सचिन तेंदुलकर की गोपनीय कहानी भोपाल के आयुर्वेदिक डॉक्टर प्रमोद भट्ट की जुबानी - इंजी. राजेश पाठक
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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक बीएऍमएस (आयुर्वेदिक) डॉक्टर हैं प्रमोद भट्ट . डॉ भट्ट जैसे कम ही आयुर्वेद डॉक्टर होंगे जिनसे मिलने के लिए एक रोगी को अपना नंबर लगाने के बाद महीने भर तक इंतज़ार करना पड़ता हो ! इनकी ख्याति नाड़ी-परिक्षण से रोग डायेगोनिसिस कर उसके निदान को लेकर है. ज्यादातर चारों और से निराश लोग ही उनके पास पहुँचते हैं.
अपना नंबर आने पर पिछले सप्ताह मेरा मित्र मेरे साथ उनके क्लिनिक पर पहुँचा. उसको एक साथ धीरे-धीरे कई शारीरिक समस्यों ने घेर लिया था. वो मौन बैठा रहा , और नाड़ी-प्रशिक्षण के साथ डॉक्टर ने बारी-बारी से रोगों के बारे में बताना शुरू किया. और उसे उस रोग के बारे में भी पता चला जिसे इसके पहले किसी भी डॉक्टर से उसे ज्ञात नहीं हुआ था.
बाबा रामदेव के पतंजलि से कभी जुड़े रहने के कारण डॉ भट्ट दवाओं के साथ किस रोग में कौनसा योगासन करना ये परामर्श भी देते हैं, सो मित्र को भी दिया . बाहर निकलने के बाद कार में बैठकर बापस जाते हुए मैंने उससे बोला कि दवा तो ठीक है, लेकिन योगासन जरूर करना . मेरा भी उन डॉक्टर के पास जाना होता है . उनके बताये हुए योगासनों को मैं निरंतर करता हूँ ,इसलिए मैंने अपना अनुभव उससे बांटने की कोशिश करी . लेकिन मित्र का उत्तर ये था कि मैं योग इसलिए कर लेता हूँ क्यूंकि मेरे पास समय ज्यादा है. और वो इसलिए नहीं कर सकता क्यूंकि उसकी व्यस्तता अत्यधिक है, खासतौर पर अपने व्यवसाय को लेकर . इस बीच घर से उसकी पत्नी का फ़ोन आया, जाहिर है उसकी भी उत्सुकता रही होगी डॉक्टर से क्या पता चला ये जानने की. और जो बात दो मिनट में खत्म हो सकती थी वो लंबी खींचती गयी . आखिर मुझे ही फोन लेना पड़ा और बोलना पड़ा , अरे भाभी ! इसको घर भेज रहा हूँ तब पूछ लेना . अभी इसको गाड़ी चला लेने दो.
दरअसल व्यस्तता इतनी नहीं , जितना हम उन कामों में भी अपने को व्यस्त कर लेते हैं जिनकी शायद जरूरत नहीं. मित्र जो बात फ़ोन पर करने जुटा था, वही बात घर में ऐसा नहीं कि उसने दोबारा नहीं करी होगी. और फिर कितना भी काम हो व्यक्ति अपना स्नान – शौच आदि नहीं त्यागता, जो भी हो समय निकाल ही लेता है. उसी प्रकार समय निकालकर योगासन भी कर सकता है, फिर भले दस मिनट का ही क्यूँ न हो. सारा मामला जीवन में चुनी गयीं प्राथमिकता का है, समय के आभाव का नहीं.
और जहां तक फुर्सत का सवाल है, वो तो निकाली जा सकती है . मात्र जागरण के बाद योग-व्यायाम को प्राथमिकता पर रख कर. सोशल मीडिया पर गुड मोर्निंग - पोस्ट फॉरवर्ड कुछ देर बाद भी हो सकती है , किसी को बुरा लगने वाला नहीं !
योग धीमी गति से , ध्यान पूर्वक करने के कारण कई बार लगता है कि ये ज्यादा समय लेने वाली क्रिया है . निश्चित रूप से अन्य शारीरिक व्यायाम से अलग योग में जल्दीबाजी का स्थान नहीं, भले उसकी अवधि कम हो. क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के अपने अनुभव से इस बात को बेहतर समझ जा सकता है. वो बताते हैं कि कभी उनकी पीठ में बड़ा दर्द बना रहता था, तमाम इलाज करवा लेने के बाद भी . फिर एक दिन विकेट कीपर किरण मोरे उन्हें विश्व प्रसिद्ध योग गुरु बी.के.एस. आयंगर के पास लेकर पहुंचे. उनके सानिद्ध्य में सचिन ने एक सप्ताह योग में स्वयं के लिए क्या और क्यूँ करना है ये समझा, सीखा और अभ्यास किया. ‘ इसके बाद अब घर पर नित्य योग करता हूँ. इसका इतना लाभ मिला कि मैं पीठ के सर्जरी से बच गया , जिसकी सलाह एलोपथ डॉक्टर दे चुके थे.’, सचिन बताते हैं. वो अयंगर के कही ये बात कभी भूलते-‘ एक दिन भी योग करने से मत चूको. और फिर योग के चमत्कार को महसूस करो !’
निरन्तरता का महत्व ये है कि हर दूसरे दिन हम एक नए स्तर को प्राप्त करते जाते हैं. और अगले चरण के लिए हमारा शरीर की तैयारी होती जाती है. ऐसे में यदि हम निरन्तरता से चूक जाते हैं, तो अब तक प्राप्त उत्कृष्टता को खो बैठते हैं. ये बी.के.एस. आयंगर का कहना है .
और पतंजलि हरिद्वार के आचार्य बालकृष्ण क्या कहते हैं ये भी देखें- ‘ योग हमें इस अनुभूती की और ले चलता है कि निदान कहीं और नहीं , हमारे अंदर ही है . शरीर के अंदर पहले से ही मौजूद नैसर्गिक चिकित्सा क्षमता को योग जागृत कर सक्रीय अवस्था में ला देता है, जो की अंतत: हमें स्वस्थ रखता है. साथ ही प्रसन्नता प्रदान करने वाले एंडोर्फिन जैसे तत्व योग से स्वत: स्रवित होने लगते हैं. इसलिए ही मानसिक उथल-पुथल की अवस्था में जीवन में शामिल योग आपको शांत रखता है.’
इंजी. राजेश पाठक
311,डीके सुरभि ,नेहरु नगर ,
भोपाल मप्र
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मेरा भारत महान
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