शरद पवार और जय शाह : क्रिकेट प्रशासन में दो विचारधाराएं, एक पर सवाल क्यों? - दिवाकर शर्मा
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क्रिकेट की दुनिया में प्रशासन का भी अपना महत्व होता है, और इस खेल के विकास में प्रभावशाली नेतृत्व की जरूरत होती है। पिछले कुछ दिनों से जय शाह के ICC अध्यक्ष बनने को लेकर कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं। उनके आलोचक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जय शाह अपने पिता अमित शाह के प्रभाव के कारण इस पद पर पहुंचे हैं, न कि अपनी योग्यता के बल पर। लेकिन क्या यही तर्क शरद पवार पर लागू नहीं होता? आइए, इस मुद्दे पर गहराई से विचार करें।
शरद पवार का क्रिकेट से कोई लेना-देना नहीं
शरद पवार, जिन्होंने पहले ICC के अध्यक्ष पद पर कार्य किया, कभी क्रिकेट के मैदान में नजर नहीं आए। न उन्होंने बल्ला पकड़ा, न बॉल। अगर उनके राजनीतिक कनेक्शन नहीं होते, तो क्या उन्हें क्रिकेट जैसे खेल में कोई अहम पद मिल सकता था? शरद पवार का क्रिकेट प्रशासन में आगमन उनकी राजनीतिक पकड़ का परिणाम था, और इसे लेकर कभी किसी ने गंभीर सवाल नहीं उठाए। तो फिर जय शाह पर सवाल क्यों?जय शाह का योगदान
जय शाह, जो आज BCCI के सचिव और ICC के अध्यक्ष हैं, ने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। उनके नेतृत्व में भारतीय टीम की रैंकिंग स्थिर रही है और क्रिकेट के ढांचे में सुधार हुआ है। जय शाह के कार्यकाल में भारतीय क्रिकेट ने न केवल घरेलू स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी स्थिति मजबूत की है। उनके नेतृत्व में BCCI ने पारदर्शिता और पेशेवरता की ओर कदम बढ़ाए हैं, जिससे संगठन की विश्वसनीयता में इजाफा हुआ है।आलोचना और सच्चाई
आलोचकों का कहना है कि जय शाह ने कभी क्रिकेट नहीं खेला, इसलिए उन्हें यह पद नहीं मिलना चाहिए था। लेकिन क्या केवल मैदान पर खेलने का अनुभव ही किसी को नेतृत्व के लिए योग्य बनाता है? क्रिकेट प्रशासन में कुशल प्रबंधन, रणनीतिक सोच और खेल के प्रति समर्पण की जरूरत होती है, और जय शाह ने इन सभी गुणों को अपने कार्यकाल में प्रदर्शित किया है।इसके अलावा, अगर हम केवल व्यक्तिगत खेल के अनुभव पर जोर दें, तो कई ऐसे नेता हैं जिन्होंने बिना खेल के मैदान में कदम रखे बड़े-बड़े पद संभाले हैं और सफलतापूर्वक कार्य किए हैं। ऐसे में, केवल जय शाह के मामले में इस तर्क का इस्तेमाल करना गलत और अनुचित है।
शरद पवार बनाम जय शाह
अगर शरद पवार, जो कभी क्रिकेट के मैदान में नहीं खेले, ICC के अध्यक्ष बन सकते हैं, तो जय शाह पर सवाल क्यों? दोनों के पास खेल का मैदान का अनुभव नहीं था, लेकिन दोनों ने अपनी-अपनी तरह से क्रिकेट प्रशासन में योगदान दिया। फर्क सिर्फ इतना है कि शरद पवार के राजनीतिक कनेक्शन को सम्मानजनक माना गया, जबकि जय शाह के पिता के प्रभाव को एक मुद्दा बनाया जा रहा है।जय शाह ने अपने नेतृत्व में भारतीय क्रिकेट को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया है। उनकी प्रशासनिक क्षमता, दूरदर्शिता, और खेल के प्रति समर्पण ने उन्हें इस पद के लिए योग्य साबित किया है। आलोचकों को यह समझना चाहिए कि नेतृत्व केवल मैदान पर खेलने से नहीं, बल्कि खेल के प्रति गहरी समझ और सही दिशा में नेतृत्व करने की क्षमता से आता है। जय शाह इस चुनौती में खरे उतरे हैं, और उनके योगदान को सराहा जाना चाहिए, न कि अनावश्यक सवालों के घेरे में लाया जाना चाहिए।
दिवाकर शर्मा
Tags :
राजनीति
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