नंगों के कपड़े उतारने की कोशिस में भाजपा ! - बाबा सत्यनारायण मौर्य

 

भाजपा आपातकाल को लेकर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करके उसे फंसाना चाहती है और सोचती है कि ऐसा करने से कांग्रेस से लोग किसी को मुंह दिखाने के काबिल नही रहेंगे ! वे ये भूल रहे हैं कि देश की जिस पीढ़ी ने आपातकाल आंखों से देखा है, देश की उसी पीढ़ी ने ही आपातकाल लगाने वाली इंदिरा गांधी को भारी बहुमत से न सिर्फ जिताया था। इतना ही नही उन्ही इंदिरा जी के बेटे को भी 400 से ऊपर सीट दी थी। ....तो कैसे सम्भव है कि उस समय के कई वर्षों बाद पैदा हुई पीढ़ी में आक्रोश पैदा हो जाएगा और ये पीढ़ी कांग्रेस को नकार देगी।

महाभारत में पांडवों की जीत केवल इसलिए हो पाई क्योंकि श्रीकृष्ण ने बेईमान के साथ धर्मयुद्ध की नीति नही अपनाई। दुश्मनों की नजर में महान बनने का प्रयास नही किया।

प्रजातंत्र में प्रजातांत्रिक तरीके से चुनाव तभी जीता जा सकता है जब सभी लोग मूल्यों की राजनीति कर रहे हो !

केजरीवाल हो या ममता, कांग्रेस या राजद, न्यायालय से दोषी साबित होने पर भी सीना ठोककर शान से खड़े है और इतना ही नही जनता भी उन्हें जिता ही रही है। लेकिन ये सब भी भाजपा के लिए सीख का विषय नही बन पाया।

10 साल तक पूर्ण बहुमत और ईमानदारी से देश को आर्थिक, सांस्कृतिक और सामरिक रूप से देश को महान बनाने के बाद भी भाजपा इस चुनाव में बहुमत न पा सकी तो क्या इन पांच सालों में जैसे तैसे ढीली ढाली सरकार चलाकर देश की जनता का दिल जीत लेगी।

देश आर्थिक रूप से तो पहले भी सक्षम था फिर लुट क्यों गया ? क्योंकि जिन लोगो ने इसे लूटा वे के किसी भी प्रकार के जीवन मूल्यों को स्वीकार नही करते थे। मुगलों की तरह यही स्थिति आज के राजनैतिक दलों की भी है। भाजपा देश को आर्थिक रूप से कितना भी समृद्ध कर दे जिस दिन कुर्सी से हटेगी उस दिन देश तो फिर भी बच जाएगा पर क्या भाजपा बच पाएगी ?

जो ममता केंद्र में भाजपा होने के बाद भी निर्ममतापूर्वक भाजपा कार्यकर्ताओं को कुचलने से नही चूक रही है वो बाद में इन्हें छोड़ देगी ? जिस कांग्रेस ने आपातकाल में भूल से भाजपा को अधमरा छोड़ दिया था क्या वो ये गलती फिर से करेगी ?

भाजपा ने अपने दस सालों में कभी भी धारा 356 का प्रयोग करके किसी भी सरकार को नही गिराया क्या इसके लिए किसी भी विपक्षी पार्टी या लिबरल गैंग ने उसकी तारीफ की ?

और क्या भाजपा के इस कार्य से विपक्षी दलों का दिल बदल गया है ?

अगर ऐसी सोच है तो बहुत बड़ी गलतफहमी है। जिस दिन इनकी सत्ता जाएगी उस दिन ये कितने क्रूर साबित होंगे ये समझने वाले समझ सकते हैं।

जो लोग केवल राज्यों में अपनी सत्ता होने के दम्भ में चूर है वे अगर केंद्र में भी सत्ता में आ गए तो क्या होगा? सोचेंगे तो सिहर उठेंगे! भाजपा को कुचलने के लिए उन्हें सी बी आई, ई डी या न्यायालय की भी जरूरत नही बंगाल की तरह उनके पाले हुए गुंडे ही बहुत होंगे।

एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी होगी कि तब तक संघ या संबंधित अन्य संगठन धार्मिक या सामाजिक संगठनों की तरह सेवा के क्षेत्र में तो बहुत विशाल हो जाएंगे पर संघर्ष की दृष्टि से पूरी तरह प्रभावहीन हो चुके होंगे। जिस तरह से आपातकाल में संघर्ष किया क्या वो जीवटता बची रहेगी ? लाखों सेवाकार्यो के बावजूद भी जो संघ आज भी गाली खा रहा है वो विपक्षियों या समाज की राजनैतिक सोच बदल सकेगा ?

दिल्ली, बंगाल केरल, कश्मीर और उत्तरप्रदेश इसकी मिसाल है। अपराध की अति करके भी ममता जीत गई और अपराध की नकेल कसकर भी उत्तरप्रदेश में भाजपा की जो हालत हुई है उससे इस विषय को समझा जा सकता है। कश्मीर पंजाब में इतने आर्थिक विकास के बाद भी आतंकवादियों का भारी बहुमत से जीतना बता रहा है कि उन्हें आर्थिक विकास से कोई सरोकार नही है !

हालांकि ये सब लिखने से किसी नीति में परिवर्तन आएगा, बंगाल में 356 लग जायेगा .... ऐसा लगता नही है। फिर भी कवि होने के नाते कहना अपनी भी मजबूरी है।

अगर श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर की सलाह पर चलने लगते तो महाभारत युद्ध का परिणाम क्या होता ?

इस धर्मराज बनने की बीमारी का दुष्फल अंततः नीचे के कार्यकर्ताओं और समाज को ही उठाना पड़ेगा!
चुनाव जीते जाए या हारे जाएं... ऊपर के बड़े नेताओ की सुरक्षा और सुविधा को कोई आंच नही आएगी। उनको सारी सुरक्षा और सुविधा मिलेगी पर नीचे के कार्यकर्ताओं के लिए धीरे धीरे पूरा देश बंगाल बन जायेगा।

उन पर अत्याचार होने पर उनके लिए ऊपर से केवल एक प्रतिनिधि मंडल जाएगा जो मृतक करुकर्ताओ के परिवारों और जले कटे लोगो से मिलकर उनकी रिपोर्ट केंद्र को दे डेगा।

खेर नीचे के कार्यकर्ताओं की यही नियति है ! ये लोग कर भी क्या सकते है ? इन्हें यूं ही मरना होगा और सरकार आने के बाद ये सुनना होगा कि तुमने देश के लिए जो कष्ट उठाये उसके लिए प्रतिफल की आशा करना उचित नही। तुम सरकार बनने की कोशिश न करो... प्रतिफल की आशा से तुम्हारी देशभक्ति कलंकित हो जाएगी।

तो बड़े नेताओं को उनकी महानता मुबारक और नीचे के कार्यकर्ताओं को उनकी स्थिति !

क्योंकि जो समाज विभाजन के समय लाखो हिंदुओ के हत्याकांड के दोषियों को राष्ट्रपिता कहकर पूज सकता है उसकी मानसिकता में कोई अंतर आने वाला नही है। वह इनकी ऊंचाई और महानता को ही देखेगा। जिन लाशों के ढेर से इन्हें ऊंचाई मिली है उन लाशों को देखने की मानसिकता 1947 से आज तक बदली है न बदलेगी !

बाबा सत्यनारायण मौर्य जी के फ़ेसबुक अकाउंट से साभार

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