कोचिंग सेंटर के कारनामों का काला चिट्ठा देश के सामने आना चाहिए। - प्रियंका सौरभ

 



बेसमेंट में तैयारी करवाने वाले कोचिंग सेंटर के मालिक को पता नहीं था कि बेसमेंट में पानी भरने की समस्या आ सकती है। एक कोचिंग की बेसमेंट में नौजवान पढ़ाई कर रहे थे, जब अचानक घुसे तेज़ पानी ने मौत का रूप धर लिया। बहुत से लोगों ने भागकर जान बचाई, लेकिन तीन नौजवान इस हादसे में मारे गए। कुछ दिन पहले दिल्ली के ही एक इलाके में बारिश के दौरान करंट दौड़ने से एक नौजवान की मौत हो गई थी। इन दोनों घटनाओं ने इस तरफ़ ध्यान खींचा कि देश के अलग-अलग इलाकों से राजधानी दिल्ली में आए स्टूडेंट किन हालात में जीवन बसर कर रहे हैं? दिल्ली ही नहीं देश भर के सभी कोचिंग सेंटर कोरे हवाबाजी है। कितने दूध के धुले हुए हैं आप ये बात सिर्फ इस तथ्य से साफ हो जाती है कि आपके पास बेसमेंट में कोचिंग चलाने का कोई परमिट नहीं है, फिर भी आप बेसमेंट में कोचिंग चला रहे हैं । नॉर्म्स साफ नहीं हैं, और आपके पास एनओसी नहीं हैं इसका मतलब कदापि ये नहीं है कि आप खुद के नियम बना लो। एथिक्स कहती कि व्यक्तिगत नैतिकता और प्रशासनिक नैतिकता के बीच में अस्पष्टता होने पर एक जिम्मेदार व्यक्ति को प्रशासनिक नैतिकता को ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए।


कहाँ गया अब ये वाला ज्ञान? जिस कोचिंग में घटना हुई उसमें तो सिर्फ 30 बच्चे बेसमेन्ट में बैठे थे।अन्य कोचिंग में तो 2000-2500 बच्चे बेसमेंट में बैठते हैं। यही घटना अगर वहां होती तो कोचिंग में होते तो क्या होता। सचमुच यह मनुष्य और मनुष्यता का पाषाणयुग है। सरकारों, राजनेताओं, अफसरों और व्यापारियों का लेनदेन युग। एक घराट की तरह इनकी नृशंसता और स्वार्थ के पूड़ घूम रहे हैं जिनमें आमजन और देश के युवा पिस रहे हैं। इस पूरे प्रकरण में एक कार चालक को दोषी ठहराया गया। सरकार का कहना है कि रोड में पानी भरा रहा, एक कार निकली इस वजह से वह पानी हिल गया और बेसमेंट में चला गया। दोषी न सरकार है न कोचिंग सेंटर मालिक बल्कि दोषी है कार चालक कि वह सड़क पर कार क्यों चला रहा था। यह है हमारी क़ानून व्यवस्था और यह है हमारी न्याय व्यवस्था। इस घटना ने भारत की राजशाही, ब्यूरोक्रेसी, मीडिया और जूडीशियरी सबको एक साथ नंगा कर दिया है। यहाँ एक आम आदमी, एक आम युवा की जान की क़ीमत शून्य होती है। सब सो रहे हैं और अंधेर नगरी चौपट राजा की भाँति जब कभी ऐसी कोई घटना होती है तो जनता में से ही किसी एक को पकड़ कर सजा सुना दी जाती है। ग़नीमत है बच्चों के पैरेंट्स को जेल नहीं भेजा कि उन्होंने बच्चों को पढ़ाई के लिए क्यों भेजा। न वह पढ़ने भेजते न मृत्यु होती।


अवैध बिल्डिंग बनती है, तो बुल्डोजर चलता है। क्याकोचिंग सेंटर में भी बुलडोजर चलेगा? आखिर क्यों देश भर में कोचिंग की जरूरत है? क्यों हम इन होनहार बच्चों के लिए ढंग के हॉस्टल नही बनवा सकते। आखिर कितना खर्च होगा या कितने संसाधन लगेंगे इसमें ? ये बच्चे हमारे देश के भविष्य नियंता हैं लेकिन हमारी प्राथमिकता में तभी आयेंगे जब ये किसी बड़े पद पर पहुंच जाएंगे। विडंबना ये है कि यही सिस्टम इन्ही बच्चों को बड़े पदों पर पहुंचने के बाद अपनी असंवेदनशीलता में घेर लेता है जहां ये अपना स्वयं का संघर्ष तुरत फुरत भूल जाते हैं। प्रशासन को मैनेज करने वाले आईएएस अफसरों में से आधे से अधिक ने 10 -15 वर्ष पहले इन्ही बच्चों की जिंदगी जी होगी, लेकिन फिर भी वे इन बच्चों के लिए कुछ कर पाने में या तो समर्थ नहीं हैं, या इसमें इनकी रुचि नहीं है, उनका स्वयं का अतीत भी उनकी प्राथमिकता तय नहीं कर पा रहा है। आखिर हत्यारी कोचिंग की जरूरत क्या है? कोचिंग तो किसी व्यक्ति का निजी होगा।यह गर्वनमेंट का तो लगता नहीं।तो इसके लिए कोई घटना इतने बड़े देश में कहीं किसी का भी लापरवाही से हो, सिस्टम कैसे दोषी हो गया? सिस्टम इस घटना का जांच करवायेगा। और जो भी दोषी होंगे उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई हो।


सरकार और कोचिंग संस्थान वालो को केवल पैसा चाहिए और कुछ नहीं कोई मारे या जीए उससे उनका कोई लेना देना नहीं है। कई दूसरे कोचिंग सेंटर भी बेसमेंट में चला रहे जानलेवा लाइब्रेरी। अगर ऐसे गैर कानूनी तरीके से कोचिंग सेंटर चल रहे हैं तो उस पर कार्रवाई हो और अधिकारी पर भी कार्रवाई हो। ऐसे समय में हमें आरोप-प्रत्यारोप नहीं करना चाहिए बल्कि कार्रवाई करनी चाहिए। सरकार कोचिंग इंस्टीट्यूट्स को रेगुलेट करने के लिए कानूनी लाए और कोचिंग में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स से भी इस पर सुझाव लिया जाए। रेगुलेटर द्वारा कोचिंग संस्थानों की फीस पर भी नजर रखी जाए। किसी जमाने में जीनियस से जीनियस स्टूडेंट के भी 90% से ऊपर नंबर नहीं आते थे, आज साधारण बुद्धि वाला भी 99% नंबर ले आता है, यह सब खेल कोचिंग सेंटर ओर प्राइवेट स्कूलों वालों का है, पेपर लीक, परीक्षा सेंटर और रिजल्ट बनाने वालों से इनकी मिली भगत रहती है। कोचिंग सेंटर के कारनामों का काला चिट्ठा देश के सामने आना चाहिए।

प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)

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