जी के बंगले पर फोन लगाया और जब मालूम पड़ा कि जो लड़का बता रहा है, वह सही है तो आश्चर्य में पड़ गया।

एक बार पिताजी गाड़ी में बैठ गए तो मंत्री जी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि अपनी निजी कार से ही जाएँ। स्वाभाविक ही पिताजी की झिड़की भी खाई। लेकिन अपने नियम को नहीं बदला।

आचार संहिता के दौरान रात को बारह बजे गाँव जाना था। शासकीय गाड़ी के ड्राइवर ने कहा - कौन देखेगा गाड़ी से ही लिए चलता हूँ।

वर्मा जी का जबाब था - मैं तो देखूंगा। अपने आप को क्या जबाब दूंगा ?संविधान की सौगंध खाई है, संविधान का पालन करना मेरा धर्म है। दुनिया में आए हैं, तो जैसा बोलते हैं, बैसा करना भी चाहिए और यह दूसरों को दिखना भी चाहिए।

घर से क्षेत्र में जाते हैं तो चार रोटियां अपने साथ अपनी जेब में रखकर ले जाते हैं। दो रोटी एक जेब में, दो रोटी दूसरी जेब में। जहाँ भूख लगी, खा लीं, पानी पी लिया। यह स्वभाव सभी जानते हैं। एक बार पूर्व मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी चौहान के साथ हवाई जहाज से कहीं जा रहे थे। रास्ते में शिवराज जी ने पूछा यार वर्मा जी भूख लगी है, रोटी है क्या ?

वर्मा जी ने जबाब दिया हाँ है और दोनों ने दो दो रोटी उदरस्थ कर लीं।

जितने सहज सरल हैं, उतने बेबाक भी हैं वर्मा जी। बेईमानी और बदतमीजी बर्दास्त नहीं करते। किसान को चांटा मारने वाले अधिकारी को आनन् फानन में सस्पेंड कर दिया। एक वीडिओ आजकल चर्चा में है - मुझ पर समय कम है, ईमानदारी से त्वरित काम चाहिए। एक पत्रकार को स्पष्टीकरण देते हुए करण सिंह जी ने कहा - अधिकारी हो चाहे मैं, सबको एक दिन जाना है। कुछ ऐसा कर जाएँ कि सब याद करें। ईमानदारी की मिलेगी तो खाएंगे, नहीं तो भूखे सो जाएंगे।

आखिर ऐसे क्यों हैं राजस्व मंत्री श्री करणसिंह वर्मा ?

इसका दो शब्दों में सीधा जबाब है - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। 

वर्मा जी के सार्वजनिक जीवन का प्रारम्भ संघ से ही हुआ। जिला प्रचारक दादा भाई और स्व. प्यारेलाल जी खंडेलवाल ने प्रेरणा दी राजनीति में जाने की, तो अरुचि प्रदर्शित की - अरे वहां तो बड़ी गंदगी है।

अलग अलग समय में दोनों ने ही एक सा जबाब दिया - वहां गंदगी है, इसीलिए तो अच्छे लोगों को वहां जाना चाहिए। अगर अच्छे लोग वहां जाएंगे ही नहीं, तो आखिर गंदगी दूर कैसे कैसे होगी। खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है, अच्छे लोगों से प्रेरित होकर दूसरे भी उन जैसा बनने का प्रयत्न करेंगे, यह आशा प्यारेलाल जी को रही होगी। 

कितनी पूरी हुई, इसका उत्तर फिलहाल तो मौन है। कब पूरी होगी, पूरी होगी भी या नहीं, इसका उत्तर भी देना दुष्कर है। लेकिन अच्छे और सच्चे लोग हैं, जो राष्ट्र के लिए काम करते हैं, अपनी जेब के लिए नहीं, यह देखना सुखद है।

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