आतंकवादियों के लिए दया-याचिका लगाने वाले ‘सेकुलर’, अब चुप ! - इंजी . राजेश पाठक

 

संसद पर हमला करने वाले अफज़ल गुरु की सजा और साथ ही अयोध्या मामले में पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों में काँग्रेस के प्रथम परिवार के चहेते हर्ष मंदर शामिल रहे, ये इतिहास में दर्ज हो चुका है। उधर मुंबई में देश ने पाकिस्तान पोषित याकूब मेमन की शवयात्रा में भीड़ को उमड़ते देखा था। पर किसी ‘धर्मनिरपेक्ष’ ने देशहित में इसको लेकर कोई टिप्पणी करना जरूरी नहीं समझा। कैसे करते ? जबकि मुंबई बम धमाके में फांसी की सजा प्राप्त इसी याकूब मेमन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर एक ‘दया याचिका’ में धर्मनिरपेक्षता के लिए मर मिटने को तैयार यही ख्याति प्राप्त लोग बढ़-चढ़ कर हस्ताक्षर अभियान में हिस्सेदारी निभा जो चुके हैं ।


और आज एक ओर ‘धर्मनिरपेक्ष’ ताकतों की मेहरबानी से पश्चिम बंगाल की राजधानी कलकत्ता तक में बांग्लादेश के जिहादी घुसपेठ के चलते डेमोग्राफी ने ऐसी करवट ली कि वहाँ का महापोर आज एक मुसलमान फिराद हकीम बन बैठा है। और जबकि वहीं इसी प्रांत से सटे हुए बांग्लादेश में मजहबी उन्माद के चलते हिंदुओं पर अत्याचार-अनाचार घटनाएं अपने सारी सीमा तोड़ चुकीं है, और कोई नहीं जनता ये कहाँ जाकर दम लेंगी । पश्चिम बंगाल के पत्रकार देवदत्त माजी कहते हैं, जो अब तक गावों में सीमित था , वो राजधानी ढाका में पहुँच चुका है। यहाँ की जो हाउज़िंग कॉलोनियाँ हैं वहाँ मुसलमान रजाकार जा रहे हैं और हिन्दू रहवासियों को कूपन पकड़ा रहे हैं जिसमें राशि दर्ज है । किसी को 10 लाख किसी को 20 लाख और जो धनवान हैं उन्हें करोड़ों में राशि देकर अपने परिवार की जान को बचना पड़ रहा है। क्यूंकी घर की इज्जत तो बची नहीं, छोटे-छोटे बच्चों के सामने उन्मादी माँ-बहनों पर टूटे जो पड़ रहें हैं। (जयपुर डायलॉग )


लेकिन देश में अफजल गुरु, मेमन और हमास के पक्ष में आँसू लूटा-लूटा देने वाले धर्मनिरपेक्ष तत्वों का ‘दयाभाव’ का पता मिलना मुश्किल हो चला है ! हाँ , इस बीच सलमान खुर्शीद ये जरूर कहते दिखे कि कैसे भारत में भी बांग्लादेश दोहराया जा सकता है। जबकि देश अभी भूला नहीं है कि पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की उनकी पुत्री मारिया आलम ने मुस्लिम समाज के लोगों से एकजुट होकर वोट देने की अपील करते हुए कैसे ये कहा था कि एक साथ होकर वोटों का जिहाद करो, क्योंकि हम सिर्फ वोटों का जिहाद ही कर सकते ।


वैसे धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर घोर मजहबी सांप्रदायिकता का लक्ष्य साधने वाला ये पहला मामला भी नहीं । नेहरू जी के चहेते अबुल कलाम आजाद ये आव्हान करने से बाज नहीं आए कि : ‘ भारत जैसे देश को जो एक बार मुसलमानों के शासन में रह चुका है , कभी भी त्यागा नहीं जा सकता और प्रत्येक मुसलमानों का कर्तव्य है कि उस कही हुई मुस्लिम सत्ता को फिर से प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करे।(पांचजन्य)

इंजी . राजेश पाठक
३११,डीके सुरभि ,नेहरु नगर ,
भोपाल मप्र

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