ईसाई धर्म की तिजारत करने जुटा ‘भाई-बहन’ का जोड़ा - इंजी. राजेश पाठक

 

कदम अंग्रेज कलकत्ते से अब दिल्ली में धरते हैं
तिजारत देख ली , देखें, हुकूमत कैसे करते हैं ।

ये शेर अकबर इलाहबादी ने तब कहा था जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करी । पर एक सत्य ये भी है कि एक तरफ अंग्रेज अपने तिजारत(व्यापार) के तौर तरीकों से देश को आर्थिक विपन्नता के रसातल में पहुंचा देने के लिए आतुर थे , तो दूसरी और उन्हीं की पोषित ईसाई मिशनरियाँ हिंदुओं के धर्मं को हजम करने में ।

हॉस्पिटल, स्कूल, छात्रावास बना बनाया धर्म उपदेश का स्थल है जहां छल से किसी को भी ईसाई बना लिया जा सकता है. इसलिए लोगों को ईसा मसीह का उपदेश सुनाने के लिए वनों- गावों -मोहल्लों में जाने की जरूरत नहीं. अब ये मंत्र यूरोप-चर्च ने उनके कानों में डालकर भारत भेजा ही था, तो उन्होनें इन संस्थानों की एक श्रंखला पूरे देश में खड़ी करी।

लेकिन परिणाम से अपेक्षित संतोष फिर भी नहीं हुआ। जिसके नाम से देश के कई स्थानों पर स्कूल-कॉलेज देखने को मिलते हैं, वो फ्रांसिस ज़ेवियर कहता है: 

इस देश के बड़े भूभाग में ईशा की शरण में जाने के उपदेश को लोग मृत्यु की शरण में जाने का उपदेश मानते हैं। 

तब जाकर चिंतन-मनन हुआ और निष्कर्ष दो बातों पर जाकर समाप्त हुआ। पहला जाति से निम्न कहे जाने वाले लोगों को चिह्नित किया जाए। और स्कूल-चिकित्सालय-सेवा केंद्रों को शहर की पिछड़ी वस्तियों और जंगलों में निवासरत जनजातियों के बीच ले जाया जाए ।

‘संस्कृति के चार अध्याय’ में रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं, भारतवासीयों को धर्म के तत्व किताबों में कम , धार्मिक मनुष्य के व्यक्तित्व में अधिक दिखाई देते हैं। मिश्नरीज़ को भी अब तक ये बात समझ में आ चुकी थी। अपने को अत्यंत सरल और साधु जीवन बिताने वाला दिखाने के खातिर ईसाई धर्मगुरुओं ने “ब्राह्मण” का भगवा वस्त्र धरण कर लिया। (पृष्ठ- 491)

आज देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो गए। लेकिन आज भी अपने को “सारस्वत ब्राह्मण” बताकर राजनीती करने वाला एक ईसाई माँ से जन्मा भाई-बहन को जोड़ा हिंदुओं को जाति-जनगणना के नाम पर विभाजित कर ईसाई मिशनरियों का काम आसान करने में जुटा हैं।


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