शिवपुरी में 1857 का सैनिक विद्रोह: स्वतंत्रता संग्राम का एक अनदेखा अध्याय - दिवाकर शर्मा

 

1857 का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, जिसे 'सिपाही विद्रोह' या 'प्रथम स्वतंत्रता संग्राम' के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण और व्यापक विद्रोह था। यह विद्रोह पूरे देश में फैला, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी गई। इसी कड़ी में शिवपुरी और मुरार छावनी में भी सैनिकों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई, जिसने स्थानीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा।

मुरार छावनी में विद्रोह: 14 जून 1857

विद्रोह की शुरुआत 14 जून 1857 को मुरार छावनी में हुई, जो ग्वालियर के निकट स्थित थी। इस दिन सैनिकों ने दोपहर डेढ़ बजे छावनी में स्थित बंगला, मेस हाउस और मेस बैटरी को आग के हवाले कर दिया। इस क्रांति का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी सत्ता को कमजोर करना और उसे चुनौती देना था। सैनिकों ने शिवपुरी और ग्वालियर के बीच की तार लाइन काट दी, जिससे संचार व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई। यह कदम विद्रोह की योजना का हिस्सा था, जिसके तहत बम्बई-आगरा मार्ग की मुख्य संचार व्यवस्था को बाधित कर दिया गया था।

ग्वालियर के पॉलिटिकल एजेंट मेकफर्सन ने मुरार छावनी और शस्त्रागार का प्रभार ग्वालियर के महाराज श्रीमंत जियाजीराव सिंधिया को सौंप दिया। मुरार छावनी में रातभर चले संघर्ष में विद्रोही सैनिकों ने सात अधिकारियों और छह सार्जेंटों की हत्या कर दी। पॉलिटिकल एजेंट मेकफर्सन और उनके कुछ अधिकारियों ने सपरिवार फूलबाग महल में शरण ली, और प्रातःकाल महाराजा के अंगरक्षकों की सहायता से उन्हें चम्बल नदी तक पहुंचाकर सुरक्षित आगरा भेज दिया गया।

शिवपुरी में विद्रोह: 20 जून 1857

14 जून के मुरार विद्रोह के बाद 20 जून 1857 को शिवपुरी में भी विद्रोह की लहर उठी। उस समय शिवपुरी में ग्वालियर राज्य की सेना तैनात थी, जिसमें दूसरा रिसाला और तीसरी पलटन शामिल थी। जब यहां की सेना ने विद्रोह किया, तो अंग्रेजी अधिकारीगण को अपनी जान बचाने के लिए शिवपुरी से भागना पड़ा। इन अधिकारियों ने गुना के रास्ते इंदौर जाने का प्रयास किया, लेकिन राजगढ़ पहुंचने के बाद उन्हें यह सूचना मिली कि विद्रोह को दबा दिया गया है, और वे वापस लौट गए।

इस विद्रोह के दौरान शिवपुरी में जो अंग्रेज अफसर मारे गए थे, उन्हें पोहरी बायपास रोड पर स्थित गेवेयार्ड (ईसाइयों का कब्रिस्तान) में दफनाया गया। इस कब्रिस्तान में 1985 तक कई समाधियां थीं, जिन पर शिलालेखों में मरने वाले अफसरों के नाम, जन्म और मृत्यु की तिथियां बड़े भावनात्मक शब्दों में अंकित थीं। लेकिन आज अधिकांश शिलालेख नष्ट हो चुके हैं, और यह कब्रिस्तान भी समय के साथ उपेक्षित हो गया है।

विद्रोह का महत्व और प्रभाव

शिवपुरी और मुरार छावनी में हुए ये विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर की गवाही देते हैं, जब देशभर में अंग्रेजी शासन के खिलाफ क्रांति की लहर दौड़ रही थी। इन विद्रोहों ने अंग्रेजी हुकूमत के मनोबल को कमजोर किया और स्थानीय जनता में स्वतंत्रता की भावना को जागृत किया। हालांकि, यह विद्रोह उस समय पूरी तरह से सफल नहीं हो सका, लेकिन इसने आने वाले समय में स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया।

शिवपुरी और मुरार में हुए 1857 के विद्रोह भारतीय इतिहास के उन अध्यायों में से हैं, जो हमें हमारे पूर्वजों की साहसिक और स्वतंत्रता की भावना की याद दिलाते हैं। इन विद्रोहों के बलिदानों को भुलाया नहीं जा सकता, और यह हमारे इतिहास का एक अमूल्य हिस्सा है। आज भी, यह जरूरी है कि हम इन घटनाओं से सीखें और उन्हें आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं, ताकि स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष और बलिदानों का महत्व कभी कम न हो।

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