भारत में 3000 साल पहले ही हो गई थी हार्ट अटैक के उपचार की खोज
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हृदय रोग दुनिया के सबसे घातक और कपटी हत्यारों में से एक है। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में, यह देश भर में हर चार मौतों में से एक का कारण बनता है - यह हर साल चौंका देने वाला 659,000 लोग हैं, या पोर्टलैंड, ओरेगन की पूरी आबादी के बराबर है। कहा यह जाता है कि अठारहवीं सदी के एक अंग्रेजी चिकित्सक जॉन हंटर, पश्चिमी चिकित्सा में संभवतः पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सीने में दर्द, जिसे एनजाइना पेक्टोरिस कहा जाता है की खोज की परंतु क्या आप जानते हैं कि हमारे देश भारत में 3000 साल पहले एक ऋषि नें हार्ट अटैक की बीमारी के उपचार की खोज कर दी थी।
हमारे देश भारत में 3000 साल पहले एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे, उनका नाम था महाऋषि वाग्भट जी। वाग्भट आयुर्वेद के सबसे प्रभावशाली लेखकों में से एक थे। कई रचनाएँ उनके नाम से जुड़ी हैं, मुख्य रूप से अष्टांगसंग्रह और अष्टांगहृदयसंहिता। अष्टांगहृदयसंहिता में उन्होंने हृदय संबंधित बीमारियों को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखें थे। आयुर्वेद की दुनिया में वाग्भट ऋषि का नाम बहुत ही आदर-सम्मान के साथ लिया जाता है. आयुर्वेद में वाग्भट का स्थान भी आचार्य आत्रेत (Acharya Atre) और सुश्रुत (Sushruta) के समान ही है। इनमें अंतिम वाग्भट हुए। हालांकि इनके जन्म और मृत्यु की तिथि को लेकर मतभेद है, लेकिन कहा जाता है कि सिंधु नदी के तटवर्ती किसी जनपद में वाग्भट ऋषि का जन्म हुआ था। वाग्भट्ट अवलोकितेश्वर के शिष्य थे। इनके पिता का नाम सिद्धगुप्त वैदिक ब्राह्मण और दादा का नाम वाग्भट था।
वाग्भट ऋषि ने आयुर्वेद के अनेक ग्रंथों की रचना की। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद सभी प्रकाश में आए। इनमें अष्टांगसंग्रह और अष्टांगहृदय को तो अमूल्य निधि माना जाता है, जो कालांतक में आयुर्वेदिक चिकित्सा-शास्त्र के छात्रों द्वारा पाठ्य पुस्तक के रूप में प्रयोग होते रहे हैं। वाग्भट ऋषि का अष्टांग हृदयम ऐसा ग्रंथ है, जिसका अनुवाद जर्मन भाषा में भी हुआ है। अष्टांग हृदयम में कुछ 7120 श्लोक हैं, जिसमें 6 खंड और 120 अध्याय हैं।
शास्त्रों में अश्विनी कुमार, वरुण देव, दक्ष प्रजापति और धन्वंतरि को सबसे बड़ा आयुर्वेदाचार्य माना गया है। इसके बाद चरक, च्यवन, सुश्रुत, ऋषि अत्रि, ऋषि भारद्वाज, दिवोदास, पांडव पुत्र नकुल-सहदेव, अर्कि, जनक, बुध, जावाल, जाजल, पैल, करथ, अगस्त्य, अथर्व, अत्रि ऋषि के छह शिष्य, अग्निवेश, भेड़, जातूकर्ण, पराशर, सीरपाणि, हारीत, जीवक, वाग्भट्ट, नागार्जुन और पतंजलि का नाम शामिल है। सुश्रुत , "शल्य चिकित्सा" और "प्लास्टिक सर्जरी के जनक", चरक, एक चिकित्सा प्रतिभा, और वाग्भट को आयुर्वेदिक ज्ञान की "त्रिमूर्ति" माना जाता है।
वाग्भट ऋषि ने अष्टांग हृदयम में बीमारियों को ठीक करने के 7000 से अधिक सूत्र बताए हैं। अष्टांग हृदयम के पांच भागों में बीमारी, कारण और उपचार का वर्णन मिलता है। पहले भाग में आयुर्वेदिक औषधियों, चिकित्सा विज्ञान के लिए विशेष निर्देश, दैनिक और मौसमी निरीक्षण, रोगों की उत्पत्ति, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के गुण-दोष, विषैले खाद्य पदार्थों की पहचान और उपचार, व्यक्तिगत स्वच्छता, औषधियां और उनके लाभों का वर्णन मिलता है। दूसरे भाग में मानव शरीर की रचना, विभिन्न अंगों, मनुष्य की प्रकृति, मनुष्य के विभिन्न रूप और आचरण आदि का वर्णन किया गया है। तीसरे भाग में बुखार, मिर्गी, उल्टी, दमा, चर्म-रोग जैसे रोगों के उपचार के बारे में बताया गया है। चौथे भाग में वमन और स्वच्छता के बारे में बताया गया है. पांचवें यानी अंतिम भाग में शिशु रोगों, पागलपन, आंख, कान, नाक, मुख आदि के रोग,घाव के उपचार, विभिन्न जानवरों और कीड़ों के काटने के उपचार का वर्णन किया गया है।
वाग्भट ऋषि ने अपने ग्रंथ अष्टांग हृदयम में रोगों के निवारण के लिए 7000 से अधिक सूत्र बताए हैं, जिसमें हार्ट अटैक भी एक है। वाग्भट ऋषि के अनुसार, हृदय की नलिकाओं के अवरुद्ध होने के बाद हार्ट अटैक होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि रक्त में अम्लता का बढ़ जाती है। यहां अम्लता का अर्थ पेट की एसिडिटी से नहीं है। इस एसिडिटी का अर्थ रक्त में बढ़ रही अम्लता से है, जिसे हाईपर एसिडिटी भी कहते हैं।
वाग्भट ऋषि अष्टांग हृदयम में लिखते हैं कि कभी भी हृदय को घात हो रहा है मतलब दिल की नलियों मे blockage होना शुरू हो रहा है तो इसका मतलब है कि रक्त (blood) में, acidity (अम्लता ) बढ़ी हुई है। अम्लता आप समझते हैं जिसको अँग्रेजी में कहते हैं। acidity अम्लता दो तरह की होती है। एक होती है पेट की अम्लता और एक होती है रक्त (blood) की अम्लता। आपके पेट में अम्लता जब बढ़ती है तो आप कहेंगे पेट में जलन सी हो रही है, खट्टी खट्टी डकार आ रही हैं, मुंह से पानी निकल रहा है और अगर ये अम्लता (acidity) और बढ़ जाये तो hyperacidity होगी और यही पेट की अम्लता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त में आती है तो रक्त अम्लता (blood acidity) होती है और जब blood में acidity बढ़ती है तो ये अम्लीय रक्त (blood) दिल की नलियों में से निकल नहीं पाती व नलियों में blockage कर देता है तभी heart attack होता है। इसके बिना heart attack नहीं होता और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है ।
क्षारीय वाली चीजें क्या हैं
वाग्भट अपने ग्रंथ में रक्त में अम्लता की मात्रा को कम करने के लिए लौकी (दूधिया) को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। लौकी के साथ ही अंजीर, अंगूर, खजूर, दूध, संतरा, नाशपाती, अंकुरित अनाज, चुकंदर, गोभी, गाजर, प्याज, मूली, खीरा, टमाटर, पालक, कद्दू, परवल आदि जैसी चीजें क्षारीय होती हैं।
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स्वास्थ्य
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