शिवपुरी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास, एक विस्तृत अध्ययन - दिवाकर शर्मा

 

शिवपुरी, मध्य प्रदेश के एक ऐतिहासिक शहर का प्राचीन स्वरूप समय की धारा के साथ अनेक परिवर्तन और विकास की कहानी प्रस्तुत करता है। 1804 से पहले, शिवपुरी में अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी, जिसे अंग्रेजी शासन के दौरान छावनी के रूप में जाना जाता था। इस लेख में हम शिवपुरी के ऐतिहासिक विकास, अंग्रेजी शासन, और उसके बाद के सांस्कृतिक परिवर्तनों की यात्रा पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

अंग्रेजों का शासन और छावनी का विकास

1804 में सिंधिया परिवार के अधीन आने से पहले, शिवपुरी एक महत्वपूर्ण अंग्रेजी छावनी था। अंग्रेजों के शासन में इसे छावनी कहा जाता था, जो उस समय की स्थिति और प्रशासनिक महत्व को दर्शाता है। 1817-1818 के पूना संधि के अनुसार, यह क्षेत्र अंग्रेजों के पूर्ण नियंत्रण में आ गया था। हालांकि, कुछ समय बाद इसे फिर से सिंधिया परिवार को सौंप दिया गया।

1865-1906 के बीच पुनः छावनी का रूपांतरण

1865 से 1906 तक शिवपुरी में एक बार फिर छावनी का रूप देखा गया। इस दौरान, कै. वा. श्रीमंत माधोराव सिंधिया ने शहर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विश्वप्रसिद्ध इंजीनियर श्री मोक्षगुंडम विश्वश्वरैया ने शिवपुरी का नक्शा तैयार किया और इसके विकास में अहम योगदान दिया।

जल प्रबंधन और पर्यावरणीय सुधार

विश्वश्वरैया के नक्शे के अनुसार, शिवपुरी के पहाड़ी क्षेत्र की जल-संकट की समस्या को ध्यान में रखते हुए उन्होंने शहर में कई तालाबों का निर्माण किया। इन तालाबों ने भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने और पर्यावरण में सुधार करने में सहायता की। उन्होंने शहर के जल निकासी के लिए नालों का जाल बिछाया, जिससे जल प्रबंधन में सुधार हुआ।

शिवपुरी का विकास और सांस्कृतिक विस्तार

शिवपुरी के मध्य में स्थित माधव चौक चौराहा एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहाँ चार प्रमुख श्रेष्ठीयों को भूमि प्रदान कर बसाया गया। चौराहे के चारों ओर के प्रमुख स्थानों को विभिन्न सेठों के नाम पर नामित किया गया:

  • उत्तर-पूर्वी कोना: सेठ बल्लभ चंद वीरचंद
  • पूर्वी-दक्षिणी कोना: सेठ टोडरमल सिफारिस मल
  • उत्तर-पश्चिमी कोना: सेठ लक्ष्मी चंद रामजीदास
  • पश्चिमी-दक्षिणी कोना: सेठ सेढ़मल कालुराम

इन श्रेष्ठीयों ने अपनी संपत्ति और संसाधनों के साथ शिवपुरी में बसकर शहर के विकास को गति दी। इसके साथ ही, 1820 के आसपास हनुमान मंदिर की आधारशिला भी रखी गई, जो आज भी शिवपुरी की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

जलसंकट और पर्यटकों की कमी

आजकल, दुर्भाग्यवश, शिवपुरी के अधिकांश तालाबों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। इस वजह से शहर में जलसंकट उत्पन्न हो गया है और पर्यटकों की संख्या में भी कमी आई है। तालाबों के पुनर्निर्माण और जल प्रबंधन की दिशा में किए गए प्रयासों की आवश्यकता है ताकि शिवपुरी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व पुनर्जीवित हो सके।

शिवपुरी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास एक समृद्ध और विविध यात्रा है, जिसमें अंग्रेजी शासन से लेकर सिंधिया परिवार के युग और इसके बाद के विकास की कहानी शामिल है। इस शहर की पहचान उसके ऐतिहासिक योगदान, सांस्कृतिक धरोहर, और विकासात्मक प्रयासों से है। आज के समय में, शिवपुरी को उसकी पुरानी स्थिति और ऐतिहासिक महत्व को पुनः स्थापित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।


शेष अगले अंक में .... 


दिवाकर शर्मा

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें