भारत : बुद्ध और युद्ध का संगम –सुजीत यादव
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भारत को केवल "बुद्ध का देश" कहना उसकी सच्चाई का केवल एक पक्ष ही दिखाता है। यह भूमि केवल अहिंसा और शांति की नहीं रही, बल्कि जब भी आवश्यकता पड़ी, इसने अपने शत्रुओं को परास्त करने के लिए शस्त्र भी उठाए हैं। भारतीय संस्कृति और इतिहास दोनों ने हमेशा से शक्ति और शांति, दोनों का सम्मान किया है। हमारे देवी-देवताओं के हाथों में शस्त्र सजावट के लिए नहीं हैं, वे उस शक्ति के प्रतीक हैं, जो अन्याय और अधर्म के खिलाफ खड़ी होती है।
भगवान राम और रावण का युद्ध इसका स्पष्ट उदाहरण है। राम ने अधर्म और अन्याय को समाप्त करने के लिए युद्ध किया, और आज भी हम दशहरा के रूप में इस विजय का उत्सव मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने भी धर्म की रक्षा के लिए महाभारत के युद्ध का नेतृत्व किया। यह हमें सिखाता है कि जब संवाद और अहिंसा से समस्या का समाधान न हो, तो युद्ध भी धर्म का हिस्सा बन जाता है।
हमारे पूर्वजों ने हजारों वर्षों तक बाहरी आक्रमणकारियों के खिलाफ लगातार संघर्ष किया। अगर शिवाजी महाराज ने अफजल खान और मुगलों से संघर्ष न किया होता, तो आज का महाराष्ट्र शायद किसी और पहचान के साथ होता। यही नहीं, जब-जब भारत पर विदेशी आक्रमण हुआ, तो हमारे योद्धाओं ने उन्हें वापस खदेड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही कारण है कि हम आज भी अपनी पहचान और संस्कृति को बनाए रखने में सक्षम हैं।
भारत की यह महानता है कि यह युद्ध और शांति दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। जो लोग बुद्ध की अहिंसा की भाषा समझते हैं, उनके लिए भारत ने हमेशा प्रेम और करुणा का संदेश दिया है। लेकिन जो इसे कमजोरी मानते हैं, उन्हें भारत ने अपनी युद्धक क्षमता से भी जवाब दिया है। यही कारण है कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत बुद्ध का भी देश है और युद्ध का भी।
नारद जी की कथा, जिसमें उन्होंने नाग को यह समझाया था कि हर आने-जाने वाले को डसना आवश्यक नहीं है, परंतु बीच-बीच में फुफकार कर यह दिखाना भी जरूरी है कि उसके पास विष है, आज के भारत के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। भारत को अहिंसा और शांति के मार्ग पर चलना चाहिए, लेकिन जब कोई इसे कमजोर समझने लगे, तो उसे याद दिलाना जरूरी है कि भारत अपनी शक्ति और सामर्थ्य का प्रदर्शन करने में सक्षम है। वर्तमान सरकार को यह ध्यान में रखना चाहिए कि जब राष्ट्र पर अंदर या बाहर से आघात होते हैं, तो केवल धैर्य रखना पर्याप्त नहीं है। कभी-कभी फुफकार कर यह दिखाना भी जरूरी है कि इस देश के पास अभी भी जहर है, जो अधर्म और अन्याय के खिलाफ खड़ा हो सकता है।
भारत की यही पहचान है – यह देश शांति का उपासक है, लेकिन जब आवश्यकता पड़ी तो शस्त्र उठाने में भी कभी पीछे नहीं हटा। यह भारत का संतुलन है – शांति की शक्ति और युद्ध की सामर्थ्य का अद्वितीय संगम।
सुजीत यादव
अशोकनगर म.प्र.
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राष्ट्रनीति
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