अवैध शराब : प्रदेश में नाकाम होती आबकारी नीति…!
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सरकार के राजस्व को लग रही है चपत
मानव संसाधन की कमी से जूझता महकमा
सरकार के राजस्व को लग रही है चपत
(विशेष प्रतिनिधि) भोपाल। प्रदेश की मौजूदा आबकारी नीति में बड़े बदलाब की आवश्यकता है क्योंकि जिस व्यापक पैमाने पर शराब का अवैध कारोबार मैदानी स्तर पर हो रहा है उसे आबकारी विभाग रोक पाने में नाकाम साबित हो रहा है। सीमित मानव संसाधन और केंद्रीयकृत नियंत्रण तंत्र के अभाव में सरकार को इस अवैध कारोबार से राजस्व की क्षति भी हजारों करोड़ में हो रही है।
तथ्य यह है कि प्रदेश में जितनी आधिकारिक शराब दुकानें है उससे दोगुने अनुपात में शराब का अवैध विक्रय संगठित तौर पर किया जा रहा है।प्रदेश में एक भी गांव ऐसा नही है जहां सरकारी दुकानों से अवैध परिवहन कर शराब नही बेची जा रही हो। यही नही इसी अनुपात में अवैध रूप से शराब निर्माण भी गांव-गांव में किया जा रहा है। इसके दुष्परिणाम सरकारी राजस्व में चपत के साथ आम नागरिकों की अमानक शराब से असमय मौत के रूप में भी सामने आ रहे हैं। मुरैना जिले में पिछले सालों जिस तरह से अवैध शराब भट्टियों से निर्मित शराब पीने से जो मौते हुई थी उससे सरकार ने कोई सबक नही सीखा
सरकार नहीं कर सकती दुकानें बंद?
मध्यप्रदेश सरकार बिहार या गुजरात की तरह शराब बंदी नहीं कर सकती है, क्योंकि राज्य के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा उसे आबकारी से ही प्राप्त होता है। प्रदेश में अभी तीन हजार 600 शराब दुकानों से सरकार को 13 हजार 916 करोड़ का राजस्व चालू वित्तीय बर्ष में मिला है। 2003 में यह आंकड़ा लगभग 750 करोड़ रुपए था। जाहिर है कि औधोगिक एवं खनिज संसाधनों रूप में बीमारू मप्र के लिए सरकारी राजस्व का बड़ा स्रोत शराब भी है।
वर्तमान तीन हजार छह सौ दुकानों की संख्या आंकड़े के रूप में तो बहुत नजर आती है, लेकिन जो जमीनी हकीकत है वह इन आंकड़ों से जुदा है क्योंकि बिना सरकारी दुकानों के भी हजारों जगह शराब का अवैध विक्रय हो रहा है और इसी अनुपात में अवैध भट्टियों का संचालन भी जारी है। यह दोनों तथ्य सरकार से छिपे हुए नहीं है।
नाकाफी आबकारी तन्त्र
सरकार के राजस्व का इतना महत्वपूर्ण स्रोत होने के बाबजूद आबकारी महकमा मानव संसाधन की गंभीरतम कमी से जूझ रहा है। अधिकतर जिलों में आबकारी उपनिरीक्षक, हवलदार, आरक्षक के आधे से ज्यादा पद खाली है। एक एक उपनिरीक्षक के पास दो से तीन सर्किल का प्रभार है। नतीजतन अवैध भट्टियों पर कारवाई के लिए महकमें के पास कोई संसाधन ही नहीं हैं । इस अवैध कारोबार को स्थानीय दबंगो के अलावा राजनीतिक स्तर पर भी खुला संरक्षण मिला हुआ है। जब भी आबकारी महकमा अवैध बिक्री या निर्माण पर कारवाई करता है उसे स्थानीय माफिया और नेता कारवाई नहीं करने देते हैं। नेताओं के संरक्षण के कारण ही उन अवैध कारोबारियों को न तो पुलिस का भय है और न ही आबकारी विभाग का।
अवैध शराब विक्रय के कारण
अवैध शराब के लिए बाजार की उपलब्धता होना है, वर्तमान में मध्य प्रदेश में संपूर्ण प्रदेश को दो ,तीन या चार-चार दुकानों के समूहों में बांटा गया है, प्रत्येक समूह किसी न किसी ठेकेदार को टेंडर के माध्यम से आवंटित किया जाता है जिसके एवज में सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है। दुकानें शासकीय होती हैं और ड्यूटी पेड शराब सरकारी वेयर हाउस से उनको प्रदान की जाती हैं जिनको वो एमएसपी और एमआरपी के बीच अपने सुविधा जनक रेट पर विक्रय करने हेतु स्वतंत्र होते हैं। अब सवाल ये उठता है कि अवैध शराब यदि दुकानों से नहीं बिकती तो फिर कहां बिकती है? प्रत्येक मदिरा समूह में ठेकेदार को आवंटित दुकानों की संख्या कम होने और उन दुकानों से संबद्ध क्षेत्र बहुत बड़ा होने से प्रति व्यक्ति दुकान तक मदिरा खरीदने जाने के लिए सक्षम नहीं होता इसलिए ठेकेदार प्रत्येक गांव में अपना एक कमीशन किसी सामान्य पान या परचून दुकानदार को दे देते हैं जिस से प्रत्येक गांव में ड्यूटी पेड शराब प्रत्येक व्यक्ति को आसानी से स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो जाती है।
कैसे लगे अवैध शराब विक्रय पर प्रतिबंध
अवैध शराब विक्रय को रोकने के लिये प्रत्येक गांव में अघोषित रूप से खुली हुई कलारियों को सरकार नियमों के अंतर्गत लाकर उनके नियमित लाइसेंस प्रदान करने की कार्यवाही करें, जिससे सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी और जनहानि की संभावना भी खत्म हो जाएगी। इसके अलावा शराब की कीमतों में कमी की जानी चाहिए क्योंकि जो शराब का आदि है, वह तो शराब पियेगा, फिर चाहे जहरीली ही क्यों न हो। ऐसे में यदि कीमत कम होगी, तो यह मौतों का सिलसिला भी कम होगा। आबकारी विभाग द्वारा की जाने वाली कार्यवाहियों का पूर्ण अधिकार विभाग को ही दिया जाना चाहिए, ताकि विभागीय अधिकारियों का अवैध करोबार पर अंकुश लगाए जाने के प्रति रूझान बढ सके। अन्यथा पुलिस द्वारा की जाने वाली कार्यवाहियों के कारण आबकारी अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन हो जाती है, फलस्वरूप दिखावे की कार्यवाहियां कर अपने काम की इतिश्री कर ली जाती है। आबकारी अधिनियम में कठोर दण्ड का प्रावधान करना और पालन करना चाहिए। दुकानों की संख्या में वृद्धि की जाकर ड्यूटी पेड मदिरा की उपब्धता में वृद्धि की जानी चाहिए।
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मध्यप्रदेश
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