भारत में राजनीतिक अस्थिरता और वैश्विक शक्तियों का हस्तक्षेप: चुनौती और समाधान - अमरीक सिंह ठाकुर

 



भारत एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक और संप्रभु राष्ट्र है, जिसने अपनी स्वतंत्रता के बाद से कई चुनौतियों का सामना किया है और अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखा है। हालांकि, आज के वैश्विक परिदृश्य में, जहां अंतरराष्ट्रीय संबंध और कूटनीति जटिल होती जा रही हैं, भारत को बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप और उनके संभावित प्रभाव से भी सावधान रहना चाहिए। विशेषकर अमेरिका जैसे देशों की राजनीतिक गतिविधियों और उनके द्वारा समर्थित आंदोलनों को लेकर भारत में चिंता का माहौल बना हुआ है।

अमेरिका का हस्तक्षेप: ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान परिदृश्य


अमेरिका का विदेश नीति में हस्तक्षेप कोई नई बात नहीं है। शीत युद्ध के दौरान, अमेरिका ने विभिन्न देशों में अपनी रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कई बार राजनीतिक अस्थिरता को प्रोत्साहित किया। बांग्लादेश, इराक, और हाल ही में अफगानिस्तान इसके उदाहरण हैं। इन देशों में अमेरिका के हस्तक्षेप ने वहां के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने और अस्थिरता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हाल के दिनों में, भारत में अमेरिका के दूतावास और काउंसलेट द्वारा किए जा रहे कुछ राजनीतिक कृत्य और गतिविधियां इसी दिशा में इशारा कर रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका, भारत में भी ऐसी परिस्थितियाँ निर्मित करने का प्रयास कर रहा है, जिससे अस्थिरता पैदा हो सके। इसके संकेत विशेषकर इस वर्ष नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े हैं। यदि डोनाल्ड ट्रंप की जीत नहीं होती है, तो अगले वर्ष भारत में किसी नए आंदोलन की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।

भारत में संभावित संकट के कारक


भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में अस्थिरता लाने के लिए कई मुद्दों को आधार बनाया जा सकता है। आरक्षण, किसानों की समस्याएँ, अल्पसंख्यकों के अधिकार, और क्षेत्रीय असंतोष जैसे कई संवेदनशील मुद्दे हैं, जिन्हें बाहरी शक्तियां आसानी से राजनीतिक अस्थिरता का कारण बना सकती हैं।

भारत का समाज विभिन्न समुदायों, भाषाओं, और संस्कृतियों से मिलकर बना है, जिससे यहां बाहरी हस्तक्षेप के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ पहले से ही मौजूद हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों के प्रसार ने बाहरी प्रभाव को और अधिक सशक्त बना दिया है, जिससे किसी भी मुद्दे को व्यापक स्तर पर फैलाना आसान हो गया है।

संप्रभुता और लोकतंत्र की रक्षा में जनता की भूमिका

ऐसे किसी भी संकट से निपटने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि भारत के नागरिक समय पर जागरूक रहें और बाहरी हस्तक्षेप की संभावना को समझें। जब बात भारत की संप्रभुता और लोकतंत्र की आती है, तो राजनीतिक मतभेदों को अलग रखकर एकजुट होकर सरकार के समर्थन में खड़ा होना अनिवार्य है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि लोकतांत्रिक प्रणाली में बदलाव केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से ही होना चाहिए। बाहरी हस्तक्षेप या अस्थिरता फैलाने वाले किसी भी प्रयास का विरोध करना सभी देशवासियों का कर्तव्य है। यदि हम ऐसे किसी भी प्रयास के बहकावे में आ गए, तो इसका परिणाम देश के लिए विनाशकारी हो सकता है।

भारत सरकार की भूमिका और चुनौती


जितना जरूरी है कि भारत के नागरिक ऐसी किसी भी स्थिति में एकजुट रहें, उतना ही महत्वपूर्ण यह भी है कि भारत सरकार आवश्यक दृढ़ता दिखाए। सरकार को अपनी नीतियों और कूटनीतिक संबंधों में संतुलन बनाए रखना होगा। भारत के पास अब भी सीमित संसाधन और प्रभाव है, और ऐसे में कई बड़े देशों को एक साथ उकसाने से बचने की आवश्यकता है।

पिछले कुछ वर्षों में, भारत सरकार ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मामलों में दबाव के आगे ना झुकने का प्रदर्शन किया है। कनाडा, मालदीव, कतर और बांग्लादेश के साथ संबंधों में यह स्पष्ट रूप से देखा गया है। यह महत्वपूर्ण है कि सरकार अपनी कमजोरियों को पहचाने और उन्हें दूर करने के लिए आवश्यक कदम उठाए। केवल तभी भारत अपनी संप्रभुता और लोकतंत्र की रक्षा करने में सक्षम होगा।

जागरूकता और दृढ़ता की आवश्यकता


भारत के सामने बाहरी हस्तक्षेप और संभावित राजनीतिक अस्थिरता की चुनौती हमेशा रही है और भविष्य में भी रहेगी। इस चुनौती का सामना करने के लिए यह आवश्यक है कि देश के नागरिक और सरकार दोनों ही जागरूक और दृढ़ रहें।

भारत के लोकतंत्र और संप्रभुता की रक्षा केवल बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप को रोकने से नहीं, बल्कि आंतरिक एकजुटता और स्थिरता को बनाए रखने से ही संभव है। हमें यह समझना होगा कि बाहरी हस्तक्षेप का सबसे प्रभावी हथियार हमारी आंतरिक अस्थिरता है। यदि हम इसे पहचान कर समय रहते आवश्यक कदम उठाते हैं, तो किसी भी संकट से उबरना संभव होगा।
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